Atmadharma magazine - Ank 018
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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स्त्र श्र
(१९) “ जे जाणवामां आवे छे तेने अर्थ कहे
छे–” ए व्युत्पत्ति अनुसार वर्तमान पर्यायोमां पण
अर्थ पणुं होय छे. तेना सुत्रो नीचे प्रमाणे छे–(१)
अर्यते परिच्छिद्यते– (२) “अर्यत इत्यर्थः निश्चीयत
इत्यर्थः सर्वार्थ सिद्धि. १, २.
(२०) आत्मा केवळज्ञान स्वरूप छे.
(२१) मतिज्ञानावरणादिना क्षयोपशम
[उघाड] थी प्रगट थता ज्ञानोने मतिज्ञानआदि कह्यां छे.
ज्ञाननो स्वभाव पदार्थोने स्वत: प्रकाशित करवानो छे.
तेथी चार क्षयोपशमिक ज्ञानोमांथी जे ज्ञानोना
क्षयोपशमनी विशेषताने कारणे ए धर्म प्रगट रहे छे ते
प्रत्यक्ष ज्ञान छे. अने जे ज्ञानोनो ए धर्म आवृत रहे छे
ते परोक्ष ज्ञान छे.
(२२) प्रत्यक्षनुं लक्षण जे विशदता छे ते
एकदेशे (अंशे) मतिज्ञानमां पण होय छे.
(२३) निमित्तनी मुख्यताथी द्रव्य श्रुतने पण
श्रुतज्ञान कहेवामां आवे छे. पा. २७
(२४) द्रव्यश्रुतने तीर्थंकर देव पोतानी
दिव्यध्वनिमां बीज पदो द्वारा कहे छे, अने गणधर देव
तेने बार अंगोमां ग्रथित करे छे.
(२प) जे द्वारा पदार्थ जाणवामां आवे तेने
‘प्रमाण’ कहेवामां आवे छे. प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम्।
पा. ३७
(२६) शंका–स्थापनाने प्रमाणता केवी रीते छे?
समाधान– एवी शंका न करवी जोईए केमके स्थाप्ना
द्वारा ‘ते आ प्रकारे छे’ एम अन्य वस्तुनुं ज्ञान देखाडी
आपे छे. पा. ३८
(२७) छए द्रव्योनी एक पर्यायथी बीजी पर्याय
थवामां अंतरंग कारण प्रत्येक द्रव्यनो अगुरूलघुगुण छे,
अने निमित्त कारण काळद्रव्य छे. पा. ४१
(२८) व्यवहार काळनुं उपादान कारण काळद्रव्य
छे अने निमित्तकारण जीव अने पुद्गलोनुं तथा
विशेषपणे अढी द्विपमां स्थित सूर्य मंडळनुं परिणमन
छे. पा. ४२
(२९) काळमां जे समयनो व्यवहार थाय छे ते
पुद्गल निमित्तक छे.
(३०) शंका–ज्ञान प्रमाण छे एम कहेवाथी
संशय, अनध्यवसाय अने विपर्यय ज्ञानोने पण
प्रमाणता आवी जशे? समाधान: नहीं, केमके प्रमाणमां
आवेला ‘प्र’ शब्दथी संशय आदिनी प्रमाणतानो निषेध
करवामां आव्यो छे. पा. ४२
(३१) सात प्रकारना प्रमाणमांथी ज्ञान प्रमाण
ज प्रधान छे.
(३२) महास्कंधथी लईने परमाणु पर्यंत समस्त
पुद्गल द्रव्योने, असंख्यात लोक प्रमाण क्षेत्र, काळ तथा
भावोने तथा कर्मना संबंधथी पुद्गल भावने प्राप्त
थएेला जीवोने जे प्रत्यक्षरूपथी जाणे छे ते अवधिज्ञान
कहेवाय छे.
पा. ४३
(३३) जो एम कहेवामां आवे के केवळज्ञान
असिद्ध छे तो तेम पण नथी, केमके स्वसंवेदन प्रत्यक्ष द्वारा
केवळज्ञानना अंशरूप ज्ञाननी निर्बाधपणे उपलब्धि थाय
छे, अर्थात् मतिज्ञानादिक केवळज्ञानना अंश रूप छे अने
तेनी उपलब्धि स्वसंवेदन प्रत्यक्षथी सर्वेने थाय छे, तेथी
केवळज्ञानना अंश रूप अवयव प्रत्यक्ष छे, माटे केवळज्ञान
अवयवीने परोक्ष कहेवुं युक्त नथी.
समाचार
(१) घणा मुमुक्षुभाईओनी ईच्छा ‘आत्मधर्म’ आ
महिने पण मळे एवी जणावाथी अधिक चैत्र मासनो अंक १८ मां
अंक तरीके प्रगट करी २४ मां अंके एटले भाद्रपद सुद बीजे आ वर्ष
पुरुं करवानुं नक्की थयुं छे.
(२) श्री समयसार शास्त्र पर प्रवचनो प्रगट थई गयेल
छे तेनी किंमत ३ रूपिया छे. टपाल रस्ते मंगावनारे ३–१०–०
मोकलवा तेमज ‘मोक्षनी क्रिया’ किंमत ०–१०–० जेनी थोडी ज
नकलो बाकी छे ते ०–१२–० मोकली जीज्ञासुओए मंगावी लेवी.
(३) हिंदी ‘आत्मधर्म’ महावीर जयंति उपर प्रगट थशे.
वा. ल. त्रण रूा. रहेशे,
(४) जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी प्रगट थयेला
तमाम पुस्तको मुंबईमां मळवानुं ठेकाणुं नीचे मुजब छे.
श्री जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय हीरा बाग, सी. पी. टेन्क,
मुंबई.
(५) शिष्ट साहित्य कार्यालय, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय,
शिष्ट साहित्य पत्रिका, अने शिष्ट साहित्य भंडार ए चार
विभागमांथी शिष्ट साहित्य भंडार बंध करेल छे. एथी हवे पछी
‘आत्मधर्म’ मासिक सिवायनुं कोईपण प्रकाशन अहि राखवामां
आवशे नहि. अहिंथी प्रगट थतां तमाम ग्रंथो सोनगढथी ज मळशे.
माटे सौ ग्राहक बंधुओए पोताने जोईता सत्शास्त्रो–
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ–काठियावाड
ए सरनामे पत्र लखी मंगाववा भलामण छे.
विनंति
आत्मधर्म मासिकना १८ अंको प्रगट थई चूकया. तटस्थ
रीते वांचनारा पंडितजनोए पण कबुल कर्युं छे के ‘केवळ
अध्यात्मरस–शांतरसरूपी अमृत पातुं आवुं सामयिक पत्र हिंद
भरमां एक पण प्रगट थतुं नथी.’ अने आवो ज अभिप्राय जे जे
वांचक, पछी ते गमे ते संप्रदाय के मान्यता धरावतो होय तेणे
दर्शावेल छे. तो पछी दरेक ग्राहकबंधुने आवुं अमृत आपना सौ
स्वजनो, प्रियजनो, आप्तजनो, के स्नेही संबंधीओने पावानी
भलामण करुं तो खोटुं तो नथीने! आपनी पासे वधु तो नहि पण
ओछामां ओछा एक ग्राहकना नामनी आशा आ अधिक महिनाना
अंत सुधीमां राखुं छुं. आप आ वस्तुने लक्षमां लई आत्मधर्मनी
प्रभावनानुं पवित्र कार्य जरूर करशो.
जमु रवाणी