Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २००१ : आत्मधर्म : ३५ :
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
वर्ष: पोष
अंक: २००१
भगवान कुंदकुंदने अंजलि
[श्री कुंदकुंद भगवान प्रत्येना भक्तिभावथी भरेलुं आ
स्तवन सां. १९९४ ना वैशाख वद ८ ना रोज सुवर्णपुरीमां
स्वाध्याय मंदिर मध्ये श्री समयसारजी शास्त्रनी प्रतिष्ठा समये
श्री कुंदकुंदाचार्यना उपकारना स्मरण अर्थे बनाववामां आव्युं छे,
अने मागशर वद ८ ना रोज कुंदकुंद भगवानने ‘शासनना रक्षक’
नी महान पदवी (आचार्यपदवी) मळ्‌यानी तिथि छे, आचार्य श्री
कुंदकुंद भगवानना शासन पर महान–महान उपकारो वर्ते छे; आ
मागशर वद ८ ना प्रसंगे ते बधानी यादरूपे “भगवान कुंदकुंदने
अंजलि” ए स्तवन तेना अर्थ सहित आपवामां आवे छे.
]
सुख शान्ति प्रदाता, जगना त्राता, कुंदकुंद महाराज;
जन भ्रांति विधाता, तत्त्वोना ज्ञाता, नमन करूं छुं आज.
जडतानो आ धरणी उपर. हतो प्रबळ अधिकार;
कर्यो उपकार अपार प्रभु! तें, रचीने ग्रंथ उदार रे–सुख... १
वरसावी निज वचन सुधारस, कर्यो सुशीतल लोक;
समयसारनुं पान करीने, गयो मानसिक शोक रे–सुख... २
तारा ग्रंथोनुं मनन करीने, पामुं अलौकिक भान;
क्षणे क्षणे हुं ज्ञायक समरूं, पामुं केवळ ज्ञान रे–सुख... ३
तारुं हृदय प्रभु! ज्ञान–समतानुं, रह्युं निरंतर धाम;
उपकारोनी विमल यादीमां, लाखो वार प्रणाम रे–सुख... ४
श्री जीनेन्द्र स्तवन मंजरी पानुं – ३६९