वर्ष : २ अधिक चैत्र
अंक : ६ २००१
(१) जैनदर्शन अनेकान्त स्वरूप छे; ते दरेक वस्तुने अनेकान्त स्वरूप बतावे छे, एटले के दरेक द्रव्य
स्वथी अस्तिरूप अने परथी नास्तिरूप छे. आ अनेकान्त ए ज वस्तु स्वरूप समजवानो उपाय छे, तेनाथी ज
जैनदर्शननी महत्ता छे.
(२) एक द्रव्य (तत्त्व) बीजा द्रव्यनुं किंचित्मात्र त्रणकाळ त्रणलोकमां करी शके नहि, ए नक्की करीने
सत्शास्त्रोना अर्थ समजवा.
(३) दरेके दरेक तत्त्व स्वतंत्र छे, पोते पोताथी अस्तिरूप छे अने बीजाथी नास्तिरूप छे, तेथी कोई द्रव्य
एक–बीजानुं कांई कार्य करवा समर्थ नथी.
(४) दरेक द्रव्यो जुदा जुदा होवाथी दरेक द्रव्यना गुणो अने पर्याय पण त्रिकाळ जुदे जुदां ज ते ते
द्रव्यना आधारे थाय छे. कोई द्रव्यना गुण–पर्याय बीजा द्रव्यना आधारे थता नथी.
(प) जीव पोते बीजा अनंत पर पदार्थोथी भिन्न छे, तेथी कोई पर पदार्थो जीवने लाभ–नुकशान करी
शके नहि, एटले जीव जो समजवानो पुरूषार्थ करे तो तेने कोई रोकी शके नहि केमके पोते सर्व पर वस्तुओथी
जुदो छे–तेथी पोतानो पुरूषार्थ पोते स्वाधीनपणे करी शके छे.
जगतना सर्व द्रव्यो स्वथी अस्तिरूप अने परथी नास्तिरूप एम अनेकांत स्वरूप छे. ए अनेकांत द्वारा
वस्तु स्वरूपनी स्वतंत्रता अने पूर्णता मानीने, सत्शास्त्रोना दरेक कथननो अर्थ करवामां आवे तोज तेनुं खरुं
रहस्य जाणी शकाय छे; माटे कोईपण सत्शास्त्र वांचतां उपर्युक्त पांच सिद्धांतो ध्यानमां राखवा जरूरी छे.
आ अंकमां
विषय पानुं
महान शास्त्र श्री जयधवला. ८२
नमःसमयसाराय–व्याख्यान ८३
जीवे शुं करवा योग्य छे. ८६
रुचि अने पुरुषार्थ ८६
दया, दान वगेरेनुं वास्तविक स्वरूप. ८७
निश्चय अने व्यवहार ९१
श्री समयसार शास्त्र अत्यंत अज्ञानीओनुं
अज्ञान टाळवा माटे रचायेलुं छे. ९२
“ सत्श्रुत ९४
शिष्ट साहित्य कार्यालय
दास कुंज – मोटा आंकडिया
काठियावाड