: चैत्र १ : २००१ आत्मधर्म : ९३ :
पण थई शके नहीं, तो पछी पोते स्थिरता करे शेमां? माटे एम समजवुं के–साध्य आत्मानी प्राप्ति, सिध्धि,
बीजी कोई रीते नथी ज, एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रथी ज छे एम निश्चय करवो.
१७. ज्यांसुधी जीव पोताना स्वरूपने जाणे नहीं त्यां सुधी ते अज्ञानी ज छे केमके तेने सदाय
अप्रतिबुद्धपणुं छे; एक क्षणमात्र पण ते साचा ज्ञानने सेवतो नथी माटे जीवे अज्ञान टाळवानी खास जरूर छे
एम आ गाथाओमां फरमाव्युं छे.
[गाथा १९]
१८. ते उपरथी शिष्यने प्रश्न थयो के–जीव जे अनादिनो अज्ञानी छे तेनुं अज्ञानपणुं–अप्रतिबुध्धपणुं
क्यां सुधी रहे? तेना उत्तरमां–आचार्य भगवान कहे छे के:–
“ज्यां सुधी आ आत्माने भावकर्म, द्रव्य कर्म, अने शरीरादि नोकर्ममां “हुं आ हुं छुं” अने मारामां आ
भावकर्म,–द्रव्यकर्म–नोकर्म छे एवी बुध्धि छे त्यां सुधी आ आत्मा अज्ञानी छे.”
१९. जीवने अनादिथी जे अज्ञान चाल्युं आव्युं छे तेमां जीव शुं भूल करे छे ते आ १९ मी गाथामां कह्युं
छे. जीव पोतानी शुं भूल थाय छे ए जाणे तो ते टाळी शके तेथी ते भूल टाळवा माटे अहीं जणाव्युं के–:
(१) जीव परवस्तुने ईष्ट अनिष्ट माने छे ते जीवनी भावकर्म रूप मूळ भूल छे.
(२) ‘झीणां रजकणरूप द्रव्यकर्म आत्मामां छे अने शरीरादिनो जे संयोग छे ते पोतामां छे–’ एम जीव
माने छे, ते जीवनी अनादिनी चाली आवती द्रव्यकर्म अने शरीरादि संबंधी भूल छे.
[गाथा २० थी २२]
२०. आ त्रण गाथामां जीवने पोतानुं अज्ञान टाळवा अने ज्ञान प्राप्त करवा माटे अज्ञानी अने ज्ञानी
बंन्नेनां लक्षणो ओळखी शकाय एवां चिन्हो आप्यां छे.
अज्ञानीने ओळखवानां चिन्ह
२१. अज्ञानीने ओळखवानां चिह्न नीचे प्रमाणे जणाव्यां छे (जुओ गाथा २०–२१).
पोताथी अन्य जे परद्रव्य–सचित स्त्री पुत्रादिक, अचित धन धान्यादिक, अथवा मिश्र गाम नगरादि
तेने जे जीव एम समजे के–१. हुं आ छुं; २. आ द्रव्य मुज स्वरूप छे; ३. हुं आनो छुं, ४. आ मारूं छे, प. आ
मारे पूर्वे हतुं, ६. आनो हुं पण पूर्वे हतो, ७. आ मारूं भविष्यमां थशे, ८ हुं पण आनो भविष्यमां थईश– ते
अज्ञानी छे.
२२. गाथा २२ ना पहेला अर्धा भागमां कह्युं के:– आवो जुठो पोतापणानो विकल्प जे जीव करे छे ते
सारी रीते मूढमोही–अज्ञानी छे.
ज्ञानीने ओळखवानुं चिन्ह
२३. गाथा २२ ना पाछला अर्धा भागमां ज्ञानीजीवनुं चिह्न जणावतां कहे छे के–जे जीव परमार्थ
(भूतार्थ) वस्तु स्वरूपने जाणतो थको एवो जुठो विकल्प करतो नथी ते मूढ नथी–पण ज्ञानी छे.
२४. आ गाथा सिध्ध करे छे के–पोते ज्ञानी थयो छे के केम एम जीव पोते उपरना चिह्नथी नक्की करी शके
छे. आ प्रमाणेना चिह्नथी ओळखवुं ते भावश्रुत ज्ञान छे. केटलाक कहे छे के–“अवधिज्ञान जीवने थाय त्यारे ज
ते पोते ज्ञानी थयो छे एम भूल रहित जाणी शके. तेवा ज्ञानथी के तेथी उंचा प्रकारना ज्ञान एटले के मनःपर्यय
अने केवळज्ञानथी जे निर्णय थाय ते भूलरहित थाय. पण श्रुतज्ञानमां भूलरहित निर्णय न पण थाय.’ आ
मान्यता तदन खोटी छे. भावश्रुतज्ञान प्रमाण ज्ञान छे अने प्रमाणज्ञान हंमेशा साचुं होय छे. एटले के संशय
विपर्यय अने अनध्यवसाय रहित होय छे तेथी श्रुतज्ञानथी पोते ज्ञानी थयो छे एम जीव निःशंकपणे सत्य
निर्णय करी शके छे.
२प. जे जीवोने केवळज्ञान थाय छे तेओमां अवधिज्ञान वगरना जीवोनी संख्या घणी मोटी छे ज्यारे
अवधिज्ञानवाळा जीवोनी संख्या ओछी छे, जो अवधि ज्ञान वगर पोते ज्ञानी थयो छे ते जाणी शकातुं न होय
तो पछी तेवा जीवो पोते सम्यग्द्रष्टि थया छे–एवो खरो निर्णय करी शक्या नहोता एवो अर्थ थाय जे तद्न
भूल भरेलो छे.
२६. वास्तविक स्वरूप तो एवुं छे के जे जीव सम्यग्द्रष्टि पोते छे के केम तेनो साचो भूलरहितनो निर्णय
भावश्रुत द्वारा करी शके नहीं तेने कदी पण अवधिज्ञान थाय ज नहीं. विभंग ज्ञान थाय पण ते तो मिथ्या
द्रष्टिने थाय छे.
२७. आ गाथामां कोण जीव ज्ञानी कहेवाय अने ते शुं चिह्नथी ओळखी शकाय ते स्पष्ट पणे जणाव्युं छे.