Atmadharma magazine - Ank 005
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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• शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक •
आत्मधर्म
वष १ : अक ५
चत्र २०
[परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीना व्याख्यानमांथी तारीख २९ – ७ – ४३]
चार ज्ञाना धणी श्री गणधरदेव पण निरंतर
निर्विकल्प ध्यानमां स्थिर रही शकता नथी तेथी अशुभमां न
जवा माटे, विशेष ज्ञानुं मन करवा साक्षात् तीर्थंकर प्रभुनो
उपदेश वारंवार सांभळे छे तथा तेमनी पदवी अनुसार शुभ
भावमां [छठ्ठा गुण स्थानमां होय छे त्यारे] पण प्रवर्ते छे.
गृहस्थोने तो अशुभ रागनां निमित्तो घणां छे तेथी अशुभ
र् त्त्
कह्यो ते शुभ व्यवहार अंगीकार करवो जोईए. पण ते शुभ
रागनी हद पुण्य बंधन जेटली छे; तेनाथी धर्म नथी. तोपण
परमार्थनी रुचिमां आगळ वधवा माटे वारंवार धर्मनुं श्रवण,
मन करवुं पडे छे. जेने संसारनी रुचि छे ते नाटक – सीनेमा
वारंवार जाुए छे, नोवेलो वारंवार वांचे छे. साभळे छे, नवुं
होय तो जलदी जाणी ले छे; तेम जेने धर्म तरफ रुचि छे ते
र्त् र् त्त् ि ,
बचवा अने स्वरूप तरफनुं स्थिर वलण राखवा, वारंवार
स्त्र स्ध् , , ि प्रि
दर्शन, पूजा, गुरुभक्ति वगेरे शुभावमां जोडाय छे अने
राग टाळवानी द्रष्टि राखी तेमां वर्ते छे. विशेष राग टाळवा
माटे परद्रव्यनुं अवलंबन छोडवारूप अणुव्रत, महाव्रतादिनुं
ग्रहण करी समिति गुप्तिरूप प्रवर्तन, पंच परमेष्टिनुं ध्यान,
त्, स्त्रभ् ,
अने वीतरागी गुणनी रुचि वधारवा माटे छे.
शुध्धना लक्षे शुभ रागनी हद