: १४८ : आत्मधर्म २००० : श्रावण :
परम पूज्य सद्गुरुदेवनुं व्याख्यान. अक्षयत्रीज ता. २५ – ४ – ४
कारण परमात्मा ने कार्य परमात्मा
नियमसार गाथा ७ मी अरिहंत देवना स्वरूपनुं वर्णन
भगवान अरिहंतदेव कार्य परमात्मा छे. कार्य एटले आत्मानी स्वतंत्र पूर्णानंद दशा प्रगटी ते कार्य,
अर्थात् अवस्था ते कार्य छे अने तेनुं कारण द्रव्य पोते ज छे. द्रव्यमां त्रणकाळमां आवरण नथी, आत्माने कोई
कर्मना आवरणनो पडदो परमार्थे नथी. वर्तमान अवस्थाद्रष्टिए जोतां एक समय पूरती अवस्थामां आवरण
देखाय छे, पण वस्तुमां आवरण नथी.
प्रश्न:– वस्तु द्रष्टिथी जोतां आवरण नथी देखातुं, तो शुं आवरण सर्वथा नथी?
उत्तर:– वस्तुने आवरण कदी होय नहीं, एक समय पूरती विकारी अवस्थामां भावबंधन छे, अरिहंत
भगवानने ते भावबंधन टळी गयुं छे तेथी ‘कार्य परमात्मा’ छे; केमके पूर्णदशारूपी कार्य तेमने प्रगट छे. ते
कार्यनुं कारण वस्तु पोते ज छे. वस्तु त्रणेकाळ संपूर्ण आवरण रहित छे.
वस्तुने आवरण होई शके नहीं; आवरण कह्युं त्यां अवस्थानुं लक्ष थयुं. आत्मा तो अनंतगुणनी
शक्तिनो पिंड छे, ते वस्तु के वस्तुना गुणमां कदी आवरण नथी; पण एक समयनी अवस्थाने जुए तो एक
समय पूरतुं आवरण पर्यायमां छे.
प्रश्न:– पर्याय एक ज समयनी केम? एक पर्याय साथे बीजी जोडाईने लांबी केम नहीं?
उत्तर:– बे समयनी पर्याय कदी भेगी थती ज नथी. एक समयनी पर्याय गई त्यारे बीजा समयनी
पर्याय आवी छे. पहेला समयनी पर्याय रहीने बीजा समयनी पर्याय आवती नथी, माटे पर्याय एक ज समय
पूरती छे.
प्रश्न:– भूत–भविष्यनी पर्याय वर्तमानमां मेळवीए तो पर्याय लांबी थाय ने?
उत्तर:– पर्याय कोई रीते एक समय करतां वधारे लांबी होय नहीं. भूत–भविष्यनी पर्याय तो द्रव्यनी
शक्ति अर्थात् गुण छे. वळी भविष्यनी पर्याय वर्तमान साथे मळी ज शके नहीं केमके ज्यारे भविष्यनी पर्याय
थशे त्यारे तो वर्तमान पर्यायनो व्यय थई गयो हशे. वर्तमान पर्याय जशे त्यारे नवी आवशे.
द्रष्टांत:– पाणीनो त्रिकाळी स्वभाव ठंडो छे, वर्तमानअवस्था उष्ण छे–ते उष्णता एक समय पूरती ज
छे. जो उष्णता वर्तमान पूरती न होत तो ठरत नहीं. एक समय बदलीने बीजे समये पाणी भले ऊनुं होय तो
पण बीजा समयनुं उष्णपणुं नथी; पहेला समयनी उष्णता बदलीने बीजे समये जे उष्णता छे ते नवी छे एटले
के पहेला समयनी नथी.
द्रष्टांतनो सिद्धांत:– पाणीना द्रष्टांते आत्मा पण त्रिकाळी शुद्ध छे, तेमां संसारनी मलिनता एक समय
पूरती ज छे. [बारमा गुणस्थानना छेल्ला समये चार घाती कर्मोनो सर्वथा नाश थतां केवळज्ञान प्रगट्युं.]
वस्तुमां संसार नथी पण एक समय पूरती अवस्थामां छे. वस्तु कदी पण अशुद्ध थती नथी, वस्तुमां निमित्त
नथी, आवरण नथी, कोईनी अपेक्षा नथी, वस्तु तो त्रिकाळ एकरूप निरपेक्ष छे, भंग–भेदनी बधी जाळ
पर्यायमां छे. विकार एक समय पूरतो ज छे. समय समय करतां (पोते विकार करीने) लांबु करी मूकयुं छे,
संसार तो एक समयनो छे तेने पलटतां वार लागती नथी. [चौदमा गुणस्थाननो छेल्लो समय ते हजी संसार
दशा छे अने ते समयनो नाश थतां त्यार पछीना समयमां संसार नथी.]
वस्तु त्रणेकाळ पूर्ण निरावरण छे. तेमां काळनो भेद नथी. जेम दीवो तो दीवो ज छे, सळगती ज्योत ज
छे, तेमां जे पडदो छे ते वर्तमान पूरतो छे. आखा दीवाने जो पडदो होय तो दीवो ज न रहे, दीवानो अभाव
ठरे; पण पडदो वर्तमान पूरतो छे. ते टळी शके छे. ते टळ्यो के दीवो तो दीवो ज छे. पडदा वखते पण दीवो ज
हतो. पडदो दूर थतां पण दीवो ज छे. तेम आत्मा तो त्रिकाळ शुद्ध चैतन्य ज्योत ज छे; अवस्था पूरतुं आवरण