Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
• निश्चय अने व्यवहार •
[मोक्षमार्ग प्रकाशक पानुं २५४ थी २५६]
प्रश्न:–श्री समयसारादिमां शुद्धआत्माना अनुभवने निश्चय कह्यो छे तथा व्रत, तप, संयमादिकने व्यवहार
कह्यो छे अने अमे पण एमज मानीए छीए!
उत्तर:–शुद्ध आत्मानो अनुभव ते साचो मोक्षमार्ग छे तेथी तेने निश्चय कह्यो छे, हवे अहीं स्वभावथी अभिन्न
अने परभावथी भिन्न एवो शुद्धनयनो अर्थ जाणवो पण संसारीने सिद्ध मानवो एवो भ्रमरूप शुद्ध शब्दनो अर्थ न
जाणवो. वळी व्रत, तपादि कांई मोक्षमार्ग नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए उपचारथी तेने मोक्षमार्ग कहीए छीए
तेथी तेने व्यवहार कह्यो; ए प्रमाणे भूतार्थ–अभूतार्थ मोक्षमार्गपणा वडे निश्चय–व्यवहारनय कह्या छे, एम ज मानवुं,
पण ए बन्ने ज साचा मोक्षमार्ग छे अने ए बन्नेने उपादेय मानवा ए तो मिथ्याबुद्धि ज छे.
प्रश्न:– श्रद्धान तो निश्चयनुं राखीए छीए तथा प्रवृत्ति व्यवहाररूप राखीए छीए, ए प्रमाणे ए बन्ने
नयोने अमे अंगीकार करीए छीए.
उत्तर:–एम पण बनतुं नथी, कारण के निश्चयनुं निश्चयरूप तथा व्यवहारनुं व्यवहाररूप श्रद्धान करवुं
योग्य छे. पण एक ज नयनुं श्रद्धान थतां तो एकांतमिथ्यात्व थाय छे; वळी प्रवृत्तिमां नयनुं प्रयोजन ज नथी
कारण के प्रवृत्ति तो द्रव्यनी परिणति छे, त्यां जे द्रव्यनी परिणति होय तेने तेनी ज प्ररूपण करीए ते निश्चयनय
तथा तेने ज अन्य द्रव्यनी प्ररूपीए ते व्यवहारनय; ए प्रमाणे अभिप्रायानुसार प्ररूपणथी ते प्रवृत्तिमां बंने
नय बने छे पण कांई प्रवृत्ति ज तो नयरूप नथी तेथी ए प्रमाणे पण बन्ने नयोनुं ग्रहण मानवुं मिथ्या छे.
प्रश्न:– तो शुं करीए? (तो अमारे समजवुं शुं?)
उत्तर:– निश्चयनयवडे जे निरूपण कर्युं होय तेने तो सत्यार्थ मानी तेनुं श्रद्धान अंगीकार करवुं तथा
व्यवहारनय वडे जे निरूपण कर्युं होय तेने असत्यार्थ मानी तेनुं श्रद्धान छोडवुं. श्री समयसारमां पण एज कह्युं छे के:–
सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं त्याज्यं यदुक्तं जिनै–
स्तन्मन्ये व्यवहार एव निखिऽलो–प्यन्याश्रयस्त्याजितः।
सम्यग्निश्चयमेकमेवतदगी निष्कंप–माक्रम्य किं–
शुद्ध ज्ञानघने महिम्नि न निजे वध्मंति संतो धृतिम्।।
अर्थ:–जेथी बधाय हिंसादिवा अहिंसादिमां अध्यवसाय छे ते बधा ज छोडवा एवुं श्री जिनदेवे कह्युं छे,
तेथी हुं एम मानुं छुं के– जे पराश्रित व्यवहार छे ते सघळो ज छोडाव्यो छे तो सत्पुरुष एक निश्चयने भला
प्रकारे निश्चयपणे अंगीकार करी शुद्ध ज्ञानघनरूप पोताना महिमामां स्थिति केम करता नथी.
भावार्थ:–अहीं व्यवहार तो त्याग कराव्यो छे, माटे निश्चयपणे अंगीकार करी निज महिमा प्रवर्तवुं युक्त
छे. वळी षट्पाहुड पण कह्युुं छे के
जो सुत्तो ववहारे, सो जोई जग्गए सकज्जम्मि।
जो जग्गदि ववहारे, सो सुत्तो अप्पणो कज्जे।।३१।
अर्थ:– जे व्यवहारमां सूता छे ते योगी पोताना कार्यमां जागे छे तथा जे व्यवहारमां जागे छे ते पोताना
कार्यमां सूता छे. माटे व्यवहारनयनुं श्रद्धान छोडवा निश्चयनयनुं श्रद्धान करवुं योग्य छे व्यवहारनय स्वद्रव्य–
परद्रव्यने तेना भावोने वा कारण–कार्यादिक कोईना कोईमां मेळवी निरूपण करे छे माटे एवा ज श्रद्धान
मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो, वळी निश्चयनय तेने यथावत् निरूपण करे छे. कोईने कोईमां मेळवतो
नथी एवा ज श्रद्धानथी सम्यक्त्व छे माटे तेनुं श्रद्धान करवुं.
मुद्रक:– जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय दास मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. १०–९–४४
प्रकाशक :–जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज मोटा आंकडिया