Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २००१ : आत्मधर्म : ३७ :
अ क ष य क रु ण न स ग र, प र म प क र, प र म प ज्य
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य
[जेमनी उत्कृष्ट करुणा वडे भरत क्षेत्रना भव्य जीवो वीतराग–वाणीनुं आजे श्रवण मनन करी रह्या
छे ते श्री कुंदकुंदाचार्य देवनुं संक्षिप्त जीवन चरित्र तेमना आचार्य पद दिन–मागशर वद ८ प्रसंगे
प्रगट करवामां आवे छे. आ चरित्र ‘आत्मधर्म’ ना वांचको मनन पूर्वक वांची आचार्यदेवना रचेला
सत् शास्त्रो (परमागमो) नुं निरंतर अध्ययन करी मनुष्य जन्म सफळ करशे एवी आशा छे
]
रजाु करनार – रा म जी भा ई मा णे क चं द दो शी
भगवान कुंदकुंदाचार्य विक्रम संवतनी शरूआतमां थई गया छे. जैन परंपरामां तेमनुं स्थान सर्वोत्कृष्ट छे.
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी मंगलं कुंदकुंदार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।
आ श्लोक दरेक दीगंबर जैन शास्त्राध्ययन शरू करतां मंगलाचरण रूपे बोले छे. आ परथी सिद्ध थायछे के:–
सर्वज्ञ भगवान श्री महावीर स्वामी अने गणधर भगवान श्री गौतम स्वामी पछी तुरत ज भगवान
कुंदकुंदाचार्यनुं स्थान आवे छे. दीगंबर जैन साधुओ पोताने कुंदकुंदाचार्यनी परंपराना कहेवडाववामां गौरव माने छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्य देवना शास्त्रो साक्षात् गणधर देवनां वचनो जेटलां ज प्रमाणभूत मनाय छे.
तेमना गुरु अने आचार्यपद
तेमना गुरु जिनचंद्राचार्य हता. तेमनुं बीजुं नाम कुमार नन्दि हतुं. तेओ सिद्धांतमां घणा प्रविण हता
तेथी तेओने ‘सिद्धांत देव’ नुं बिरूद प्राप्त थयुं हतुं. तेओ अवधिज्ञानी मुनि हता. तेओ महा मनोनिग्रही हता.
तेमना सर्व शिष्यो तेमनुं सम्यग्ज्ञान अने चारित्र जोईने अतिशय नमता रहेता हता. तेओए पोताना बधा
शिष्योने वीतरागी सिद्धांतिक ज्ञानमां प्रविण बनाव्या हता. पोतानी अस्खलित वाणीथी सर्वे जीवोने धर्मोपदेश
देता. तेमनी उमर ६५ वर्षनी थई त्यारे अंतकाळ समिप जाणी पोताना पट्टशिष्य कुंदकुंद मुनिने स्वत: आचार्य
पद उपर बेसाडी पोते समाधिस्थ थया.
कुंदकुंदाचार्यना आ पट्टाभिषेकनो पवित्र दिवस पोष वद ८ नो छे.
(गुजरातमां तेने मागशर वद ८ कहेवामां आवे छे)
आचार्यपदनी प्राप्ति पछीनो काळ
आचार्यपदे भगवान कुंदकुंदाचार्य बीराज्या त्यारे तेमनी उंमर ४४ वर्षनी हती. तेमनी लायकात जोई
तेमना गुरुए तेमने ११ वर्षनी उमरे दिक्षा आपी हती. तेओ आचार्यपदे बीराज्या त्यारे ३३ वर्षनुं तेमनुं
साधु–जीवन थयुं हतुं. तेओ ५१ वर्ष अने १०
।। मास आचार्य पदे रह्या. तेमनी उमर ९५ वर्ष १०।। मास थई
त्यारे तेमनो स्वर्गवास थयो.
तेओनी नीचे घणा शिष्योनी मंडळी हती. भगवान कुंदकुंदाचार्ये उत्तम रीतिथी आचार्यपदने दीपाव्युं.
पोताना शिष्योने मोकली धर्मोपदेशनो सतत् प्रवाह चलाव्यो. तेमनुं आचार्यपद सर्वोत्कृष्ट अने अजोड नीवडयुं.
सर्वज्ञ भगवान महावीरना निर्वाण पछी ६८३ वर्ष सुधी अंगोनुं ज्ञान ओछा अदका प्रमाणमां रहेलुं,
पण त्यार पछी ते ज्ञान क्रमे क्रमे ओछुं थवा लाग्युं. याद शक्ति ओछी थती चाली. ते वखतनी जैनशासननी
स्थिति जोई तेओए आत्माना शुद्ध स्वरूप बतावनारां अनेक शास्त्रो रच्यां. ते वखतनी परिस्थिति नीचेनी
स्तुतिमां यथार्थपणे वर्णवी छे:–
“संसारी जीवनां भावमरणो टाळवा करुणा करी, सरिता वहावी सुधातणी प्रभुवीर तें संजीवनी;
शोषाती देखी सरितने करूणा भीना हृदये करी, मुनिकुंद संजीवनी समय प्राभ्रत तणे भाजन भरी.”
शक सां–३८८ एक ताम्रपत्र कुर्गमां हाथ आव्यो छे, ते उपरथी आ समय सिद्ध थाय छे. जुओ जैनसिद्धांत
भास्कर १९४४ जुन पानुं–२२