९ पूजासंग्रह ... ०–४–०
८ समवसरण स्तुति ... ०–२–०
७ आध्यात्मिक पत्रावलि भा. २ जो ... ०–४–०
६ आध्यात्मिक पत्रावलि भा. १ लो ... ०–२–०
प स्तवनमंजरी [गुजराती हिन्दी स्तवनो] १–०–०
४ समयसार [हरिगीत] (बीजी आवृत्ति) ०–२–०
३ समयसार [गुटको] (बीजी आवृत्ति) ०–प–०
२ परम पूज्य सद्गुरूदेवनुं जीवनचरित्र ०–४–०
१ समयसार [गुजराती अनुवाद] खलास २–८–०
ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
निमित्त – उपादाना दोहा
प्रश्न:–
गुरु उपदेश निमित्त विन, उपादान बलहीन; ज्यों नर दुजे पांव विन, चलवेको आधीन. १.
हौं जाने था एक ही, उपादानसों काज; थकैं सहाई पौन विन, पानीमांहि जहाज. २.
प्रश्ननो अर्थ:– गुरुना उपदेशना निमित्त वगर उपादान [आत्मा पोते] बळ वगरनो छे, जेम
माणसने चालवा माटे बीजा पग वगर चाले नहीं तेम. जे एम ज जाणे छे के–एक उपादानथी ज काम थाय [ते
बराबर नथी], जेम पाणीमां वहाण पवननी मदद वगर थाके छे तेम.
उत्तर:– ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिव मग धार; उपादान निहचैंजहां, तहां निमित्त व्योहार. ३.
अर्थ:– सम्यग्दर्शन पूर्वकनुं ज्ञान, अने ते ज्ञानमां चरणरूप [स्थिरतारूप] क्रिया ते बंने शिवमार्ग
[मोक्षमार्ग] ने धारण करे छे.
ज्यां उपादान खरेखर [निश्चय] होय त्यां निमित्त होय ज छे ए व्यवहार छे (परवस्तु
निमित्तहाजररूप होय छे एम परनुं ज्ञान करवुं तेने व्यवहार कहेवामां आवे छे.)
उपादान निज गुण जहां, तहां निमित्त पर होय; भेदज्ञान परवीन विधि, विरला बुझे कोय. ४.
अर्थ:– पोताना उपादान गुणरूप होय त्यां तेने लायक पर निमित्त होय एवी रीत भेदज्ञानना प्रवीण
पुरूष जाणे छे, अने तेवा कोई विरला ज बुझे छे (मुक्त थाय छे.)
उपादान बल जहं तहां, नहि निमित्त को दाव; एक चक्रसौं रथ चलै, रवि को यहै स्वभाव. प.
अर्थ:– उपादान बळवान छे एम जे जाणनारा छे ते निमित्तनो दाव केवो होय? एटले के होय ज नहीं
(एम जाणे) जेम सूर्यनो एवो स्वभाव छे के एक चक्रथी रथ चाले छे तेम.
सधै वस्तु असहाय जहं, तहं निमित्त है कोन; ज्यों जहाज परबाहमें, तिरै सहज विना पौन. ६.
अर्थ:– वस्तु (आत्मा) परसहाय विना ज साधी शकाय छे. तेमां निमित्त केवुं? (निमित्त परमां कांई
करतुं नथी) जेम पाणीना प्रवाहमां वहाण पवन विना सहज तरे छे. उपादान विधि निरवचन, है निमित्त
उपदेश; बसे जु जैसे देशमें, करै सु तैसे भेष. ७.
अर्थ:– उपादाननी रीत निर्वचनीय छे. निमित्तथी उपदेश देवानी रीत छे. जेम जीव जे देशमां वसे ते ते
देशनो वेश पहेरे छे तेम.
नोट (१) उपादान=वस्तुनी सहज शक्ति. (२) निमित्त=संयोगरूप कारण. (३) द्रष्टांतमां एक पैडुं
सूर्यना रथनुं कह्युं तेम ज हाल युरोप वगेरे देशोमां पर्वतोमां चालती रेलगाडीओ एक ज पैडाथी चाले छे. (४)
उपादान पोते पोताथी पोतामां कार्य करे छे; निमित्त हाजररूप होय छे, पण ते उपादानने कांई मदद के असर
करी शकतुं नथी एम बताव्युं छे.
ग्रंथ – प्रकाशन
१८ मोक्षमार्ग प्रकाशक [बीजी आवृत्ति] छपाय छे.
१७ द्रव्य संग्रह ०–७–०
१६ आत्मसिद्धि प्रवचन [बीजी आवृत्ति] ३–७–०
१प सर्वसामान्य प्रतिक्रमण ०–६–०
१४ श्री जिनेंद्रस्तवनावली (बीजी आवृत्ति) ०–६–०
१३ सत्तास्वरूप ... ... ०–९–०
१२ बारस अणुवेकखा [द्वादशानुप्रेक्षा] ... ०–४–०
११ अनुभवप्रकाश ... ०–७–०
१० जैनसिद्धांतप्रवेशिका ... ०–प–०
दरेकनुं टपाल खर्च जुदुं
प्राप्तिस्थान :– जैनस्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ–(काठियावाड)
शिष्ट साहित्य भंडार दासकुंज मोटाआंकडिया (काठियावाड)