• ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्ष: •
लेखक: – रामजीभाई माणेकचंद दोशी
‘ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्ष:’ घणुं टूंकुं सूत्र छे. पण आ नाना सूत्रमां गंभीर मर्म रहेल छे, ते मर्मनी जेने
खबर नथी ते अर्थ करवामां भूल करे ए स्वाभाविक छे.
आ सूत्र संस्कृत भाषामां छे. एटले जेओ मागधी भाषाना मूळ सूत्रने ज मात्र माने अने ते सिवाय
बीजा कोईने तीर्थंकर प्रणित न माने तेने तो आ सूत्र साथे कांई संबंध होवो जोईए नहीं, छतां केटलाको तथा
बीजाओ आ सूत्र पोतानी मान्यताने पोषे छे–टेको आपे छे एम मानी लई पोताने अनुकूळ अर्थ करे छे. ते
अर्थ शुं कहे छे अने ते बराबर छे के केम ते अहीं विचारीए.
केटलाको कहे छे के–आत्मानुं ज्ञान अने जड (शरीर) नी क्रियाथी मोक्ष थाय, तेना टेकामां एवी दलील
करे छे के–आ सूत्र द्विवचनमां छे माटे आत्मानुं ज्ञान अने शरीरनी क्रिया एम बे न लईए तो द्विवचन आवे
नहीं; माटे व्याकरण द्रष्टिए एवो ज अर्थ थाय.
आ सूत्र द्विवचनमां छे ए खरूं छे, पण तेथी शरीरनी क्रिया एवो अर्थ थाय नहीं. तेनां कारणो नीचे
प्रमाणे छे.
व्याकरण द्रष्टिए अर्थ खोटो
१––शरीर एक द्रव्य नथी, पण अनंत पुद्गल द्रव्योनुं बनेलुं छे; तेथी एक आत्मा अने अनंत पुद्गल
द्रव्यो (शरीर) नी क्रिया होवाथी अनंत द्रव्योनी क्रिया अनंती थाय. एटले मोक्ष ते एक आत्माना ज्ञान अने
अनंत पुद्गलोनी जे अनंती क्रिया एक समये थाय छे तेनाथी थाय एवो अर्थ थाय. ए सूत्रमां तो द्विवचन छे
अने बहुवचन नथी. माटे ते अर्थ व्याकरण द्रष्टिए खोटो ठरे छे.
२––शरीरनुं कार्य ज्यारे थाय छे त्यारे जडकर्मोनुं पण कार्य थाय छे. जडकर्मना उदयने अने शरीरने क्रियानो
संबंध छे. तेथी जो जीवना आत्मज्ञानथी अने शरीरनी क्रियाथी मोक्ष थतो होय तो खरी रीते एम कहेवुं जोईए के
जीवना आत्मज्ञान, अनंत कर्मनी क्रिया अने शरीरनी क्रिया एम त्रणथी मोक्ष थाय. शरीर अनंत द्रव्योरूप छे, अने
जड कर्म पण अनंत द्रव्यो छे, छतां दरेकने एक एक द्रव्य लईए तो पण त्रण थया, एटले पण उपरनो अर्थ
व्याकरण द्रष्टिए खोटो ठरे छे. त्रण थाय त्यां संस्कृतमां द्विवचन आवतुं नथी, पण बहुवचन आवे छे.
(३) दरेक जीव एक छे. शरीर अनंत द्रव्योनो पिंड छे. शरीरना एक पिंडनी स्थूळद्रष्टिए पण एक क्रिया
होती नथी, जेम जीव ध्यानमां होय त्यारे शरीरनी अवस्थानी क्रिया विचारीए तो पग वगेरे बेसवाना आकारे
छे, केड उपरना भागनी क्रिया तेनाथी जुदी एटले टट्टार ऊभी छे अने हाथनी स्थिति वळी तेथी पण जुदी होय
छे. मुखनी स्थिति टट्टार के नमेली पण होय छे. ए रीते जुदा जुदा अवयवोनी क्रिया जुदी जुदी छे, पण सूत्रमां
तो द्विवचन छे; अने आ तो बे करतां वधारे क्रिया थई ए रीते पण व्याकरण द्रष्टिए ते अर्थ खोटो ठरे छे.
(४) केटलाक जीवोने घाणीमां घालीने दुष्टो पीले छे, अने ज्ञानी साम्यभाव राखी मोक्ष प्राप्त करे छे; हवे
अहीं घाणीमां पीलावाना कार्यमां शरीरना अवयवोनी क्रियाओ जुदी जुदी थाय एटले पण त्यां ‘भ्याम्’
द्विवचन बतावनारो शब्द न जोईए, पण बहुवचन बतावनारो शब्द जोईए. ए रीते पण अर्थ खोटो ठरे छे.
सिद्धांतिक द्रष्टिए ते अर्थ खोटो छे.
(१) दरेक जीव एक चैतन्य द्रव्य छे. मोक्ष जीवनी पूर्ण पवित्र अवस्था छे. मोक्ष एटले विकारी
अवस्थाथी मुक्त थवुं, जीव पोते पोता वडे पोतामां विकार करे छे, एटले पोते पोतावडे पोतामांथी विकार टाळे
तो टळी शके, जीव जो जडनुं कांई कार्य करे तो जीव जड थई जाय. जो शरीर जीवनुं कार्य करे तो शरीर पुद्गल
अनंत द्रव्यो मटी एक चैतन्य द्रव्य थई जाय. एम द्रव्योनो लोप थवा लागे तो जीवनो पण लोप थई जाय.
एटले जीवनुं आत्मज्ञान अने शरीरनी क्रियावडे मोक्ष थाय एम मानवुं ते एकली भ्रमणा छे.
(२) जीवमां पुद्गल व्यापतुं नथी. पुद्गलमां जीव व्यापतो नथी. त्यारे पुद्गल जे पोतामां व्यापे छे
अने जीवमां व्यापतुं नथी एवा अनंता पुद्गलो पोतानी क्रियाथी आत्माने शी रीते मोक्षमां लई जाय? लई
जई शके नहीं ए स्पष्ट छे.