जे भगवान अर्हंतनुं स्वरूप द्रव्य, गुण, पर्यायथी जाणे ते पोताना आत्मानुं स्वरूप जाणे अने तेनो निश्चय
करीने मोह नाश पामे.’
उपर मूकेली गाथा श्री प्रवचनसारनी अध्याय १ गाथा ८० मी छे; अने आ गाथा जो के भगवान
कुंदकुंदाचार्यनी बनावेली छे तो पण, ‘पूर्व महात्माओए कह्युं छे’ एवुं बहुवचन सूचक पद वापरी, ते कथन उपर
तेमनी पहेलाना सर्व पूर्व महात्माओनी छाप छे एम जणाव्युं छे. [आवृत्ति छठ्ठी पानुं–२७२]
श्री पंचास्तिकाय संबंधे
(सं. १९प३ चैत्र सुद प) संवत १९प३ ना चैत्र सुद प ना रोज तेओ लखे छे के:–
‘द्रव्यानुयोग परम गंभीर अने सूक्ष्म छे, निर्ग्रंथ प्रवचननुं रहस्य छे, शुक्ल ध्याननुं अनन्य कारण छे. शुक्ल
ध्यानथी केवळज्ञान समुत्पन्न थाय छे. महा भाग्य वडे ते द्रव्यानुयोगनी प्राप्ति थाय छे.
दर्शनमोहनो अनुभाग घटवाथी अथवा नाश पामवाथी, विषय प्रत्ये उदासीनताथी अने महत्पुरुषना
चरणकमळनी उपासनाना बळथी द्रव्यानुयोग परिणमे छे.
जेम जेम संयम वर्द्धमान थाय छे, तेम तेम द्रव्यानुयोग यथार्थ परिणमे छे. संयमनी वृद्धिनुं कारण
सम्यक्दर्शननुं निर्मलत्व छे, तेनुं कारण पण ‘द्रव्यानुयोग’ थाय छे.
सामान्यपणे द्रव्यानुयोगनी योग्यता पामवी दुर्लभ छे. आत्माराम परिणामी, परम वीतराग द्रष्टिवंत, परम
असंग एवा महात्मा पुरुषो तेनां मुख्य पात्र छे.
कोई महापुरुषना मननने अर्थे पंचास्तिकायनुं संक्षिप्त स्वरूप लख्युं हतुं; ते मनन अर्थे आ साथे मोकल्युं छे.
‘हे आर्य! द्रव्यानुयोगनुं फळ सर्व भावथी विराम पामवारूप संयम छे. ते आ पुरुषनां वचन तारा
अंतःकरणमां तुं कोई दिवस शिथिल करीश नहि. वधारे शुं? समाधिनुं रहस्य ए ज छे. सर्व दुःखथी मुक्त थवानो
अनन्य उपाय ए ज छे.’
[आवृत्ति छठ्ठी पानुं–४१८]
श्री नियमसार अने श्री अष्टपाहुड संबंधी
आ उपरांत भगवान कुंदकुंदाचार्यनां बनावेलां अने हाल प्रसिद्ध थयेलां श्री नियमसार अने अष्टपाहुड छे.
नियमसार तेमना वखत पछी हस्तगत थयेल छे एटले तेमना हाथमां ते आवेल नथी; पण श्री अष्टपाहुड तेमने
मळेल, ते संबंधे तेओ नीचे मुजब जणावे छे:–
स्वामी वर्द्धमान जन्मतिथि (चैत्र सुद १३)
[सां–१९प६ धर्मपुर]
“अष्टपाहुडना ११प पानां संप्राप्त थयां.”
[मोरबी, अषाड सुद ७ बुध. सां १९प६]
“श्रीमान् कुंदकुंदाचार्ये अष्ट पाहुड (अष्टप्राभृत) रचेल छे. पाभृत भेद:–दर्शनप्राभृत, ज्ञानप्राभृत,
चारित्रप्राभृत, भावप्राभृत ईत्यादि. दर्शनप्राभृतमां जिनभावनुं स्वरूप बताव्युं छे. शास्त्रकर्ता कहे छे के अन्यभावो
अमे, तमे अने देवाधिदेव सुद्धांए पूर्वे भाव्या छे, अने तेथी कार्य सर्युं नथी; एटला माटे जिनभाव भाववानी जरूर
छे. जे जिनभाव शांत छे, आत्मानो धर्म छे; अने ते भाव्येथी ज मुक्ति थाय छे.’ (आवृत्ति छठ्ठी पानुं प३६)
श्री कुंदकुंदाचार्यनी दशा संबंधी
आ संबंधमां तेओ कहे छे के:–
“कुंदकुंदाचार्यजी तो आत्मस्थितिमां बहुस्थित हता.” (सं. १९९प. आवृत्ति छठ्ठी पानुं २२८)
पुरुषार्थ सिद्धिउपाय संबंधी
भगवान अमृतचंद्र आचार्य (श्री समयसार–श्री प्रवचनसार अने श्री पंचास्तिकायना टीकाकार)नुं
श्रावकाचार संबंधनुं बनावेलुं आ शास्त्र छे. ते संबंधमां तेओ कहे छे के:–
“पुरुषार्थसिद्धिउपायनुं भाषांतर गुर्जर भाषामां करतां आज्ञानो अतिक्रम नथी.”
(संवत १९९प फागण सुद १ आवृत्ति छठ्ठी पानुं ३०६)
उपरना लखाण उपरथी सिध्ध थाय छे के आ शास्त्रने पण तेओए सत्श्रुत तरीके स्वीकार्युं छे.
स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा संबंधी
(मोरबी अशाड सुद–१९प६)
आ शास्त्रना संबंधमां तेओ कहे छे के:–
“ स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा वैराग्यनो उत्तम ग्रंथ छे. द्रव्यने–वस्तुने यथावत् लक्षमां राखी वैराग्यनुं एमां निरूपण
कर्युं छे. गई साल मद्रास भणी जवुं थयुं हतुं. कार्तिक स्वामी ए भूमिमां बहु विचर्या छे. ए तरफना नग्न, भव्य, ऊंचा,
अडोलवृत्तिथी उभेला पहाड नीरखी स्वामी कार्तिकेयादिनी अडोल, वैराग्यमय, दिगम्बर वृत्ति याद आवती हती.”
नमस्कार ते स्वामी कार्तिकेयादिने
(आवृत्ति छठ्ठी पा. ३२७)