: आसो : २००० : २०७ :
पेटना अमृत भरी राख्यां छे ने तेनो प्रवाह अहीं वहेतो मूक्यो छे
भाग्य छे के वीतरागनी वाणी रही गई!
दिवसे (श्री जयधवला पान ११५–५२) परम पूज्य सद्गुरुदेवे आपेला व्याख्यानमांथी –
अमारा पच्चखाणमां साधक अने साध्य वच्चे (चारित्र अने वीतरागत वच्चे) आंतरो ज न होय;”
[पच्चखाण अने प्रत्याख्यान शब्द एकार्थ वाचक छे.]
अहा! जुओ तो खरा आ मुनिदशा! मुनिपणुं अने केवळज्ञान वच्चे आंतरो ज नथी एवुं मुनिपणानुं
स्वरूप स्थाप्युं छे. निर्ग्रंथ मुनिपणामां कांईपण निर्दोष आहारनी के पंचमहाव्रतनी वृत्ति आवे ते पच्चखाणमां
भंगरूप छे. पहेलांं ज्यारे अमे मुनिपणुं लीधुं– सातमे गुणस्थाने निर्विकल्प दशामां स्थिर थया त्यारे अमे
चारित्र ग्रहण कर्युं ते चारित्रमां सातमेथी सीधा वीतराग थई जवानी ज वात हती, पाछा छठ्ठे आववानी वात
ज न हती, एवुं अमारुं चारित्र (प्रत्याख्यान) हतुं, परंतु अमारा पुरुषार्थनी नबळाईने कारणे अमे पाछा छठ्ठे
आव्या ते अमारा चारित्रनो भंग थयो छे, ते अमारा निश्चय चारित्रना पच्चखाणमां दोष लाग्यो छे, ते
दोषनो समाधिमरण वखते त्याग करे छे ते अपेक्षाए तेने प्रतिक्रमण कह्युं छे, एम आचार्य भगवान कहे छे.
सामान्य प्रत्याख्यानमां तो वच्चे भेद पडे ज नहीं, तेमां वच्चे कांई वृत्ति न आवे, जेवो शुद्ध स्वभाव छे
एवी ज शुद्ध पर्याय थई जाय ते प्रत्याख्यान छे.
सातमा गुणस्थान पछी छठुं गुणस्थान आव्युं ते चारित्रनो भंग पड्यो छे, प्रत्याख्यानमां दोष लाग्यो छे.
निश्चय महाव्रतमां तो सत्य दयादि बधा विकल्पनो पण त्याग छे, पांच महाव्रत पण व्यवहार छे तेनो पण त्याग छे.
आत्मानो शुद्ध स्वभाव तद्न निर्विकल्प छे, तेमां कांई वृत्ति आवे ते बधानुं अमे साधु थया त्यारे
(निर्विकल्प थया त्यारे) प्रत्याख्यान कर्युं हतुं अने अमे तो वस्तुमां ज ठरी जवानो निश्चय कर्यो हतो. अमारा
चारित्र अने केवळज्ञान वच्चे भेद न हतो एम वच्चेनो विकल्प तोडी नांखे छे–नकार करे छे के अमे तो ते ज
क्षणे वीतरागता आवे तेवुं चारित्र लीधुं हतुं; पण शुं करीए? अमारी शक्तिनी निर्बळताए निर्दोष आहार
लेवानी वृत्ति आवी गई ते पण अमारा निश्चय महाव्रतमां भंग पड्यो छे.
अहा!!! जुओ तो खरा दशा! लोकोना भाग्य तो जुओ! जाणे साक्षात वीतरागनी वाणी! वात काने पडतां
अंदर झणझणाट थई जाय छे के जाणे केवळज्ञान आव्युं! संतोए पोताना हृदयकुंडमां वीतरागनां पेटनां अमृत भरी
राख्यां छे अने तेनो प्रवाह अहीं वहेतो मूक्यो छे; अहा! जगतना भाग्य छे के वीतरागनी वाणी रही गई!
आचार्य भगवान कहे छे के– अमारुं कार्य तो एटलुं हतुं के विकल्प तोडीने सातमे गुणस्थाने स्वरूपनी
रमणतामां जोर पूर्वक ठर्या त्यांथी पाछा छठ्ठे आववानी वात ज न हती. सीधी वीतरागता ज! छठ्ठे आव्या तेनो खेद छे.
सामान्य प्रत्याख्यानमां तो भंग होय ज नहीं, पण वच्चे (छठ्ठे आव्या तेथी) भंग पडी गयो छे एटले
प्रतिक्रमण आवे छे. जो सामान्य पच्चखाण एकरूप रह्युं होत तो मुनिने प्रतिक्रमण न कहेवात. मरणवखतना
प्रतिक्रमणथी तो खरी रीते सामान्य प्रत्याख्यानमां पडेला भंगनी संधि करी छे.
आजे श्रुतपचंमी! आजे ज्ञाननी आराधनानो दिवस छे. आजे शुं न समजाय? आजे तो केवळज्ञान
थाय. पाछा फरवानी वात ज आ चोपडे नथी. आजे तो भूतबलि अने पुष्पदंत आचार्योए श्रुतनी पूजा करी
हती, ए श्रुतपूजानो दिवस छे.
मुनिने समाधि वखते छे तो खरेखर प्रत्याख्यान, पण मुनिदशा वखते लीधेला सामान्य प्रत्याख्यानमांथी
खसी गया हता तेथी पूर्वना प्रत्याख्याननुं ज्ञान कराववा माटे तेने प्रतिक्रमण कह्युं छे; केमके प्रतिक्रमण होय त्यां
पहेलांं प्रत्याख्यान होवुं जोईए, ते प्रत्याख्यानमां भंग पड्यो माटे प्रतिक्रमण छे–ए रीते पूर्वनुं प्रत्याख्यान याद
आवे छे. प्रथम मुनिदशा वखते लीधेला सामान्य पच्चखाण अने समाधि मरण वच्चे संधि कराववा अहीं
प्रतिक्रमण कह्युं छे. समाधि वखते खरेखर तो मुनिए चारित्र अने केवळदशा वच्चेना अंतरनो नकार कर्यो छे. आ
भवे केवळ नथी पण आ समाधि मरणथी मुनिओ केवळ साथे संधि करे छे–एम आचार्यदेव कहे छे.