त्याग शेनो?
साची समजणनो
के ऊंधी मान्यतानो!
(श्री समयसार गाथा ३४ उपर परम पूज्य सद्गुरुदेवना व्याख्यानमांथी)
पच्चखाण (त्याग) नी व्याख्या कहेवाय छे. माणसो कहे छे के त्याग करो, त्याग करो. तो त्यागनुं शुं
स्वरूप हशे? त्याग ते कोई वस्तु छे, कोई गुण छे के कोई पदार्थनी अवस्था छे? कारण के जे शब्द बोलाय ते
कोई द्रव्यने, कां गुणने, कां पर्यायने अवलंबीने होय छे. त्याग ते कोई पर वस्तुनो त्याग छे? के कोई राग–
द्वेषनो त्याग छे? के स्वरूपमां एकाग्र रहेवुं ते त्याग छे?
आत्माना मूळ स्वभावमां ग्रहण–त्याग छे नहि. आत्माए परने कांई ग्रहण कर्युं होय तो त्यागेने? तेथी
स्वरूपनी ओळखाण करी तेमां स्थिर रहेवुं ते ज त्याग छे अने ते आत्मानी निर्मळ पर्याय छे. मकान, कुटुंब, लक्ष्मी
वगेरे कांई आत्मामां पेसी गयां नथी तो तेनो त्याग शी रीते थाय? ते मकानादि आत्मामां पेसी गयां नथी पण
मान्यतामां पेसी गयां छे; मान्युं छे के ‘शरीरादि, मकान, स्त्री, लक्ष्मी वगेरे मारां’ ते ज अत्याग भाव छे.
ऊंधुंं जे मान्युं हतुं तेमां भान थयुं के आ हुं नहि, मारा स्वभावनो विस्तार ते विकार न होय, हुं एक आत्मा
छुं अने जाणवा देखवानो मारो स्वभाव छे, तेमां पर निमित्ते जे क्रोध, मान, माया अने लोभनो जे विस्तार देखाय
ते मारा आत्माना स्वभावनो विस्तार नथी; रागद्वेषने छोडवा ते पण व्यवहार छे, आत्माना अखंड शुद्ध निर्मळ
स्वभावमां जेटला अंशे स्थिर थयो तेटला अंशे राग–द्वेष सहज छूटी जाय छे, तेने त्याग कहेवाय छे.
हिंदुस्तानना माणसो त्यागना नामे ठगाणा छे. बावा–जोगी केटलाय त्याग लईने चाली नीकळ्या छे.
तेनो बहारनो त्याग देखीने हिंदुस्तान ठगाय छे, कारण के एटली हिंदुस्तानमां आर्यता छे, त्यागनो प्रेम छे
एटले ते त्यागने बाने ठगाय छे, पण (त्यागनी) साची ओळखाण करता नथी.
गृहीत मिथ्यात्वनुं स्वरूप
(अनुसंधान पान १४ थी चालु)
प–गुणग्रहणनी अपेक्षाथी अनेक धर्मोमां प्रवृत्ति होवी ते वैनयिक मिथ्यात्व छे, अर्थात् वैनयिकनी
प्रवृत्तिमां अज्ञान मुख्य कारण नथी पण विनयस्वभावनो अतिरेक मुख्य कारण छे; तेथी आ पांचमो भेद
अज्ञानथी (अज्ञानीक मिथ्यात्वथी) जुदो बताववो पड्यो छे; तेनुं लक्षण उपरना चारेथी जुदुं छे अने एवा
(वैनयिक मिथ्याद्रष्टियो) नी संख्या पण घणी छे तेथी तेने एक जुदुं मिथ्यात्व बताववानी जरूर पडी.
आत्मानी शुद्धता शुं चीज छे अने कई रीते थई शके छे एवुं जेने ज्ञान हशे ते वैनयिक होई शकशे नहि. तेथी
वैनयिक पण अनात्मज्ञानोनी गणतरीमां आवे छे. आत्मस्वरूप अजाणपणानुं नाम ज मिथ्यात्व छे.
मिथ्यात्वनुं आ सामान्य लक्षण पण वैनयिकमां रहेलुं छे.
आ प्रमाणे मिथ्यात्वना उपर कहेला पांचे भेदो जुदा जुदा अने आवश्यक ठरे छे. लोकोना मिथ्याज्ञान
अथवा प्रवृत्तिओना स्थुळताथी आ पांच प्रकार ज बनी शके छे–वधारे नहि; वधारे भेद करवा चाहे तो ते आ
पांचना ज पेटाभेद होय छे. तेथी करीने मध्यम विस्तार करवो ठीक समजीने पांच भेद कहेवामां आव्या छे.
मिथ्याज्ञानने ज मिथ्यात्व कहे छे तेथी मिथ्याज्ञानना कोई कोई ठेकाणे त्रण प्रकार पण बताववामां
आव्या छे: (१) केटलाक लोको हित अर्थात् आत्मकल्याणने समजता ज नथी अने ते साचा हितरूप
आत्मकल्याणने चाहता पण नथी, (२) केटलाक लोको हित समजीने पण तेमां शंका करीने दिवसो गूमावे छे,
(३) केटलाक लोको अहितने हित समजी ले छे. आ त्रण प्रकारना अज्ञानथी जगतना जीवो खेदखिन्न–दुःखी
थई रह्या छे. (तत्त्वार्थसार पानुं–२७४ थी २८१)
समयसर पर प्रवचन
आ पुस्तकमां परम पूज्य सद्गुरुदेवना समयसारनी पहेली तेर गाथाओ उपरनां प्रवचनो छे, जेमां
अद्भुत शैलीथी तद्न सरळ अने घरगथ्थु भाषामां समयसारना शब्दे शब्दनी छणावट करीने तेनुं मूळ रहस्य
विस्तारथी स्पष्ट समजाववामां आव्युं छे, तेना ६०० उपरांत पानां छे, तेनी किंमत रूा. ३–०–० छे. आ ग्रंथ
फागण सुद २ ना रोज सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठा महोत्सवना मंगळदीने प्रगट थशे.
आत्मधर्मनी प्रभावनाकरो, तमारी नकल पांचने वंचावो