२०००: श्रावण: आत्मधर्म : १५९:
(३) एक वस्तुमां बीजी वस्तुना नहि होवापणाने अभाव कहे छे. जेमके जीवमां कर्म नथी (पुद्गल
नथी) एटले जीवमां पुद्गलनो अभाव छे, अने पुद्गलमां जीवनो अभाव छे.
जीव एक नथी, परंतु अनंता अनंत जीवो छे. सिद्ध जीवो पण अनंत छे.
(४) जेमां चेतना होय ते जीव एटले जीव चेतनाथी (ज्ञानथी) ओळखाय. जेमां ज्ञान न होय ते अजीव.
पुद्गल छे ते अजीव छे, परंतु तेमां वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्श छे. ज्यारे पुद्गल सिवायना बीजा
अजीवोमां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श नथी.
उत्तर–४
(१) व्यवहार नयथी आत्मा कर्मनो कर्ता छे, अने अशुद्ध निश्चय नयथी पोताना विकारी भावनो कर्ता छे.
(२) शुभ अने अशुभ परिणामने टाळवाथी मोक्ष थाय छे.
(३) पोताना शुद्ध आत्मानी श्रद्धा ते सम्यकत्व छे. (४) परमार्थे सर्व जीव असंग छे.
(प) सुख गुण आत्म द्रव्यनो छे. (६) परमार्थने प्रेरे ते व्यवहार समंत करवा योग्य छे.
(७) शुद्ध परिणाम ते मोक्षनुं कारण छे.
(८) जे जीव समवसरणने जिननुं वर्णन समजे, अने देव वगेरे गतिओनां भागोना ज्ञानने श्रुत ज्ञान
समजे ते जीव मतार्थी कहेवाय.
महासागरनां मोती (गतांकथी चालु)
२७. कोई पर द्रव्यनी अवस्था हुं करी शकतो नथी, तेवी मान्यता करे तो अनंती शांति आवी जाय.
२८. द्रष्टिनो विषय अभेद–अबंध–अखंड द्रव्य छे. ते पर्याय विकल्प के निमित्तने स्वीकारती नथी.
२९. पंच महाव्रतादिना पालननो शुभभाव पण चारित्र–वीतराग भावमां झेर छे, कारण के ते अमृत
आत्मामां बाधक छे; मोक्षमां विघ्नरूप छे.
३०. सम्यग्द्रष्टिनो भव बगडे नहि ने भव वधे नहि.
३१. वाणी परनुं परिणमन छे, तेम नहि मानतां हुं बोली शकुं छुं, एटले के परनुं परिणमन माराथी थय
छे ए ज मिथ्यादर्शन शल्य–अनंतु पाप–छे. वाणी बोलवाना भाव जेवडो (विकारी भाववाळो) ज हुं छुं एवी
मान्यता थई एटले अविकारी शुद्ध स्वभावनो अनादर थयो, ए ज अनंती हिंसा छे. (विशेष हवे पछी)
भद्रपद
सुद २ रवि २० ओगस्ट सुद २ सोम ४ सप्टेम्बर
,, ५ बुध २३ ,, ,, प गुरु ७ ,,
,, ८ रवि २७ ,, ,, ८ रवि ११ ,,
११ बुध ३० ,, ,, ११ बुध १३ ,,
,, १४ शुक्र १ सप्टेम्बर ,, १४ शनि १६ ,,
,, १५ शनि २ ,, ,, ०)) रवि १७ ,,
प्रभावना
श्री. जेठालाल संघजी शाह (बोटाद) तरफथी रूा. २५०/– [आत्मधर्म मासिकनी १०० नकल बार
महिना माटे सद्धर्मना प्रचारार्थे मोकलवा] मळ्या छे. तेमज श्री. चंदुभाई शीवलाल (अमदावाद)
तरफथी रूा. १२५/– [आत्मधर्म मासिकनी ५० नकल बार महिना माटे मोकलवा] मळ्या छे, जे
साभार स्वीकार्या छे.
पर्युषण अंक आवतो अंक ‘पर्युषण’ अंक तरीके प्रगट करवानुं नक्की थयुं छे. अने आत्मधर्मनुं पहेलुं वर्ष आसो महिने पूरुं करी बीजुं वर्ष कारतक महिनाथी शरु करवानुं छे. एटले १० अने ११ अंक पर्युषण
उपर साथे ज प्रगट थशे. अने बारमो अंक आसो सुद बीजे प्रगट करवामां आवशे.
सुचना आत्मधर्म अंगेनो तमाम पत्र व्यवहार मोटा आंकडिया ज करवानो छे. सरनामामां फेरफार के बीजी कोई फरियाद करती वखते ग्राहक नंबर अवश्य लखवो. ग्राहक नंबर वगरना एवा पत्रोनो
अमल करवामां खूब तकलिफ पडे छे.
समाचार श्री द्रव्यसंग्रह (गुजराती) प्रगट थई चूकयुं छे. किंमत स्थानिक ०–७–० बहारगाम माटे ०–८–३
राखवामां आवी छे.
मुद्रक:– जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया काठियावाड. ता. १५–७–४४
प्रकाशक:– जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज, मोटा आंकडिया काठियावाड.