सर्व जीवो सुख ईच्छे छे, पण सुखनो साचो
छे तेथी सुखने बदले दुःख ज थई रह्युं छे..
पराधीनता एज दुःख छे–अने स्वाधीनता एज सुख
छे..........
निजवश ते सुख लहीए रे.....
ए द्रष्टिए आतमगुण प्रगटे,
कहो सुख ते कोण कहीए रे.....
भविका वीर वचन अवधारो.....
सुख कहेवाय. पुण्य–पाप के कोई परने आधारे मारुं
सुख नथी एवी द्रष्टिए आत्मानो (सुख) गुण प्रगटे
तमे वीर प्रभुना वचनने सांभळो एम श्री
यशोविज्यजी कहे छे. ‘तुं कोण छो’ ते जाण! तो तारा
भानमां तने बंधन छे ज नहीं. अने भान वगर गमे
तेम कर तो पण बंधन ज छे..... (परद्रव्यथी पोताने
कांईपण लाभ–नुकसान मानवुं ते ज बंधन)
स्वभाव छे ते ते वस्तुथी ज स्वतंत्रपणे छे, कोई
वस्तुनो स्वभाव परने आश्रये नथी...... पुण्यने
आधारे धर्म नथी.....धर्म पोताना ज आधारे छे....
आवे तो पण ऊंधा भावने टाळी शके नहीं. प्रभु पोते
ज छे.
तेनाथी ते पोताने लाभ के नुकसान मानता
नथी.....ज्ञानी सर्व संयोगोमां ज्ञानपणे ज परिणमे
छे–कदी अज्ञानपणे थतो नथी.....
नहीं करे ने!” स्वतंत्रताना भानवगर पंचमहाव्रत
करे तो पण पापी (अधर्मी)छे.....अने भान छे ते
राजपाटमां होवा छतां धर्मी छे.....
नथी. द्रष्टिनी भूल एज बंधनुं कारण–भावार्थमां
वस्तु दरेक स्वतःसिद्ध छे, दरेकनो स्वभाव पोताने ज
आधीन छे. एक द्रव्य बीजाने परिणमावी शके नहीं.
भावमां कोई भागीदार नथी......तारा भावनुं फळ
सोए सो टका तने ज छे.
अज्ञान भाव ज नुकसाननुं कारण छे. एक पदार्थने
बीजा पदार्थथी लाभ के नुकसान मानवुं ए मान्यता
ज बंधन छे.
नथीने? तेनो उत्तर:–ज्यां तें तहे खावाथी सुख मान्युं
एटले परथी सुख मान्युं तेमां ज तारी ऊंधी
मान्यतानुं पाप छे.....परने भोगववानो भाव ते ज
मिथ्यात्व. (ज्ञानी के अज्ञानी कोई परने भोगवी
शकतुं नथी.)
अनुकुळ अने प्रतिकूळ बन्ने जातना संयोगोथी लाभ
के नुकसान मानता नथी, तेथी एकेमां सलवाता नथी.
तारो धर्म तारामां–तारे आधीन छे तेने परनी मददनी
जरूर नथी, नरकनी अगवडता धर्मने रोकी शके नहि
के स्वर्गनी सगवडता धर्ममां मदद करी शके नहीं.
धर्म थई शके छे. स्वभावने जाणतो ज्ञानी निशंक छे के