Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : पोष : २००१ :
भगवान कुंदकुंदने अंजलि एटले
श्री कुंदकुंद भगवानो विनय – बहुमान
श्री कुंदकुंद भगवानने हुं आज (वैशाख वद ८ ना रोज श्री समयसारनी प्रतिष्ठा समये) नमस्कार करूं
छुं. कुंदकुंद भगवान केवा छे? सुख अने शांतिना आपनार छे, जगतना रक्षणहार एटले के जगतना जीवोने
अज्ञान जनित भाव–मरणथी बचावनार छे, अज्ञानी लोकोनी ऊंधी मान्यतानो नाश करनार छे अने
वस्तुस्वरूपना जाणकार छे.
हवे तेमना उपकारोनुं स्मरण करवामां आवे छे. ज्यारे परद्रव्यना कर्तृत्त्वममत्त्व अने अज्ञानजनित
क्रियाकांडोनुं आ भरतक्षेत्रमां खूब जोर व्यापी गयुं हतुं (अने साची समजण दुर्लभ थई पडी हती) एवा
समये, ओ कुंदप्रभु! आपे समयसारजी–नियमसारजी–प्रवचनसारजी जेवा अनेक महान शास्त्रोनी रचना करीने
घणो–घणो उपकार कर्यो छे... हुं आजे (शरूआतमां कह्या एवा) कुंदकुंद भगवानने नमस्कार करूं छुं–१.
भावमरणमां सळगी–रहेला जगतना जीवोने, पोताना अमृतरसथी भरेला अध्यात्म उपदेश वचनो वडे
कुंदकुंद भगवाने सारी रीते शांत कर्या. तमारा रचेला महान ग्रंथ श्री समयसारनुं श्रवण–मनन करवाथी मननो
शोक दूर थयो; अथवा बीजो एवो पण अर्थ नीकळे छे के–कुंदकुंद भगवानना वचनोरूपी अमृतद्वारा शुद्धात्म
स्वरूपनो अनुभव करवाथी रागद्वेषरूप मानसिक शोकनो नाश थयो..... हुं कुंदकुंद भगवानने नमस्कार करूं छुं–२.
वळी हे कुंदकुंददेव! आपना रचेला समयसारादि ग्रंथोनुं मनन–चिंतवन करवाथी हुं अलौकिक
आत्मस्वरूपनी ओळखाण पामुं, तथा (ए ओळखाण द्वारा जाणेला) ज्ञायक स्वरूपने–मात्र जाणनार एवा
शुद्ध आत्माने दरेक क्षणे–निरंतर स्मर्या करुं–अनुभव्या करूं अने छेवट ते ज्ञायक स्वरूपमां पूर्ण स्थिरता करीने
केवळज्ञान पामुं. एवो हे कुंदकुंद प्रभु! आपनो महिमा छे... हुं कुंदकुंद प्रभुने नमस्कार करुं छुं–३.
हे परम उपकारी कुंदकुंद प्रभु! अध्यात्म ज्ञान अने वैराग्यभावोथी तारुं अंतर निरंतर भरपूर छे, तारा
महान उपकारोना पवित्र स्मरण अर्थे हुं लाखो वार नमस्कार करुं छुं, फरी–फरीने वंदन करुं छुं.... हे.... कुंदकुंद
भगवान हुं आपने नमस्कार करुं छुं–४.
हे जीवो! तमे जागो. मनुष्यत्व अत्यंत दुर्लभ छे; अज्ञानमां रहीने सद्दविवेक पामवो अशक्य
छे. आखो लोक (संसार) केवळ दुःखथी सळग्या करे छे, अने पोत पोताना कर्मो वडे अहीं तही
भम्या करे छे, एवा संसारथी मुक्त थवा हे जीवो! तमे सत्त्वर आत्मभान सहित जागो! जागो!
हे जीव! हे आत्मा! हवे क्यां सुधी खोटी मान्यता राखवी छे? खोटी मान्यतामां रहीने
अनादिथी अज्ञाननी मोहजाळमां मूंझाई रह्यो छो हवे तो जाग! एकवार तो खोटी मान्यताथी
छूटीने, अज्ञाननी मोहजाळने फगावीने तारा मूळ स्वरूपने जो!
साचुं सुख केम प्रगटे? साचुं सुख आत्मामां ज छे, बहारमां क्यांय साचुं सुख नथी ज.
आत्मा पोते सुख स्वरूप छे, ज्यारे सम्यग्दर्शनद्वारा पोताना स्वरूपने बराबर जाणे त्यारे ज साचुं
सुख प्राप्त थाय. ते माटे प्रथममां प्रथम सत्पुरुषने चरणे अर्पाई जवुं जोईए अने रुचिपूर्वक निरंतर
सत्नुं श्रवण–मनन जोईए.
दुःखथी छूटीने सुख मेळववानो उपाय दरेक आत्मा करे छे, पण पोताना सत्यस्वरूपना भान
वगर, साचो उपाय करवाने बदले खोटो उपाय करी करीने अनादिथी अज्ञानने लीधे दुःखने ज
भोगवे छे ते दुःखथी छूटवा माटे त्रणेकाळना ज्ञानीओ एक ज उपाय बतावे छे के आत्माने ओळखो.