Atmadharma magazine - Ank 013
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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नूतन वर्षे
देह छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत,
ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणित.
१ विश्वनी कोईपण शक्ति
सत्यने रोकवा समर्थ नथी.
२ जैनधर्म ए वस्तुस्वरूप
बतावनार विश्वधर्म छे.
३ सर्वसिद्धिनी प्राप्ति
पुरुषार्थथी ज छे.
४ जैनो कर्मवादी नथी,
पण स्वभाववादी छे.
प आत्मधर्मनी उन्नति
हो! उन्नति हो!
६ धर्म तो वस्तुनुं स्वतंत्र
स्वरूप छे, धर्म पराधीन नथी.
७ जेणे शासननो
जयजयकार वरतावी दीधो छे, एवा
स्वरूपस्थित श्री सद्गुरुदेवनो
प्रभावना उदय जगतनुं कल्याण
करो! जयवंत वर्तो!
शिष्ट साहित्य भंडार * मोटा आंकडिया * काठियावाड