Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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वत्थु सहावो धम्मो–वस्तुनो वर्ष १: अंक ९
स्वभाव ए ज धर्म श्रावण: २०००
सम्यकत्वनुं माहात्म्य
(१) सम्यकत्व वगरना जीवो पुण्य सहित होय तोपण
ज्ञानीओ तेने पापी कहे छे; कारण के पुण्य–पाप रहित
स्वरूपनुं भान न होवाथी पुण्यना फळनी मीठाशमां
पुण्यनो व्यय करीने–स्वरूपना भान रहित होवाथी
पापमां जवाना छे.
(२) सम्यकत्व सहित नरकवास पण भलो छे अने सम्यकत्व
रहितनो देवलोकमां निवास पण शोभा पामतो नथी.
(परमात्म प्रकाश–पानुं २००)
(३) अपार एवा संसार समुद्रथी रत्नत्रयीरूप जहाजने पार
करवा माटे सम्यग्दर्शन चतुर खेवटीओ (नाविक) छे.
(४) जे जीवने सम्यग्दर्शन छे ते अनंत सुख पामे छे अने जे
जीवने सम्यग्दर्शन नथी ते पुण्य करे तोपण अनंत दुःख
भोगवे छे.
आवा अनेक महिमाओ श्री सम्यग्दर्शनना छे. माटे दरेक
जीवो के जेओ सदा अनंतसुख ज ईच्छे छे तेओने ते पामवानो
प्रथम उपाय सम्यग्दर्शन ज छे.
श्रीमद् राजचंद्रजी पण आत्मसिद्धिना प्रथम ज पदमां कहे
छे के:–
जे स्वरूप समज्या विना
पाम्यो दुःख अनंत
समजाव्युं ते पद नमुं
श्री सद्गुरु भगवंत. ।। ।।
जे स्वरूप समज्या विना – एटले – आत्माना भान
वगर अर्थात् सम्यग्दर्शन पाम्या वगर अनादि काळथी
अनंतदुःख एकलुं दुःख ज भोगव्युं छे, ते अनंत दुःखथी मुक्त
थवानो उपाय एक मात्र सम्यग्दर्शन ज छे बीजो नथी.
ते सम्यग्दर्शन आत्मानो ज स्वस्वभावी गुण छे.
सुखी थवा माटे...........
सम्यग्दर्शन प्रगटावो.