सुवर्णपुरीमां मागशर वद ८ नो दिवस
भगवान श्री कुंदकुंद देवना ‘आचार्यपद
आरोहण दिन’ तरीके घणा ज उल्लास पूर्वक
उजववामां आव्यो हतो. तथा ते दिवसे कुंदकुंद
भगवानना ‘अंतरंग जीवनचरित्र’ उपर
व्याख्यानमां अद्भूत शैलीथी पू. गुरुदेव श्री ए
प्रकाश पाडयो हतो.
: ३४ : आत्मधर्म : पोष : २००१ :
(अनुसंधान पा. ४८ थी चालु)
गुणस्थाने मुनि शुद्धोपयोगमां लीन होय छे तेमां टकी न शके त्यारे छठ्ठा प्रमत्त गुणस्थाने आवे छे. त्यां
मुख्यपणे शुभोपयोग होय छे. पण शुभभावने तेओ धर्म मानता नथी.
ते गुणस्थानोए बीराजता मुनिने शरीर प्रत्ये स्पर्श ईन्द्रिय संबंधनो राग छुटी गयो होय छे, तेथी
शरीरने ढांकवानो विकल्प आवतो नथी ए कारणे वस्त्रनो संयोग तेमने होतो नथी. शरीर प्रत्ये संयमना हेतुए
मात्र आहारपान पुरतो राग तेमने रह्यो होय छे. तेथी जरूर पडे त्यारे एक वखत हाथमां आहार ले छे. ए ज
साचा साधुनी दशा होई शके एम आचार्य महाराज स्पष्टपणे कहे छे. जेओ जैनना साधुओ होवानुं पोते माने
छे अने मनावे छे छतां वस्त्र विगेरे धारण करे छे तेओ खरा साधुओ नथी. अने ते खोटी मान्यतानुं फळ
(सीधुं के परंपराए) निगोद छे ए विगेरे मतलबे तेओए जणाव्युं छे. (जुओ सुत्रपाहुड गाथा १८)
• भगवान कुंदकुंदाचायर्ना शास्त्रोनो गुजरात कािठयावाडमां प्रचार •
गुजरात काठियावाडमां आ शास्त्रो घणा वखत सुधी लोकोना जाणवामां नहोता. गया सैकामां श्रीमद्
राजचंद्रने ते शास्त्रो प्राप्त थया अने तेनी अद्भूततानी तेमना उपर भारे असर थई. ए संबंधमां तेओ नीचे
प्रमाणे कहे छे:–
“हे कुंदकुंदादि आचार्यो! तमारा वचनो पण स्वरूपानुसंधानने विषे आ पामरने परम उपकारभुत थयां
छे ते माटे हुं तमने अतिशय भक्तिथी नमस्कार करुं छुं”
तेओए ‘परमश्रुत प्रभावक मंडळ’ स्थापी ते द्वारा आ शास्त्रो प्रसिद्ध कराववा योजना करी तेने
परिणामे तेओ छपाई बहार पड्यां छे अने मुमुक्षुओ तेनो लाभ लीए छे. सर्वोत्कृष्ट आगम श्री समयसारनो
गुरुसंप्रदायनो (गुरु परंपरागत उपदेशनो) व्युच्छेद थई गयो छे एम जोई संवत १८०७ मां पंडित
जयचंद्रजीए देशभाषामां तेने सर्व लोको वांचे–जाणे–तेनो अभ्यास करे ते हेतुथी लख्यो हतो. ते हींदी अनुवाद
परम श्रुत प्रभावक मंडले सां १९७५ मां प्रसिद्ध कर्यो.
सां १९९१ नी सालथी वीतरागना अनन्य भक्त परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
काठियावाडमां श्री समयसारनो अपूर्व उपदेश समाजने आपी महा प्रभावना करी रह्या छे. श्री समयसारनुं
व्याख्यान तेओश्रीए छ वखत सभामां पूरुं करी हाल सातमी वखत तेनुं व्याख्यान सोनगढ मुकामे करी रह्या
छे. ए प्रकारे अनेक जीवोने तेओ पावन करी रह्या छे.
आवी रीते भगवान कुंदकुंदाचार्यना नामथी अने तेना परमागमोथी काठियावाडना मुमुक्षोओ मोटी
संख्यामां परिचित थया छे अने थता जाय छे. श्री सोनगढमां भगवान श्री सीमंधर स्वामीनुं समोसरण
करवामां आव्युं छे तेमां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यने पण पधराववामां आव्या छे. तेथी भगवाननुं समोसरण
केवुं होय अने विदेहक्षेत्रे भगवानना समोसरणमां तेओ पधार्या हता तेनो ताद्रश ख्याल मुमुक्षु जीवोने मळे छे.
ए रीते भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यना नंदन परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामी मारफत भगवान
श्री महावीर स्वामीनुं शासन जयवंत वर्ती रह्युं छे.
अहो! उपकार जिनवरनो, कुंदनो ध्वनि दिव्यनो; जिन – कुंद ध्वनि आप्यां अहो! ते गुरु कहानो!
भगवान श्री महावीर स्वामीनो जय हो!
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यनो जय हो!
गुरुराज श्री कहान प्रभुनो जय हो!
ग्रंथाधिराज श्री समयसारनो जय हो!
सनातन जैन धर्मनो जय हो, जय हो!
“ शांति: “ शांति: “ शांति: