जय हो! जय हो! भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य देवनो जय हो!
सळग अक
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सर्वज्ञ परमात्मा जिनेश्वर अरिहंत देवनो सेवक थवा माटे आखी दुनियाने मूकी देवी पडे एटले के
जगतनी दरकार छोडी देवी पडे. आखा जगतनी प्रतिकूळता आवी पडे तोय भगवान अरिहंत देवनी श्रद्धा अने
भक्ति न छोडाय. पोताना पुरुषार्थथी संसार तरफनो अशुभ भाव छेदीने साचा देव–गुरु प्रत्येनी भक्ति, पूजा,
विनय, वगेरेनो शुभ भाव आव्या वगर गृहीतमिथ्यात्व पण टळे नहीं.
भगवानना भक्त भगवानने पधरावतां कहे छे के:–
आवो आवो सीमंधरनाथ अम घेर आवो रे, रूडा भक्ति वत्सल भगवंत नाथ पधारो रे.
हुं कई विध पूजुं नाथ कई विध वंदुं रे? मारे आंगणे विदेही नाथ जोई जोई हरखुं रे...
[जीनेन्द्र स्तवन मंजरी पा. २५८]
वीतराग देव–गुरुनी भक्तिथी उछळता वीतरागना सेवक कहे छे के हे प्रभु! हे नाथ! आपने कई रीते
पूजुं? आखी दुनियाने वोसरावी दईने अने आ शरीरना कमळ बनावीने ते वडे तमारी पूजा करूं के कई रीते
पूजुं? (अहीं अज्ञानता नथी पण विनय छे, भक्तिनो उल्लास छे.) पहेलांं तो वीतराग देव–गुरुनी भक्तिमां
सर्वस्व अर्पणता जोईए, ते विना वीतरागनो भक्त कहेवाय नहि.
भीडने संभाळे ते भगवाननो भक्त नथी. जगतमां भीड केवी? अरिहंतनो भक्त भीडने भाळतो ज
नथी. ए तो नीकळ्यो ते नीकळ्यो, अरिहंत देवनो सेवक थयो, हवे अरिहंतपद लीधे ज छुटको! अरिहंतनो भक्त
थयो ते अरिहंतपद लीधा वगर रहे ज नहीं, अरिहंत जेवा थये ज छूटको. आनुं नाम अरिहंतनो भक्त, आनुं
नाम वीतरागनो सेवक अने आनुं नाम जैन.
(परम पूज्य सद्गुरु देवना सत्तास्वरूप उपर पर्युषण
वखते अपायेला व्याख्यानमांथी)
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
• शिष्ट साहित्य भंडार, दास कुंज, मोटा आंकडिया – काठियावाड •