Atmadharma magazine - Ank 016
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA With the permisson of Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
Order No. 30/84 date 31-10-44
देवी तेने कोई पण संजोगोमां कोई पण डाह्या माणसो न्याय अथवा साचुं ज्ञान कही शकता नथी. तेथी करीने जे
शास्त्रोमां अने जे मतोना प्रवर्तकोमां उपर कहेल अज्ञान विद्यमान छे तेओने, आचार्यदेवे अज्ञानीक मिथ्यात्वी
कह्या छे अने एम कह्युं छे के तेओमांना कोईने पण हिताहितनुं ज्ञान नथी. जो तेओने हित–अहितनुं ज्ञान होय
तो शुं तेओ आटलुं नथी समजी शकता के–जे क्रियाथी बीजा जीवोने दुःख पहोंचे छे अने ए दुःख पण जेवुं–तेवुं
नहि परंतु सौथी मोटुं जे मृत्युनुं दुःख पामे छे, ते क्रियाथी उलटा स्वभाववाळा सुखनी प्राप्ति केवी रीते थई शके?
(प) –वैनयिक मिथ्यात्वनुं लक्षण–
सर्वेषामपि देवानां समयानां तथैव च।
यत्र स्यात् समदर्शित्वं ज्ञेयं वैनयिकं हि तत्।।
८।।
अर्थ:– “संसारमां जेटला देव पूजाय छे अने जेटला शास्त्रो के दर्शनो प्रचलित छे ते बधाय सुखदायी छे,
तेनामां कोई भेद नथी, ते बधाथी मुक्ति अथवा आत्माना कल्याणनी प्राप्ति थई शके छे” एम जे माने छे ते
विनयमिथ्यात्व छे अने ते सिद्धांतने माननारा लोको वैनयिक मिथ्यात्वी छे.
मिथ्यात्वना पांच भेदोनी जरूरियात
१–जेओ स्याद्वाद दर्शनथी विरुद्ध कोई ने कोई एकांत–एकांतपक्षो–ने माने छे तेओने माटे एकान्त
मिथ्यात्व कहेवामां आव्युं छे. जैनदर्शन सिवायना दर्शनोनो एकांत द्रष्टिना कारणे ज निषेध करवामां आव्यो छे,
जो तेम निषेध न करवामां आवे तो घणा एकान्तवादीओना सिद्धांत पण जैनदर्शनने अनुकूळ थई जाय.
जैनदर्शन सिवाय जेटला दर्शन छे ते बधाय एकांतवादी छे, तेथी करीने ते बधाने एकांत मिथ्याद्रष्टि ज
मानवामां आवे छे. उदाहरण तरीके, बौद्धदर्शन एकांत मिथ्यात्वी छे; केमके ते दरेक वस्तुने पूर्वापर संबंध
वगरनी क्षणिक रहेनार माने छे; पण क्षणिकतानी साथे नित्यता स्वरूप मान्या वगर काम चाली शकतुं नथी
[अर्थात् वस्तु स्वरूप सिद्ध थतुं नथी]. जो वस्तुओ संबंध वगरनी होय तो अंकुरा उत्पन्न थवामां बीजनी
जरूरियात केम होवी जोईए? आ प्रमाणे सर्व एकांतवाद दोषित ठरे छे.
२–धर्मक्रियाओने जे विपरीत करे छे ते विपरीत मिथ्याद्रष्टि छे, तेनुं सौथी मोटुं उदाहरण, यज्ञ संबंधमां
पशु हिंसा करवी ते छे. संकल्प करीने कोई निरपराधीने मारवो ते बधा निष्पक्ष मनुष्योनी द्रष्टिमां पाप छे.
एवा सर्वसंमत पापने जे धर्म समजे छे ते सौथी मोटो विपरीत ज्ञानी छे, तेथी करीने अनात्म ज्ञानने अथवा
मिथ्यात्वने विपरीत मिथ्यात्व कही शकाय छे. जो के एकान्त मिथ्यात्वने पण, ते स्याद्वादनी अपेक्षाथी विरुद्ध
होवाथी विपरीत मिथ्यात्व कही शकाय छे परंतु ते विपरीतता ज्ञानी होय तेने ज समजमां आवे छे, बधानी
सामान्य द्रष्टिमां सुगमताथी आवी शकती नथी; पण हिंसा अथवा वधने धर्म मनाववावाळा, बधानी द्रष्टिमां
विपरीत जणावा लागे छे, तेथी करीने वध वगेरे प्रसिद्ध विपरीत धर्माचरणोनो विपरीत मिथ्यात्वमां समावेश
करवो योग्य छे. एवुं मिथ्यात्व पण जगतमां एक प्रख्यात जुदी रीतनुं वर्तमान छे.
३–सत्यधर्मनी समीप पहोंचीने पण तेमां शंका रह्या करवी, जेथी करीने निर्णय सहित धर्ममां प्रवृत्ति न होई
शके–ए संशय मिथ्यात्व छे. ज्यां सुधी वास्तविक आत्मज्ञान प्रगट न थयुं होय त्यां सुधी आ वात होय ज. जे
आत्मज्ञानी थई गया छे एवा आत्माने बंधन–मुक्ति वगेरेना स्वरूपमां शंका केम थाय? तेथी आशंकापणुं ज मिथ्यात्व
छे. सर्वथा सत्य जैनधर्म सुधी आवी पहोंच्यो छतां पण शंका रह्या करे छे, आ वात बताववा माटे आ मिथ्यात्वना
भेदनो संग्रह कर्यो छे, तेनुं उदाहरण जैनाभासनुं आप्युं छे. संशय मिथ्यात्वना बीजा पण उदाहरण होई शके छे.
४–जे वस्तुनुं सामान्य विशेषरूप स्वरूप यथार्थ न जाणवुं पण पोताना मननी प्रेरणाथी जेम ठीक लागे
तेम मानवुं ते अज्ञानीक मिथ्यात्व छे; तेनुं उदाहरण मस्करी वगेरे भेद छे. आत्माना अमूर्तित्व वगेरे सामान्य
धर्मोथी, तथा उपयोग वगेरे विशेष धर्मोथी ज्यारे अज्ञान रहे छे त्यारे ज मनोनीत कल्पनाओ उत्पन्न थाय छे
तेथी वास्तविक ज्ञानना अभावथी तेने मिथ्यात्वमां बताव्युं छे.
[वधु माटे जुओ पा. प०]
मुद्रक:– जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड ता. १३–१–४५
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज मोटा आंकडिया (काठियावाड)