Atmadharma magazine - Ank 017
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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छे. मिथ्यादर्शन ए महान भूल छे अने सर्व दुःखोनुं महा बळवान मूळियुं ते ज छे–एवुं लक्ष जीवोने नहि
होवाथी, ते लक्ष कराववा अने ते भूल टाळीने तेओ अविनाशी सुख तरफ पगलां मांडे ए हेतुथी आचार्य
भगवंतोए सौथी प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो उपदेश वारंवार आप्यो छे. जीवने साचुं सुख जोईतुं होय
तो तेणे प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ज जोईए.
संसार समुद्रथी रत्नत्रयरूपी जहाजने पार करवा माटे सम्यग्दर्शन चतुर खेवटीयो–नाविक छे. जे जीव
सम्यग्दर्शन प्रगट करे छे ते अनंत सुखने पामे छे अने जे जीवने सम्यग्दर्शन नथी ते पुण्य करे तो पण अनंत
दुःखने पामे छे; माटे खरूं सुख प्राप्त करवा जीवोए तत्त्वनुं यथार्थ स्वरूप समजी सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं.
वंदन हो सम्यक्त्वने!
(अनुसंधान पा. ८० थी चालु)
जेनी द्रष्टि छे तेओ आत्माने प्रभु मानवानी ‘ना’ पाडे छे. पण अहीं कहे छे के ‘हुं सिद्ध छुं, एम विश्वास करीने
हा पाडो.’ ‘पुर्णताना लक्ष विना वास्तविक शरूआत नथी.’ हुं पामर छुं, हुं ऊणो छुं–एम मानी जे कांई करे
तेने परमार्थे कांई शरूआत नथी. ‘हुं प्रभु नथी’ तेम कहेवाथी, ‘ना’ मांथी ‘हा’ नहि आवे. अणशियाने कोई
दुध–साकर पाय तो पण नाग न थाय. तेम प्रथमथी हीणो मानी पुरुषार्थ करवा मागे तो न थाय. कणो
अणशिया जेवडो होय छता फूंफाडा मारतो नाग छे; कडक वीर्यवाळो होय छे. नानो नाग पण फणीधर साप छे.
तेम आत्मा वर्तमान अवस्थामां नबळाईवाळो देखाय छतां स्वभावे तो सिद्ध जेवो पूर्ण दशावान छे, माटे
आचार्य प्रथमथी ज पुर्ण सिद्ध साध्यपणानी वात शरू करे छे. केटली होंश छे!!!’(पानुं–२९)
८–“ आचार्य कहे छे के अपूर्व आत्मधर्मने जे ईच्छे छे तेणे ‘हुं सिद्ध परमात्मा छुं’ तेवी द्रढतानी
आत्मामां स्थापना करवी पडशे. पोते पात्र थई पूर्णनी वात सांभळतां ज हा पाडवी पडशे. × × हुं जेने
संभळावुं छुं ते बधा प्रभु छे, तेम भाळीने प्रभुपणानो उपदेश आपुं छुं.” आचार्यदेव पोकार करे छे के “हुं तो
पूर्ण पवित्र सिद्ध परमात्मा छुं, ने तमे पण स्वभावे पूर्ण ज छो, ’ एम तमे निःसंदेह समजो. × × दरेक
आत्मामां पूर्ण प्रभुत्व शक्ति भरी छे. तेनी ‘हा पाड’ एम ज्ञानी कहे छे. तेनी ना पाडनार प्रभुत्व दशा प्रगट
केम करी शके?’
(पानुं–३०)
९–“आचार्य कहे छे के ‘हुं प्रभु छुं–पूर्ण छुं’ एम नक्की करीने तमे पण प्रभुत्व मानजो. अने ते पूर्ण
पवित्र दशा प्रगट करवानो उपाय जे रीते अहीं कहेवाय छे ते रीते यथार्थ ग्रहण करजो” (पानुं–३०)
१०–भाई! तुं अनंत ज्ञान, आनंदरूप छो तेथी तुं आवडो मोटो (प्रभु स्वरूप) छो–तेवी वात सांभळी,
बेसाडी अंदरथी हा ज लाव. × × सर्वज्ञ भगवान अने अनंत ज्ञानी आचार्योए बधा आत्माने पूर्णपणे जोया
छे, तुं पण पूर्ण छो. परमात्मा जेवो छो. ज्ञानी स्वभाव जोईने कहे छे के तुं प्रभु छो, कारण के भूल अने
अशुद्धता तारुं स्वरूप नथी. भूलने अमे न जोईए कारण के अमे भूलरहित पूर्ण आत्मस्वभावने जोनारा
छीए. अने एवा पूर्ण स्वभावने कबुल करी. तेमां स्थिरता वडे अनंत जीवो परमात्मदशारूप थाय छे. तेथी
ताराथी थई शके ते ज कहेवाय छे.”
(पानुं–३१)
उपर मुजब अवतरणो तो मात्र प्रथमना ३१ पानामांथी ज छे, अने एवां तो ६०० पानां आ महान
ग्रंथमां रहेला छे, जे वांचीने समजतां तेनो खरो महिमा समजाय छे; अने एम उल्लास आवी जाय छे के–
अहो! आवो अपूर्व उपदेश! आ उपदेशना रणकार मिथ्यात्व अने अज्ञानना पडदाने चीरी नांखीने पूर्णानंदी
स्वभावना दर्शन करावनार छे. जैनदर्शननी शरूआत अने पुर्णता बन्ने आ ग्रंथमां रहेला छे. खरेखर!
श्रीसमयसार–शास्त्र अने तेनी टीका रचीने कुंदकुंद भगवाने अने अमृतचंद्राचार्यदेवे परम उपकार कर्यो छे अने
ते परमागम शास्त्रमां रहेला गूढ रहस्योने खुल्लां करीने स्पष्ट समजावता आ समयसार–प्रवचनो आपीने
सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीए ते आचार्योना उपकार उपर सूवर्ण कळश चडावी दीधो छे...भरतक्षेत्रना भव्य
जीवो समक्ष आ समयसार–प्रवचनोनी महान भेट पूज्य गुरुदेवश्री अर्पण करे छे...अने...
ओ भरतक्षेत्रना भव्य जीवो! संपूर्ण स्वरूप संपत्तिनी प्राप्ति माटे स्वरूपानंदी श्री सद्गुरुदेवे आपेला
आ अपूर्व भेटणांने अप्रतिहत भावे सहर्ष वधावी लेजो!!!
मुद्रक–प्रकाशक–जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय. दास कुंज, मोटा आंकडिया–
काठियावाद ता. ३–२–४५