ATMADHARMA With the permission of Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
Order No. 31/10/44
भ ग वा न श्री कुं द कुं द क हा न जै न शा स्त्र मा ळा अ ने
समयसार
‘भगवान श्री कुंदकुंद कहान जैन शास्त्रमाळा एटले श्री कुंदकुंद भगवंतना अंतर अनुभवमांथी
झरी पडेलां मोतीओनी श्री कहान प्रभुए गूंथेली माळा, अने ए माळानो पहेलो मणको एटले श्री समयसार–
प्रवचनो; जेनी अंदर अनुभवपूर्ण विधविध प्रकारना अनेक न्यायो, युक्तिओ, दलीलो अने द्रष्टांतो वगेरेथी
त्रिकाळी सिद्धांतो द्वारा सत्यधर्मनुं स्वरूप समजाववामां आव्युं छे; बीजी रीते कहिए तो शुद्ध आत्माना
अनुभवरूप सम्यग्दर्शन प्रगटाववानो उपाय आ शास्त्रमां बताववामां आव्यो छे. अने ए उपाय बतावीने,
खरेखर आ शास्त्र समस्त जैनसमाजने महान धार्मिक साहित्यनी भेट अर्पण करे छे. आ शास्त्रना पाने पाने,
सूतेली चेतनाने पडकार कर्यो छे, वाक्ये वाक्ये्युक्ति अने अनुभव भरेलां छे अने शब्दे शब्दे स्व तरफना
पुरुषार्थनी जाहेरात छे. नमूना तरीके अहीं तेना केटलाक अवतरणो आपवामां आवे छे:–
१– ‘जैनधर्म ते रागद्वेष अज्ञानने जितनार आत्मस्वभाव छे–वाडो वेश नहि, आ रीतना शुद्ध स्वभावने
माननार धर्मात्मा ज्यां जुए त्यां गुणने ज देखे छे, गुणने मुख्य करे छे, व्यक्तिने नहि. (पानुं–१३)
२– ‘आ समयसारमां आत्मानी शुद्धतानो अधिकार छे.
आत्मा देहादि रागथी जुदो छे एवुं वास्तविकपणुं ज्यां सुधी आत्मा न जाणे, त्यां सुधी मोह घटे नहि.
ज्यारे यथार्थपणुं जाणवामां आवे, त्यारे ज अंतरथी परपदार्थनुं माहात्म्य जाय, अने स्वनुं माहात्म्य आवे.
सर्वज्ञ भगवाने जेवो आत्माने जोयो तेवो ज आत्मस्वभाव आ समयसार शास्त्रमां वर्णव्यो छे.’ (पानुं–१५)
३–“कोई कहे, ‘हमणां आ न समजाय. ’ पण आत्मा क्यारे नथी? देह, ईन्द्रिय तो कांई जाणतां नथी,
जाणे छे ते ज पोते छे, माटे जरूर समजाय.” (पानुं–१५)
४–“पोताना स्वाधीन स्वभावने समजवानी आ वात छे. ‘समज पीछे सब सरल है, बिन समजे
मुश्केल. ’ अंधारूं काढवा माटे सांबेला, सूपडां न जोईए पण प्रकाश ज जोईए, तेम अनंतकाळनुं अज्ञान
टाळवा माटे साचुं ज्ञान करवानी जरूर छे. × × यथार्थ ज्ञान शिवाय बीजा उपाय करे तो शुद्ध स्वरूपनुं भान न
थाय तेथी साचा ज्ञानवडे, अनेक अपेक्षावडे, अनेक धर्मने बराबर समजवा जोईए.” (पानुं–१९)
५–“बंधन भाव आत्मा पोते ज पोताना अबंधक भावने चूकीने करे छे; अने पोते ज पोताने
ओळखीने अंतर स्थिरता वडे अशुद्धता टाळे छे. जेम वस्त्रनो मूळ स्वभाव मेलो नथी, पण पर संयोगथी
वर्तमान अवस्थामां मेलुं देखाय छे. वस्त्रना ऊजळा स्वभावनुं ज्ञान करे तो ते मेलना संयोगनो अभाव थई
शके छे. तेम प्रथम शुद्ध आत्मानुं पूर्ण पवित्र मुक्त स्वरूप जाणे तो अशुद्धता टाळी शकाय छे; माटे अहीं टीकामां
मुख्यपणे शुद्ध आत्मानुं कथन आवशे. आमां तो अचिंत्य आत्मस्वरूपना गाणां आवे छे.” (पानुं–२५)
६– ‘आचार्य कहे छे: हुं धु्रव, अचळ अने अनुपम ए त्रण विशेषणोथी युक्त गतिने प्राप्त थयेल एवा
सर्व सिद्धोने नमस्कार करी, अहो! श्रुतकेवळीओए कहेला आ समयसार नामना प्राभृतने कहीश.
आ महामंत्रो छे. जेम मोरलीना नादथी सर्प डोली ऊठे, तेम ‘समयसार’ एटले शुद्ध आत्मानो महिमा
कहेनार आ शास्त्र, तेना कथन वडे ‘हुं शुद्ध छुं’ एम आत्मा डोली ऊठे छे.’ (पानुं–२७)
७–प्रथम पोतानो आत्मा सिद्ध परमात्मा समान छे, ते पोताने स्थापीने कहे के, मारामां सिद्धपणुं–
पुर्णपणुं छे. कोईने नाने मोढे आ मोटी वात लागे, पण पूर्ण स्वरूप कबुल्या विना पूर्णनी शरूआत केम थाय?
लोकोने ज्ञानी कहे ‘तुं प्रभु छो’ ते सांभळता भडकी ऊठे छे, अने कहे छे के अरे? आत्माने प्रभु केम कह्यो?
ज्ञानी कहे छे, ‘बधा आत्मा प्रभु छे.’ बाह्य विषय कषायमां
ग्रंथ पहेलो मूल्य ३–०–० ट. ख. जुदुं
प्राप्तिस्थान श्री जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ, काठियावाड
(अनुसंधान पा. ७९ उपर)