Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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ती.र्थ. धा.म. श्री.सु.व.र्ण.पु.री म. ध्ये
– परम पूजय सद्गुरु देव निवास – श्री जैन स्वाध्याय मंदिरमां चोडेला –
उजवळता प्रगटावनार चाकळाओ
जेने पुण्यनी रुचि छे तेने जडनी
रुचि छे तेने आत्माना धर्मनी रुचि
नथी.
एक एक वस्तुमां वस्तुपणाने
निपजावनारी परस्पर विरुद्ध
अस्ति, नास्ति आदि बे शक्तिओनुं
प्रकाशवुं ते अनेकान्त छे.
आ ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते,
स्वरूपनी प्राप्तिना ईच्छक पुरुषोए
साध्य–साधक भावना भेदथी बे
प्रकारे, एक ज नित्य सेववा योग्य
छे, तेनुं सेवन करो.
सद्गुरुदेव श्री का’न प्रभुना चरण
समीपे जेनुं जीवन छे ते जीवन
धन्य छे.
चैतन्य पदार्थनी क्रिया चैतन्यमां
होय, जडमां न होय.
वस्तु विचारत ध्यावतै,
मन पावै विश्राम;
रस स्वादत सुख उपजै
अनुभव याको नाम.
व्यवहारनय ए रीत जाण
निषिद्ध निश्चयनय थकी;
निश्चयनयाश्रित मुनिवरो
प्राप्ति करे निर्वाणनी.
नमः समयसाराय
समयसार
जिनराज है,
स्याद्वाद
जिनवैन.
अहो! श्री सत्पुरुष!
अहो! तेमनां वचनामृत,
मुद्रा अने सत्समागम!
वारंवार अहो! अहो!!
१०
हुं एक, शुद्ध, सदा अरूपी,
ज्ञानदर्शनमय खरे,
कंई अन्य ते मारुं जरी
परमाणुमात्र नथी अरे!
११
छूटे देहाध्यास तो,
नहि कर्ता तुं कर्म;
नहि भोक्ता तुं तेहनो,
एज धर्मनो मर्म.
१२
करै करम सोई करतारा,
जो जानै सो जाननहारा.
१३
आत्मा पोतापणे छे अने
परपणे नथी एवी जे द्रष्टि
तेज खरी अनेकांत द्रष्टि छे.
१४
द्रव्यद्रष्टि ते ज सम्यक्द्रष्टि छे.
एक होय त्रणकाळमां,
परमारथनो पंथ;
प्रेरे ते परमार्थने
ते व्यवहार समंत.
१प
एक परिनामके न करता दरव दोई,
दोई परिनाम एक दर्व न धरतु है;
एक करतूति दोई दर्व कबहू न करै,
दोई करतूति एक दर्व न करतु है.
१६
जैन धर्मने काळनी मर्यादामां
केद करी शकाय नहि.
१७
तत्प्रति प्रीतिचित्तेन
येन वार्तापि हि श्रुता।
निश्चितं स भवेद्भव्यो
भाविनिर्वाण भाजनम्।।
१८
भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट,
सीतल चित्त भयौ जिमचंदन;
केलि करे सिव मारगमैं,
जगमांहि जिनेश्वर के लघुनंदन.
१९
गमे तेवा तुच्छ विषयमां प्रवेश
छतां उज्जवल आत्मानो स्वत:
वेग वैराग्यमां झंपलाववुं ए छे.
२०
तुं स्थाप निजने मोक्षपंथे,
ध्या अनुभव तेहने;
तेमांज नित्य विहार कर,
नहि विहर परद्रव्यो विषे.
२१
शुभाशुभ परिणामनुं
स्वामित्व ते मिथ्यादर्शन छे.
२२
गम पड्या विना आगम
अनर्थकारक थई पडे छे.
संत विना अंतनी वातमां
अंत पमातो नथी.
२३
ज्ञान तेनुं नाम के जे
आस्रवोथी निवर्ते.
ज्ञाननुं फळ विरति.
२४
ज्ञानथी ज रागद्वेष निर्मूळ थाय.
ज्ञाननुं मुख्य साधन विचार छे.
विचारदशानुं मुख्य साधन
सत्पुरुषना वचननुं यथार्थ ग्रहण
छे.
(वधु माटे जुओ पानु छेल्लुं)