ATMADHARMA श्र सदगरुदवय नम Regd. No. B. 4787
(३) जीव अने शरीर बन्ने भेगा थईने मोक्षनुं कार्य करे तो जीव अने शरीर बन्नेए मोक्षक्षेत्रमां जवुं
जोईए, पण तेम तो बनतुं नथी. जीव एकलो मोक्षक्षेत्रमां जाय छे. श्रीमद् राजचंद्र आत्मसिद्धिशास्त्रमां कहे छे के:–
एज धर्मथी मोक्ष छे, तुं छो मोक्षस्वरूप;
अनंत दर्शन ज्ञान तुं, अव्याबाध स्वरूप. ११६.
अहीं तो जीवने एकलाने मोक्षस्वरूप कह्यो छे. जीव अने शरीरने मोक्षस्वरूप कह्यां नथी.
(४) एक द्रव्यनी पर्याय ते द्रव्य पोते ज करे, एक द्रव्य बीजा द्रव्यने कांई करी शके नहीं. दरेक द्रव्य
स्वद्रव्ये–क्षेत्रे–काळे–भावे अस्तिरूपे छे, अने परद्रव्ये–क्षेत्रे–काळे भावे नास्तिरूपे छे. शरीर अनंत द्रव्यो छे. तेनुं
दरेक परमाणु पण पोतपोताने स्वद्रव्ये–क्षेत्रे–काळे–अने भावे अस्तिरूपे छे, अने शरीरना बीजा परमाणुना
द्रव्ये–क्षेत्रे–काळे अने भावे नास्तिरूपे छे. एटले एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहीं, एटले जीवना ज्ञान
अने शरीरनी क्रियाथी मोक्ष थाय ए मानवुं तद्न खोटुं छे.
साचो अर्थ अने व्याकरण साथेनो तेनो मेळ.
जीवमां सम्यक्ज्ञान थाय त्यारे तुरत ज संपूर्ण वीतरागता प्रगटती नथी. सम्यक्ज्ञान कोई वखते
लब्धरूप अने कोई वखते उपयोगरूप होय छे. एटले ज्ञान सम्यक् होय पण पूर्ण वीतरागता प्रगटी न होय त्यां
सुधी मोक्ष थतो नथी. वीतरागता ए जीवनी शुद्ध क्रिया छे. तेने चारित्रनी पूर्णता कहेवामां आवे छे. तेने
ज्ञाननी स्थिरता पण कहेवामां आवे छे. एटले ए सुत्रनो अर्थ नीचे प्रमाणे थाय छे.
(१) जीवनुं सम्यग्ज्ञान–अने सम्यग्चारित्रनी पूर्णताथी मोक्ष थाय छे.
(२) जीवनुं सम्यग्ज्ञान अने ते सम्मग्ज्ञाननी ज्ञानमां पूर्ण ठरवारूप–स्थिरतारूप क्रियाथी मोक्ष थाय छे.
(३) जीवनुं सम्यग्ज्ञान अने पूर्ण वीतरागरूप पोतानी पर्याय (क्रियापरिणमन) थी मोक्ष थाय छे.
(४) जीवना बे गुणोनी पूर्णता त्यां आवती होवाथी व्याकरणकृतिए तेमां द्विवचन सूचक ‘भ्याम्’ शब्द
यथार्थ वपरायो छे.
(प) सम्यग्ज्ञान होय त्यां सम्यग्दर्शन होय तेथी ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्राणी मोक्षमार्ग’ ––एम पण
उपरना सूत्रनो अर्थ थाय छे.
जय समयसर!
(सुवर्णपुरीना समाचार)
श्रावण सुद १२ मंगळवार ता. १–८–४४ ना रोज व्याख्यानमां छठ्ठी वखत श्री समयसार वांचननी
पूर्णाहुति थई छे अने श्रावण सुद १३ बुधवार ता. २–८–४४ ना मांगळिक दिवसे सातमी वखत व्याख्यानमां
समयसारजीनुं वांचन अद्भूत शैलीथी शरू थयुं छे. समयसार खरेखर एक अपूर्व शास्त्र छे ए अपूर्व
शास्त्रमां रहेला केवळीभगवानना संदेशाना एक एक शब्द छणी छणीने परम पूज्य सद्गुरु देव सातमी वखत
सभा वच्चे संभळावी रह्या छे, अने ए रीते शासननी महान प्रभावना तेओश्री करी रह्या छे के जे भव्य
जीवोना महान लाभनुं कारण छे.
समयसार–पूर्णाहुतिना दिवसे देरासरजीमां भक्ति वखते भक्तोनो उत्साह अजब हतो! भक्तिमां प्रथम
‘दर्शनस्तुति’ नुं स्तवन (स्तवनमंजरी पानुं ३००) गवडाव्या पछी ‘जय समयसार जय समयसार तथा जय
गुरुराज जय गुरुराज’ एवी धून बेहद उल्लासथी लेवडाववामां आवी हती. आम अत्यंत अत्यंत उल्लासपूर्वक
भक्ति पूरी थता देव–गुरु–शास्त्रना जयनादना गगन भेदी अवाजो करतां भक्तो धरातां न हतां.
सांजे श्री समयसारजीनी आरती उतारवामां आवी हती. बीजे दिवसे जे दिवसे समयसारजीनुं सातमी
वखतनुं वांचन शरू थयुं ते दिवसे सवारे समयसारजी शास्त्रनी पूजा करवामां आवी हती, अने बपोरे सातमी
वखतना वांचननी मांगळिक शरूआत थई हती. आ रीते परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव समयसारशास्त्रद्वारा अनेक
भव्य जीवो उपर महान उपकार करी रह्या छे. भक्तो अंतरथी पोकार करे छे के––
जयवंत वर्तो श्री समयसार अने तेना समजावनार श्रीसद्गुरुदेव!
मुद्रक: – जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. १० – ८ – ४
प्रकाशक: – जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज मोटा आंकडिया