परम पूज्य सद्गुरु देवश्री कानजी स्वामीना
व्याख्यानमांथी तारवेलां वचनामृतो.
आत्मा पोताना ज भावोनो ग्रहण
करनार के छोडनार छे; जड कर्मने आत्मा
ग्रहतो के छोडतो नथी; जड कर्मनी अवस्था
जडना कारणे थाय छे; कारणके दरेक द्रव्यो
स्वतंत्र छे अने दरेक वस्तुना गुण–पर्याय
बीजी वस्तुथी जुदा छे तेथी जडनी बधी
अवस्थानो कर्ता जड वस्तु अने आत्मानी
अवस्थानो कर्ता आत्मा पोते ज छे.
वर्ष : अंक ५ * * * * चैत्र : २०००
तारी भूले तुं लूटाणो छो, नहीं के कर्मे
तने लूटयो छे!!! तुं ज अशुभभावने
(अज्ञानभावे) उत्पन्न करीने तारा स्वरूपना
खजानाने लूटावी देनारो छो. तथा ते अशुद्ध
भावने टाळीने निर्मळ स्वरूप प्रगट करनार
पण तुं ज छो! कर्म कांई तने करनार नथी.
निश्चयथी तुं लूटायो ज नथी. शुद्ध ज छो.
स्वरूपमां प्रवृत्ति अने पर द्रव्यमां
निवृत्ति ए आत्मानो स्वभाव छे.
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
रूपिया २–८–० चार आना
शिष्ट साहित्य भंडार * मोटा आंकडिया * काठियावाड