: ९४ : आत्मधर्म : चैत्र १ : २००१
श्रीमद्राजचंद्रना पत्रो हाथनोंध वगेरे ‘श्रीमद्राजचंद्र’ ए नामथी पुस्तकरूपे प्रसिध्ध थयेल छे; श्रीमद्नी सत्श्रुत
संबंधी शुं मान्यता हती ते घणा जिज्ञासुओना जाणवामां नहि होवाथी ए संबंधी तेमनी नोंध अहीं आपवामां आवी छे.
तेमना लखाणो घणा गहन अने तत्त्वथी भरपूर होय छे, अने ए ज प्रकारनी आ नोंध होवाथी तेनुं रहस्य
टुंकामां लखवानी जरूर छे. आ हाथ नोंधना मथाळे ‘सत्श्रुत’ मोटा छपायेल छे एटले मूळमां पण मोटा अक्षरे होवुं
जोईए–एम मानी शकाय छे.
‘सत्श्रुत’ ए घणो अर्थसूचक शब्द छे. जेनो दरेक शब्द, पद वाक्य अने भाव परम सत्य होय ते सत्श्रुत
छे. तत्त्वनुं निरूपण अने युक्तिओ वीतरागनी प्ररूपणा अनुसार जे शास्त्रोमां करवामां आव्यां होय ते शास्त्रो ज
‘सत्श्रुत’ कही शकाय, अने ते व्याख्यामां उपर जणावेला शास्त्रो आवे छे एम तेओए बेधडकपणे जणाव्युं छे.
ए शास्त्रोमांथी पहेलांं आठ शास्त्रो दीगंबरी छे. ते हींदीमां प्रसिध्ध थया छे; तेमांथी श्री मोक्षमार्ग प्रकाशनी
गुजराती बे आवृत्तिओ प्रसिध्ध थयेल छे अने ते शास्त्र गुजरात काठियावाडना तत्त्वज्ञान–रसिक जीवोमां घणुं
लोकप्रिय थयुं छे.
‘सत्श्रुत’ने लगती आ नोंध तेओश्रीए उत्तर अवस्थामां करी छे, ए घणुं अर्थसूचक छे; एटलुं ज नहि परंतु
तेओए नमस्कार करवाना प्रसंगे नीचेना भक्तिथी भरपूर शब्दो वापर्या छे.
‘हे कुंदकुंदादि आचार्यो! तमारा वचनो पण स्वरूपानुसंधानने विषे आ पामरने परम उपकारभुत थयां
छे. ते माटे हुं तमने अतिशय भक्तिथी नमस्कार करूं छुं.’ आ स्तुतिमां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यनुं खास नाम
जणाव्युं छे ते हकीकत तथा ‘स्वरूपानुसंधान’–‘परम उपकारभूत’ ‘अतिशय भक्तिथी नमस्कार’ अने ‘वचनो’ तथा
सत्श्रुतना नामो खास उपयोगी होवाथी मनन करवा योग्य छे. मुमुक्षुओए पोतानुं स्वरूप समजी स्वरूपानुसंधान
करवानुं होवाथी श्रीमद्ना सत्गुरु अने सत्श्रुत संबंधी आ मर्मसूचक शब्दो हृदयमां नोंधी राखवानी जरूर छे.
श्रीमान् कुंदकुंदादि आचार्योनां वचनो श्रीमद्ने स्वरूपानुसंधान विषे परम उपकारभूत थयां ते वचनो कया कया
शास्त्रोमां होवानुं तेओए जणाव्युं छे अने ते शास्त्रो संबंधे तेमणे शुं कह्युं छे ते अहीं बताववुं योग्य छे.
श्रीमान् कुंदकुंदाचार्यनां त्रण रत्नो–श्री समयसार श्री प्रवचनसार, अने श्री पंचास्तिकाय–संबंधमां तेओ नीचे
प्रमाणे जणावे छे.
श्री समयसार संबंधी [सं. १९प६ अषाड]
“..............‘पद्मनंदि’, ‘गोमट्टसार’, ‘आत्मानुं शासन’ ‘समयसार मूळ’ ए आदि परमशांतश्रुतनुं अध्ययन
थतुं हशे. आत्मानुं शुध्ध स्वरूप संभारीए छीए. “ शांति. ”
अहीं तेओए श्री समयसारने परमशांतश्रुत कह्युं छे अने तेनुं अध्ययन करवा जणाव्युं छे. बनारसीदासकृत
समयसार नाटक नहि, पण भगवान कुंदकुंद आचार्यकृत्त समयसार–ए जणाववाना हेतुथी ‘समयसार मूळ’ ए शब्दो
वापर्या छे. [आवृत्ति छठ्ठी पानुं ३२७]
श्री प्रवचनसार संबंधी [सं. १९प३]
सं. १९प३ मां तेओ जणावे छे के–
“पूर्व महात्माओए कह्युं छे के:–
जे जाणई अरिहंते, दव्वगुणपज्जवेहिंय;
सो जाणई निय आप्पा मोहो खलु जाईय तस्स लयं।।
मुंबई–सं. १९प६ कारतक वद ११ ।। “।।
सत्श्रुत
श्री पांडव पुराणे प्रद्युम्न चरित्र
” पुरुषार्थ सिद्धि उपाय
” पद्मनंदी पंचविंशति
” गोमट्टसार
” रत्न करन्ड श्रावकाचार
” आत्मानुशासन
” मोक्षमार्ग प्रकाश
” कार्तिके्यानुप्रेक्षा
” योगद्रष्टि समुच्चय
आदि अनेक छे, ईन्द्रिय निग्रहना अभ्यास पूर्वक ए सत्श्रुत सेववा योग्य छे, ए फळ अलौकिक छे–अमृत छे.
[श्रीमद्राजचंद्र आवृत्ति छठ्ठी पानुं ३१८]