ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
२५
वत्थु सहावो धम्मो.
२६
संसारना विषवृक्षने क्षणमात्रमां
क्षय करावनार महासुख सागरनो
सम्यक्मार्ग प्राप्त करावनार, अतुल
महिमाना धारी एवा श्री गुरुदेवना
चरणकमळमां परम भक्तिथी
वारंवार नमस्कार.
२७
दर्शनशुद्धिथी ज
आत्मसिद्धि.
२८
जेमना ज्ञान सरोवरमां सर्व विश्व
मात्र कमळ तुल्य भासे छे एवा
भगवान श्री सीमंधर आदि
जिनेंद्रदेवोने नमस्कार! नमस्कार!!
२९
जेओ स्वरूपनगर वसता काळ सादि
अनंत,
भावे ध्यावे अविचळपणे जेहने
साधुसंत;
जेहनी सेवा सुरमणीपरे सौख्य
आपे अनंत,
नित्ये म्हारा हृदय कमले आवजो श्री
जिनेंद्र.
३०
भूत, वर्तमान अने भावि
जगतशिरोमणि तीर्थंकरोने
नमस्कार.
३१
स द्ध र्म वृ द्धि र स्तु.
स त् नी वृ द्धि हो.
३२
शुद्ध प्रकाशनी अतिशयताने लीधे
जे सुप्रभात समान छे, आनंदमां
सुस्थित एवी अचळ जेनी ज्योति छे
एवो आ आत्मा उदय पामे छे,
एवुं ज्ञान तथा वचन तेमय
मूर्ति सदाय प्रकाशरूप हो!
३३
जेमां अनेक अंत (धर्म) छे.
एवुं जे ज्ञान तथा वचन
तेमय मूर्ति सदाय प्रकाशरूप हो!
३४
स्वरूपस्थित सद्गुरुदेवनो
प्रभावना उदय जगतनुं
कल्याण करो! जयवंत वर्तो!!
३५
ए जीव केम ग्रहाय?
जीव ग्रहाय छे प्रज्ञावडे,
प्रज्ञाथी ज्यम जुदो कर्यो
त्यम ग्रहण पण प्रज्ञावडे.
३६
पात्र थवा सेवो सदा
ब्रह्मचर्य मतिमान.
सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणि
मोक्षमार्ग:
आत्मधर्मनी उन्नति हो! उन्नति हो!!
३७
दुर्लभ मनुष्यपणुं पामीने
जे विषयोमां रमे छे ते
राखने माटे रत्नने बाळे छे.
३८
मुज आत्म निश्चय ज्ञान छे,
मुज आत्म दर्शन चरित छे,
मुज आत्म प्रत्याख्यान ने,
मुज आत्म संवर योग छे.
३९
पुर्णताने लक्षे शरूआत
ते ज वास्तविक शरूआत छे.
४०
आ भेदविज्ञान अच्छिनधाराथी
त्यांसुधी भाववुं के ज्यांसुधी
परभावोथी
छूटी ज्ञान ज्ञानमां ज ठरी जाय.
४१
आ समयप्राभृत पठन करीने,
अर्थ–तत्त्वथी जाणीने,
ठरशे अरथमां आतमा जे,
सौख्य उत्तम ते थशे.
४२
जीव एक अखंड संपूर्ण
द्रव्य होवाथी तेनुं ज्ञान–
सामर्थ्य संपूर्ण छे.
संपूर्ण वीतराग थाय
संपूर्ण सर्वज्ञ थाय.
४३
सहजपणे विकास पामती चैतन्य–
शक्ति वडे जेम जेम विज्ञानधन
स्वभाव थतो जाय छे तेम तेम
आस्रवोथी निवृत्त थतो जाय छे.
४४
निमित्तनी अपेक्षा ल्यो तो
बंध अने मोक्ष बे पडखां पडे छे
ने तेनी अपेक्षा न ल्यो तो
–एकलुं निरपेक्ष तत्त्व लक्षमां
ल्यो तो–स्वपर्याय प्रगटे छे.
४५
जे आत्माने अबद्धस्पष्ट,
अनन्य, नियत, अविशेष अने
अणसंयुक्त देखे छे ते समग्र
जिनशासनने देखे छे.
४६
हुं एक अखंड ज्ञायक मूर्ति छुं,
विकल्पनो एक अंश पण
मारो नथी, तेवो स्वाश्रयभाव
रहे ते मुक्तिनुं कारण छे ने
विकल्पनो एक अंश पण मने
आश्रयरुप छे तेवो पराश्रयभाव
रहे ते बंधनुं कारण छे.
४७
ते उत्कृष्ट तेज प्रकाश
अमने हो के जे तेज
सदाकाळ चैतन्यना
परिणमनथी भरेलुं छे.
४८
दंसण मूलो धम्मो
धर्मनुं मूळ दर्शन छे.