Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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धर्म
कोई वस्तु अने तेनो स्वभाव जुदा होय एम
कदी बने नहीं, एटले के वस्तुनो स्वभाव सदाय
वस्तुमां ज रहे. आत्मानो स्वभाव सदाय आत्मामां
ज छे. स्वभाव ए ज वस्तुनो धर्म होवाथी आत्मा
पोते ज धर्मस्वरूप छे.
हवे जे वस्तु पोते ज धर्मस्वरूप छे तेने धर्म
माटे बहारनी मददनी जरूर केम रहे? आत्मानो धर्म
सदाय आत्मामां ज छे; कोई परथी आत्मानो धर्म
नथी. तुं गमे ते क्षेत्रे जा के गमे ते काळ होय तोपण
तारो धर्म ताराथी जुदो नथी. तुं पोते ज धर्मस्वरूप
होवा छतां तने तारी पोतानी ज खबर अनादिथी
नथी ते कारणे तारामां धर्म होवा छतां ते तने प्रगट
अनुभवमां आवतो नथी. अने तने तारा
धर्मस्वरूपमां शंका ए ज अधर्म छे, अने ते कारणे ज
संसार छे. ते अधर्म टाळवा तारा धर्म–स्वभावने
ओळख–ए एक ज उपाय छे.
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
शिष्ट साहित्य भंडार * मोटा आंकडिया * काठियावाड