मुमुक्षुओनो अनुभव छे. आत्मानुं निवृत्तिमय स्वरूप, मोक्षनुं सुख वगेरे भावोनी जे श्रध्धा अनेक दलीलोथी
थती नथी ते गुरुदेवनां दर्शन मात्रथी थई जाय छे, गुरुदेवनां ज्ञान ने चारित्र मुमुक्षु पर महा कल्याणकारी
असर करे छे. खरेखर काठियावाडने आंगणे शीतळ छांयवाळुं, वांछित फळ देनार कल्पवृक्ष फळ्युं छे.
काठियावाडनां महाभाग्य खील्यां छे.
तीर्थराजनी यात्रा अति उत्साह ने भक्तिपूर्वक करी.
कर्यां. गुरुदेवनां आगळ वधेला ज्ञानपर्यायोमांथी नीकळेला जड–चेतननी वहेंचणीना, निश्चय–व्यवहारनी
संधिना तेम ज बीजा अनेक अपूर्व न्यायो सांभळी राजकोटना हजारो लोको पावन थया अने अनेक सुपात्र
जीवोए पात्रता अनुसार आत्मलाभ मेळव्यो. दश मास सुधी ‘आनंदकुंज’मां (महाराजश्री ऊतर्या हता ते
स्थानमां) निशदिन आध्यात्मिक आनंदनुं वातावरण गुंजी रह्युं.
दिगंबर देरासरजीमां उछळेली भक्ति, ए सहस्त्राम्रवनमां जामी गयेली स्तवनभक्तिनी धून अने ए
समश्रेणीनी पांचमी टुंके पू. गुरुदेवश्री ‘हुं एक, शुद्ध, सदा अरूपी, ज्ञानदर्शनमय खरे!’ वगेरे पदो परम
अध्यात्मरसमां तरबोळ बनी गवरावता हता ते वखते प्रसरी गयेलुं शांत आध्यात्मिक वातावरण–ए बधांनां
धन्य स्मरणो तो जीवनभर भक्तोना स्मरणपट पर कोतराई रहेशे.
भक्ति गुरुदेव प्रत्ये ऊछळी पडती हती अने लाठी, अमरेली वगेरे मोटा गामोमां अत्यंत भव्य स्वागत थतुं
हतुं. गुरुदेवनो प्रभावनाउदय जोई, जे काळे तीर्थंकरदेव विचरता हशे ते धर्मकाळमां धर्मनुं, भक्तिनुं, अध्यात्मनुं
केवुं वातावरण फेलाई रहेतुं हशे तेनो तादश चितार कल्पनाचक्षु समक्ष खडो थतो.
त्यार पछी तुरत ज शेठ काळीदास राघवजी जसाणीना भक्तिवंत सुपुत्रोए श्री स्वाध्याय मंदिर पासे
उपरांत श्री शान्तिनाथ आदि अन्य भगवंतोनां भाववाही प्रतिमाजीनी प्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधिपूर्वक सं.
१९९७ ना फागण सुद बीजना मांगलिक दिने थई. प्रतिष्ठामहोत्सवमां बहारगामना लगभग १५००
माणसोए भाग लीधो हतो. प्रतिष्ठाना आठे दिवस परम पूज्य गुरुदेवना मुखमांथी भक्तिरसभीनी अलौकिक
वाणी छूटती हती. लोकोने पण घणो उत्साह हतो. प्रतिष्ठादिन पहेलांं थोडा दिवसे श्री सीमंधर भगवानना
प्रथम दर्शने परम पूज्य गुरुदेवनी आंखोमांथी आंसु वह्यां हतां. सीमंधर भगवान मंदिरमां प्रथम पधार्या त्यारे
गुरुदेवने भक्तिरसनी खुमारी चडी गई अने आखो देह भक्तिरसना मूर्त स्वरूप जेवो शांत शांत निश्चेष्ट
भासवा लाग्यो. गुरुदेवथी साष्टांग प्रणमन थई गयुं अने भक्तिरसमां अत्यंत एकाग्रताने लीधे देह एम ने
एम बे त्रण मिनिट सुधी निश्चेष्टपणे पडी रह्यो. आ भक्तिनुं अद्भुत द्रश्य, पासे ऊभेला मुमुक्षुओथी जीरवी
शकातुं नहोतुं; तेमनां नेत्रोमां अश्रु उभरायां अने चित्तमां भक्ति ऊभराई. गुरुदेवे पोताना पवित्र हाथे