Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: १५८ : आत्मधर्म २००० : श्रावण :
अर्थ:– आत्मा ज्ञान स्वरूप छे, पोते ज ज्ञान छे ते ज्ञान सिवाय बीजुं शुं करी शके? परभावोनो कर्ता
आत्मा छे एम मानवुं [अगर कहेवुं] ते व्यवहारी [अज्ञानी] लोकोनो मोहभाव–मूढभाव छे.
(ग) आत्मानी साथे जे देह रहेलो छे ते एक स्थाने भेगो छे वळी ते जड छे, एटले के एमां जाणवानी
शक्ति नथी. ते रूपी छे अने देखाय एवो छे ते तो संयोगे करीने उत्पन्न थएलो छे, तो चेतन एटले के आत्मा
उत्पन्न थाय छे अगर नाश थाय छे ए कोण जाणे छे? अने अमुक वस्तु नाश थई, आ देह नाश थयो, अगर
उत्पन्न थयो एवुं ज्ञान करवावाळो आत्मा ते देहथी जुदां विना ज्ञान थाय नहि, अने जगतनी अंदर जे जे
संयोगो थाय छे, ते आत्माना अनुभवमां आववा योग्य छे, एमां एक पण संयोग एवो नथी के जेथी आत्मानी
उत्पत्ति थाय माटे ते नित्य छे. वळी जड वस्तुमांथी चैतन्य पदार्थनी उत्पत्ति थई अगर चैतन्यमांथी जड पदार्थनी
उत्पत्ति थई एवो अनुभव कोईने कोईपण काळे थतो नथी. आत्मानी उत्पत्ति कोईपण संयोगथी थई नथी माटे.
तेनो नाश पण कोई संयोगोमां थाय नहि माटे आत्मा नित्य छे. सर्प वगेरे प्राणीओमां क्रोध वगेरेनुं ओछा
वधतापणुं होय छे, अने पूर्व जन्मना संस्कार प्रमाणे छे, माटे पूर्व जन्म पण हतो अने नित्य हतो माटे पूर्व जन्म
हतो एटले के आत्मा नित्य छे, आत्मा द्रव्यपणे वस्तुपणे नित्य त्रिकाळ रहेवावाळो छे, परंतु तेनी पर्यायो–
अवस्थाओ बदल्या करे छे, कारण बाळक युवान तथा वृद्धावस्थानुं ज्ञान आत्माने छे. वळी प्रथम गाथामां शिष्य
सद्गुरुने वंदन करे छे एमां पण कहे छे के ‘जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो दुःख अनंत’ एटले के आत्म स्वरूप
समज्या विना हुं भूतकाळे अनंत दुःख पाम्यो छुं, एटले पण सिद्ध थाय छे के ते नित्य छे. वळी कोई पण वस्तुनो–
पदार्थनो तदन नाश होय ज नहि मात्र अवस्थांतर ज थाय छे. अने चेतन एटले के आत्मा नाश पामे तो ते केमां
भळी जाय? एक पण वस्तु एवी नहि मळे के जेमां चेतननो नाश थाय माटे आत्मा नित्य छे.
(घ) पोतानुं ज्ञान प्रगटाववा माटे आत्मामां थता क्रोध, मान, माया, लोभने पातळा पाडवा जोईए
अने मात्र मोक्ष सिवाय बीजी कोई पण अभिलाषा होवी जोईए नहि, भव प्रत्ये अनासक्ति एटले वैराग्य
उत्पन्न थवो जोईए अने सर्वप्राणी मात्र (स्व तथा पर) पर दया वसवी जोईए.
आवी पात्रता आव्या पछी पोतानी अंदर सद्गुरुदेवनो बोध शोभी उठे एटले के परिणाम पामे अने
ते बोधने बहु सारी अने सुख देवावाळी विचारणा उत्पन्न थाय छे. अने ज्यां एवी सारी विचारणा उत्पन्न
थाय त्यां पोतानुं एटले के आत्मानुं साचुं ज्ञान उत्पन्न थाय के जे ज्ञानथी मोहनो नाश करी मोक्ष पद पमाय.
उत्तर–२
(१) जे सर्व द्रव्यमां व्यापे तेने सामान्य गुण कहे छे, परंतु तेमां मुख्य छ छे.
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, अगुरुलघुत्व, प्रमेयत्व, अने प्रदेशत्व.
(२) ज्ञानना भेद आठ, दर्शनना भेद चार. ज्ञानना भेद:–कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान,
अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, केवळज्ञान.
दर्शनना भेद:–चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवळदर्शन.
(३) प्रमेयत्व गुणने लीधे पोतानो आत्मा पोताने जणाय. दरेक वस्तुमां अगुरुलघुत्व गुण छे एटले
एक गुण बीजा गुण रूपे न थाय.
(४) पुद्गलना नानामां नानां भागने परमाणु कहे छे (१) आकाशना जेटला भागने एक पुद्गल
परमाणु रोके तेटला भागने प्रदेश कहे छे. (२) बाह्य अने अभ्यंतर क्रियाना निषेधथी प्रगटती आत्मानी शुद्धि
विशेषने चारित्र कहे छे. (३)
उत्तर–३
(१) पंच परमेष्टीमां देव बे. १ अरिहंत २ सिद्ध अने तेमनुं लक्षण वीतरागता अने सर्वज्ञपणुं छे.
लोकोने साचुं सुख पामवा तीर्थंकरने उपदेश देवानी ईच्छा थाय नहीं, कारण के ते राग विनाना छे. ईच्छानो तो
तेमणे नाश ज कर्यो छे.
(२) व्यवहार नयथी गति चार छे. १ देव २ मनुष्य ३ तिर्यंच ४ नारकी
लोकोना हित माटे सिद्ध भगवान अवतार ले नहि कारण ते तो वीतराग छे. मोक्षनी अंदर बधा आत्मा
जुदा छे क्यांयेथी पण एक न थाय, कारण के सर्व द्रव्यमां अगुरुलघुत्वनो गुण रहेलो छे.