: १३६ : आत्मधर्म : अषाढ : २००० :
शील
(८) जीवो पोताना सत् स्वरूपनो साचो उपदेश सांभळे अने तेथी तेमने नुकसान थाय एम कोई पण
काळे के कोई पण क्षेत्रे बने ज नहीं. जो जीवोने सत् उपदेशथी नुकसान थाय एम मानीए तो तेनो अर्थ एटलो
ज थाय के जीवोने असत् उपदेशथी लाभ थाय, पण ए तद्न असत्य छे. सत् उपदेशथी लोको साचा व्रत वगेरे
करतां अटकी जाय एम मानवुं ते पण तेटलुं ज असत्य छे. जे लोको आत्मानुं यथार्थ स्वरूप न समजता होय
तेमने साचा व्रतादि होय एम केम कही शकाय? तेओ जे व्रत वगेरे करे छे ते साचा छे एम कही उत्तेजन
आपवुं ए तो एमना अज्ञानने पोषण आपवा बराबर छे; ते कार्य धर्मनुं केम कही शकाय? व्रतादि करनार जो
ज्ञानीओ होय अने तेओ जो व्रतादि (के जे शुभ भाव छे ते) मूकी देशे तो तेओ वीतराग थई जशे. जे
ज्ञानीओने पूर्ण वीतरागता प्रगट थई न होय तेओ ज्यारे शुध्धोपयोगमां रही नहीं शके त्यारे तेमने मुख्यपणे
व्रतादिना शुभभाव आव्या वगर रहेशे नहीं.
(९) सत्नो उपदेश सांभळनाराओ यथाशक्ति व्रतादि धारण करे ए स्वाभाविक छे.
(१०) परम पूज्य सद्गुरुदेवना आ वखतना मंगळीक विहारमां नीचे मुजब छ भाईओए सजोडे
ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर्यां छे, ए बिना आनंददायक छे.
[१] भाई लाभशंकर छगनलाल.
[२] भाई मोहनलाल काळीदास जसाणी. राजकोट
[३] भाई प्रेमचंद लक्ष्मीचंद.
[४] शेठ डायालाल करसनजी.
[५] शाह भाईचंद कसळचंद. वींछीया.
[६] वाळंद घेलाभाई हावाभाई
वींछीया जेवा नाना गाममां चार भाईओ मात्र दस दिवसनो उपदेश सांभळी आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत
धारण करे ते आ काळमां अद्वितिय छे. युवान उंमरमां सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत धारण करवुं ते तेटलुं ज
प्रशंसा पात्र छे, तेनो दाखलो भाई लाभशंकर छगनलाल उंमर वर्ष ३३ अने तेमना पत्नी कमळा बेने उंमर
वर्ष ३० ए ब्रह्मचर्यव्रत लईने बेसाडयो छे, ते माटे तेमने अभिनंदन घटे छे एम कह्या वगर चालतुं नथी.
भाई मोहनलाल काळीदास आ संस्थाना एक अग्रकार्यकर छे.
(११) परम पूज्य सद्गुरुदेवनो उपदेश जैनेतरोने पण रुचिकर लागे छे ए वात भाई घेलाभाई
हावाभाई जेओ वाळंद छे तेमना द्रष्टांतथी तरी आवे छे. पूज्य महाराज साहेब नाना गाममां के मोटा शहेरमां
ज्यां पधारे त्यां संख्याबंध भाईओ अने बहेनो तेमनुं व्याख्यान सांभळवा आवे छे. बपोरनो धोम तडको,
शियाळानी सख्त ठंडी के चोमासानो वरसाद ए कोई पण जिज्ञासुओने बाधक लागतां नथी. नानां के मोटां
गामोमां जे मकाने पू. सद्गुरुदेव ऊतरता ते जग्या व्याख्यान सांभळनाराओ माटे नानी पडती.
(१२) महाराजसाहेबना सोनगढना निवासमां सोनगढमां रहेतां अने बहार गामथी ब्रह्मचर्यव्रत
लेवा माटे मुमुक्षुओ आवे छे.
(१३) ब्रह्मचर्यव्रत लेनार भाईओने ब्रह्मचर्यनुं स्वरूप तथा पूर्वे तेमां केवा प्रकारना दोषो लाग्या हता
अने भविष्यमां तेओए केवी रीते वर्तवुं ते गुजराती भाषामां एवुं स्पष्ट पूज्य सद्गुरुदेव समजावे छे के व्रत
लेनार शुं कार्य करवा मागे छे अने ते केवी रीते तेणे पाळवुं ते, ते यथार्थ समजी शके.
तप
(१४) श्री भगवती आराधनाना शिक्षाधिकारमां तप संबंधमां नीचे मुजब कह्युं छे:–
“बारस विहम्मि य तवे सब्भंतर बाहिरे कुसल दिठ्ठे।
ण वि अत्थि ण वि य होहिदि सझाय समंतव्वो कम्मं।।९।।
अर्थ:– प्रवीण पुरुष जे श्री गणधरदेव तेमनाथी अवलोकन करवामां आवेलां जे बाह्य आभ्यंतर बार
प्रकारना तप छे तेमां स्वाध्याय समान बीजुं तप कदी थयुं नथी, थशे नहीं अने थतुं नथी.
(१प) आ उत्तम प्रकारना स्वाध्याय तपनी प्रवृत्ति पूज्य सद्गुरु देव सोनगढमां छे त्यां नीचे मुजब रहे छे.