: सपदक :
रामजी माणेकचंद दोशी
जे पोतानी प्रभुताने ओळखे
• त प्रभ थय •
(परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीना व्याख्यानमांथी. लाठी ता. ७ – ४ – ४)
प्रभु! तुं ज्ञानस्वरूप छो, तुं समजी शके एवो छो–एम जाणीने तने समजावीए छीए; ‘न समजाय’
एवुं शल्य ज तने समजवामां आडुं आवे छे. भगवंत! न समजाय ए वात काढी नाख. आवो मनुष्य देह अने
सत् समजवाना आवा उत्तम टाणां मळ्यां अने सत् न समजाय एम बने ज केम? चैतन्य बळथी भगवान
आत्मा भरचक पड्यो छे, ए बळ अंतर तरफ वळे तो वीतराग थाय. अनंत–अनंत आत्माओ स्वभावनुं
भान करीने मुक्त थई गया छे; दरेक आत्मा भान करी शके छे.
अनंतकाळथी संसारमां रखडयो ते परनी भूलथी नथी रखडयो, पण पोतानी भूलथी रखडयो छे.
भगवान थया ते तो परिपूर्ण स्वरूप पामेला वीतराग छे, ते कोई उपर कृपा के अकृपा करे नहीं, तेमणे तो मार्ग
दर्शाव्यो–ते मार्गे चाले तो जीवनुं कल्याण थाय.
देह–मन–वाणीना साधनथी त्रण काळमां धर्म थाय नहीं. अहीं तो मोक्षनी (मोक्ष थाय एवी) वात छे,
जन्म–मरणनो अंत लाववो होय तेनी वात छे. स्वभावने ओळख्या वगर जन्म–मरणनो अंत कोई रीते आवे
तेम नथी, आ वातनो विवेक लाववो पण कठण थई पड्यो छे. भगवान आत्मा पोते प्रभु छे–पण...एणे एना
अंतर जातना पंथने प्रीतिथी कदी सांभळ्यो नथी.
अंतर (चैतन्य) शक्तिनुं सामर्थ्य परिपूर्ण छे, पण अनादिथी द्रष्टि पर उपर गई छे एटले तेने पोतानुं
परिपूर्ण स्वरूप भासतुं नथी.
मोक्षमार्ग तेनुं नाम के आत्मभान सहित आत्मानी स्थिरतामां रही आगळ वधे; ते मोक्षमार्ग कहो,
अमृतमार्ग कहो के स्वरूप मार्ग कहो! जेओ प्रभु थया ते बहारना साधनथी नथी थया, पण अंतर स्वरूपना
सामर्थ्यथी थया छे. बधा आत्मा शक्तिपणे प्रभु स्वरूप छे, जे पोतानी प्रभुताने ओळखे ते प्रभु थाय छे.
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
• शिष्ट साहित्य भंडार, दास कुंज, मोटा आंकडिया – काठियावाड •