Atmadharma magazine - Ank 018
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARAM With the permissdon of the Baroda Govt. Regd No. B, 4787
order No. 30/24 date 31-10-44
नोंध–‘नग्न’ अने ‘दीगम्बरवृत्ति’ ए बे शब्दो खास नोंधने पात्र छे. पूर्वभवनुं स्मरण थतां नग्न दिगंबर
साधुओनो सत्समागम अहीं याद आव्यो एम तेओश्री जणावे छे. स्वामी कार्तिकेय–श्री कुंदकुंदाचार्य पूर्वे विक्रम संवत
पहेलांंना मुनि होवानी प्रचलित मान्यता छे. पूर्व भवनी आ यादगीरी सनातन जैन मुनिओनी दशा सूचवे छे.
बृहत् द्रव्य संग्रह संबंधी
संवत १९९प–पोष मासमां ईडर मुकामे तेओ ते शास्त्रनी नीचेनी गाथाओ उपदेश बोध तरीके लखतां
तेओ जणावे छे के:–
मा मुज्जह मा रज्जह दूसह इठ्ठनिट्ठ अठ्ठेसु,
थिरमिच्छहि जह चित्तं विचित्तज्झाणप्पसिद्धिए.
पणतीससोल छप्पणचउदुगमेगं च जवह ज्झाएह,
परमेठ्ठि वाचयाणं अण्णं च गुरुवएसेण.
जो तमे स्थिरता ईच्छता हो तो प्रिय अथवा अप्रिय वस्तुमां मोह न करो, राग न करो, द्वेष न करो. अनेक
प्रकारना ध्याननी प्राप्तिने अर्थे पांत्रीस, सोळ, छ, पांच, चार, बे अने एक एम परमेष्टि पदना वाचक छे तेनुं
ध्यान करो. विशेष स्वरूप श्री गुरुना उपदेशथी जाणवुं योग्य छे.
जं किंचिवि चिंतंतो णिरीहवित्ती हवे जदा साहू,
लध्दूणय एयत्तं तदाहु तं तस्स निज्छयं ज्झाणं.
ध्यानमां एकाग्रवृत्ति राखीने साधु निस्पृह वृत्तिवान अर्थात् सर्व प्रकारनी ईच्छाथी रहित थाय तेने परम
पुरुषो निश्चय ध्यान कहे छे. [आवृत्ति छठ्ठी पानुं ३१७]
देवागमस्तोत्र संबंधी
[‘देवागम स्तोत्र’ जे महात्मा समंत्तभद्राचार्ये (जेना नामनो शब्दार्थ ‘कल्याण जेने मान्य छे’ एवो
थाय छे) बनावेल छे, ..... ते स्तोत्रमां प्रथम नीचेनो श्लोक छे:–
‘देवागमन भोयान चामरा दिविभूतय;
माया विष्वपि द्रश्यंते, नातस्त्वमसि नो महान्ः’
आ श्लोकनो भावार्थ एवो छे के देवागमन (देवताओनुं आववुं थतुं होय), आकाशगमन (आकाशगमन
थई शकतुं होय), चामरादि विभूत्ति (चामर वगेरे विभुति होय–समवसरण थतुं होय ए आदि) ए बधां तो
मायावीओनामां पण जणाय छे, (मायाथी अर्थात् युक्तिथी पण थई शके) एटले तेटलाथी ज आप अमारा
महत्तम नथी. (तेटला उपरथी कांई तीर्थंकर वा जिनेन्द्र देवनुं अस्तित्व मानी शकाय नहि. एवी विभुति आदिनुं
कांई अमारे काम नथी. अमे तो तेनो त्याग कर्यो छे.)
आ आचार्ये केम जाणे गुफामांथी नीकळतां तीर्थंकरनुं कांडुं पकडी उपर प्रमाणे निरपेक्षपणे वचनो कह्यां होय
एवो आशय आ स्थळे बताववामां आव्यो छे.]
(व्याख्यान सार अषाड वद १ १९प६–मांथी. आवृत्ति छठ्ठी पानुं–३३०–३३१)
आ रीते सत्धर्म तरीके तेओश्रीए वीतराग कथित धर्म, सत्देव तरीके श्री सर्वज्ञ वीतराग देवो, सत्गुरु
तरीके श्री कुंदकुंदादि आचार्यो अने सत्श्रुत (सत्शास्त्र) तरीके उपरना शास्त्रोने स्वीकार्यां छे. तेनो अर्थ ए थयो के
ते सत्शास्त्रोनुं कथन वीतराग प्ररूपित छे अने जे शास्त्रोमां तेथी विरूद्ध कथन होय ते सत्शास्त्रो नथी. एम तेमां
स्हेजे आवी जाय छे. माटे उपर जणावेल शास्त्रोने सत्श्रुत तरीके मानी, तेनो अभ्यास करी जिज्ञासुओए सत्य–
असत्यनो निर्णय परीक्षापूर्वक करवानी खास जरूर छे; केमके सत्शास्त्र–आगम ज सम्यग्ज्ञानमां निमितभूत थई
शके छे, अने असत् शास्त्रो मिथ्यात्वना पोषक थाय छे.
दरेक जीव अहर्निश सुख मेळववा मथे छे, पण साचो उपाय जाणतो नहि होवाथी तेने सुख मळतुं नथी.
अने तेनुं दुःख मटतुं नथी. तेथी अनंत ज्ञानी पुरुषोए कह्युं छे के:–
आ जीवनुं मुख्य कर्तव्य आगमज्ञान छे, ए ज्ञान थता तत्त्वोनुं श्रध्धान थाय छे, तत्त्व श्रद्धान थतां संयम
भाव थाय छे; अने ते सत्श्रुत सत् आगमथी आत्मज्ञाननी पण प्राप्ति थाय छे–जेथी सहज मोक्ष दशानो लाभ
थाय छे. जीव जो सत्श्रुतने ज सत् तरीके न स्वीकारे अने असत् शास्त्रोने साचां छे एम स्वीकारे तो ते जीवने
अनादिथी जे अगृहीत मिथ्यात्व छे तेने आ गृहीत (नवा) मिथ्याभावथी पोषण मळे छे अने तेथी जीवनुं दुःख
मुक्त थवुं अति दुर्लभ थई पडे छे. माटे जीवोए सत्श्रुतने बराबर परीक्षा करी ओळखवां जोईए.
मुद्रक:– जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य मुद्रणालय दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. १०–३–४प
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज मोटा आंकडिया (काठियावाड.)