: अषाढ : २००० : आत्मधर्म : १३७ :
स्वाध्यायनो कार्यक्रम (नवो टाईम)
सवारे ६–३० थी ७–० ज्ञानचर्चा
,, ९–० थी १०–० पू. महाराज साहेबनुं व्याख्यान.
,, १०–१प थी ११–१प शास्त्रवांचन.
बपोरे २–३० थी ३–३० शास्त्र वांचन
,, ४–० थी प–० पू. महाराज साहेबनुं व्याख्यान.
,, प–० थी प–४प दहेरासरमां प्रभु भक्ति.
(सांजना आहार पछी ब्रह्मचारी विद्यार्थीओ साथे ज्ञाननो वार्तालाप)
रात्रे ७–१प थी ८–१प प्रतिक्रमण
,, ८–१प थी ९–१प तत्त्वने लगता प्रश्नोत्तर.
कुल–७ कलाक. नोट:– ऋतुने अनुसरीने टाईममां फेरफार करवामां आवे छे.
(१६) आटलां वखतमां स्वाध्याय वगेरे धर्मकार्य थवाथी मुमुक्षुओने घणो लाभ थाय छे आ कार्यमां
भाग लेनाराओने आ कार्यक्रम घणो रसिक लागे छे.
‘आवुं कार्य बीजे स्थळे थतुं होवानुं अमे जाण्युं नथी’ एम बहारथी आवता नवाभाईओ वारंवार कहे छे.
(१७) भगवानगणधरदेव स्वाध्यायने उत्तम तप गणे छे स्वाध्याय, शास्त्रवांचन अने ज्ञानचर्चामां जे
जीवोने रस आवे छे तेनो उपयोग तेमां चोंटयो रहे छे, ज्यारे रुढिगत उपवास करनारनो उपयोग
(उपवासनी प्रतिज्ञा लेतां जे बे मिनिट लागे ते सिवायना वखतमां) बाह्य कार्योमां रह्या करे छे. भगवाने
कहेला उपवास तो सम्यग्ज्ञानीने ज होय छे, अने तेनुं कार्यक्षेत्र ज्ञानीओ ज जाणे छे.
(१८) “आपणे चोवीस कलाक आहार न लेवानी प्रतिज्ञा धर्मस्थानके जईने लईए तो ते उपवास
कहेवाय, ते उपवास तप छे; अने ते तपथी निर्जरा थाय; तथा चोवीस कलाक आहार न लेवानी प्रतिज्ञा लईने
धर्मस्थानके रहीए तो ११ मुं पौषधव्रत थाय.” एम घणाए माने छे, पण “श्री आत्मधर्म” ना बीजा तथा
चोथा अंकमां “बे मित्रो वच्चे संवाद” ए मथाळा नीचे सम्यक् तपनुं स्वरूप आपवामां आव्युं छे, ते बारीकीथी
वांचवामां आवे तो ते साचुं तप नथी एम परीक्षकने लाग्या वगर रहे नहीं.
(१९) पू. सद्गुरु देवना व्याख्याननो धर्मबुद्धिथी लाभ लेनारा मुमुक्षुओ तपनुं स्वरूप समजता जाय
छे, एम जणाववानी भाग्ये ज जरूर छे.
(२०) आ संस्थानी साथे संबंध धरावता मुमुक्षुओमां चालती तपनी प्रवृत्तिनुं टुंकमां वर्णन नीचे
प्रमाणे छे.
सां–१९९१ थी १९९९ सुधी दरसाले पर्युषण उपर भाई वनमाळी पोपटलाल (जेओ ‘तपस्वीजी’
तरीके ओळखाय छे ते) एक मासना (३०) उपवास एकीसाथे करे छे. ते उपरांत सां–१९९प तथा १९९७ नी
सालमां पीपळी ताबे बजाणाना भाई शीवलालभाईए पण एक साथे ३० उपवास करेला हता. तथा–सां–
१९९६ मां भाई कपुरचंद हरजीवने १प उपवास एक साथे कर्या हता. आ उपरांत घणा मुमुक्षुओ पौषध,
उपवास, एक वखत भोजन, वगेरे पोतपोतानी शक्ति अनुसार तप करे छे.
बीजा प्रकारना तपनी विशिष्टता
(२१) (१) घणा मुमुक्षुओ आचार (अथाणुं) बिलकुल वापरता नथी, केमके ते चोवीस कलाक उपरांत
रहे तो तेमां सडो थतां सूक्ष्म त्रस जीवो उत्पन्न थाय छे.
(२) मीलनो आवतो तैयार आटो अने तेमांथी बनावेल गांठीया, मीठाई वगेरे मुमुक्षुओ वापरता
नथी, केमके ते आटो घणे भागे जूनो होय छे, तेमां एयळ, फुदा वगेरे आंखे देखाय एवा त्रस जीवो होय छे
अने न देखाय तेवा सूक्ष्म त्रस जीवो होय छे ते सर्वेनो नाश थाय छे. अहिंसाव्रत पाळवा मांगनाराओमां आ
विवेक आवे ते ईच्छवा योग्य छे. धर्मना प्रसंगे थतां जैनोना जमणवारमां आवा जूना लोटमांथी थतां मीठाई
फरसाण वगेरेनो उपयोग ज्यां ज्यां थतो होय त्यां त्यां ते बंध थवो जोईए.
(३) दहीं–छास साथे द्विदळ भळतां तेमां त्रस जीवो उत्पन्न थाय छे तेथी ते प्रमाणे करवानुं मुमुक्षुओए
छोडी दीधुं छे.
(४) हरकोई प्रकारनो लोट चोमासामां ३ दिवस, उनाळामां प दिवस अने शियाळामां