Atmadharma magazine - Ank 008
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीना प्रवचन महासागरमांथी वीणी काढेलां
महासागरनां मोती.
१. जे जीव पर पदार्थोमां ममत्व करतो नथी, ते ज संसार बंधनथी छूटी शके छे.
२. पुण्य–पापना विकारी भावो अने तेना फळ स्वरूप संयोगी नाशवान पदार्थोनी प्राप्ति–तेनो जेने
आदर छे तेने आत्माना नित्य अविकारी स्वभावनो आदर नथी.
३. परवस्तुनुं क्षेत्रांतर भावांतर के अवस्थांतर कोईने आधीन त्रणकाळमां नथी.
४. पर पदार्थ तरफ लक्ष ते राग छे.
प. निराकुळ सुख आत्मामां छे, संयोगोमां सुख नथी छतां अज्ञानी जीव तेमां सुख मानी रह्यो छे.
परना आश्रयनी पराधीनता ते दुःख छे.
६. पांच ईन्द्रियोना विषयो तरफ ठीक–अठीकना भावे रागमां जे अटकवुं थाय छे ते ज परमार्थे
भावबंधन छे.
७. जेम चक्रवर्ती शकोरूं लई भीख मागे, परनी ओशियाळ करे, आश्रय शोधे ते तेने शोभे नहि तेम
आत्माना उत्कृष्ट स्वभावने भूलीने जे जीव परनी आशा करे छे, परनी मदद ईच्छे छे ते तेने शोभारूप नथी.
८. आत्मा अरूपी जाणनार स्वरूपे छे तेने कोई परनुं करनारो मानवो ते देहद्रष्टिनुं अज्ञान छे.
९. परनुं हुं करी शकुं, पर मारुं करी शके, एवी मान्यता मिथ्यात्व छे.
१०. मोक्षनुं कारण वीतरागता, वीतरागतानुं कारण अरागी चारित्र, चारित्रनुं कारण सम्यग्ज्ञान अने
सम्यग्ज्ञाननुं कारण सम्यग्दर्शन छे.
११. जीव पोताना सहज स्वरूपनी संभाळ करे तो एक क्षणमां सर्व दुःखनो नाश थाय.
१२. ज्यां ज्यां जाणपणुं त्यां त्यां हुं, एवो द्रढभाव सम्यक्त्व छे.
१३. परिणाम ज संसार अने परिणाम ज मोक्ष छे माटे समये समये परिणाम तपास.
१४. विस्मय करनारनो (आत्मानो) विस्मय न आवे त्यां सुधी परनो विस्मय टळे नहि.
१प. आत्मा त्रिकाळ परिपूर्ण छे एवो ख्याल ज्यां सुधी न आवे त्यां सुधी परमां एकत्व बुद्धि टळती नथी.
१६. अनंत प्रतिकूळता होवा छतां अनंत एकाग्रता थई शके छे.
१७. चार अघाति कर्मो संयोग आपे, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय आत्मामां उणप आपे छे
अने मोहनीय आत्मामां विरुद्धता आपे छे. ए आठेय कर्मस्वरूप हुं नथी, हुं तो मात्र ज्ञायक छुं.
१८. राग छोडुं एवो भाव पण शुभ छे, पण त्रिकाळी शुध्ध आत्मस्वभाव उपर द्रष्टि देतां रागादि छुटी
जाय छे, ए निर्जरा छे.
१९. निश्चयनो विषय त्रिकाळी स्वभाव छे. व्यवहारनो विषय वर्तमान शुभाशुभ विकारी भाव छे.
जिनवरनो कहेलो व्यवहार पण परिपूर्ण छे ने ते परिपूर्णपणे अभवी करे छे, पण तेनी द्रष्टि परावलंबी छे,
त्रिकाळी स्वावलंबी स्वभाव उपर द्रष्टि नथी. शुभ भाव उपर द्रष्टि होवाथी ते पुण्य बांधे पण आत्मानो
स्वभाव बीलकुल उघडतो नथी.
(अनु. पान १४२)
जैन शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति
प्रश्न
जिनमार्गमां बन्ने नयोनुं ग्रहण करवुं कह्युं छे, तेनुं शुं कारण?
उत्तर
जिनमार्गमां कोई ठेकाणे निश्चयनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो ‘सत्यार्थ एम ज छे’
एम जाणवुं, तथा कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने ‘एम नथी पण
निमित्तादिनी अपेक्षाए आ उपचार कर्यो छे’ एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बन्ने नयोनुं
ग्रहण छे. पण बन्ने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी ‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण
छे’ एवा भ्रमरूप प्रवर्तवाथी तो बन्ने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक–पानुं २प६)