श्री महाविदेह क्षेत्रमां वर्तमान विचरता तीर्थंकर श्री सीमंधर प्रभुनी ईन्द्रे
रचेल समवसरण (धर्मसभा) ना नमुना तरीके सुवर्णपुरीमां
जे रचना रचाएली छे तेनी समजण.
१. फरतो कोट विविध प्रकारनां मणि रत्नोनी
धूळनो बनावेलो होय छे. ते ‘धूलिसाल’ कोट
समवसरणनी हद बतावनार छे. तेना फरता
सोनाना स्तंभ छे त्यां तोरणो छे.
२. “धूलिसाल” कोटनी बाजुमां चार दिशाए चार
रस्ता छे. आ रस्ता नीलम रत्नोना बनावेला
छे. दरेकनी आगळ चार बाजुए चार
‘मानस्तंभ’ छे.
३. पेली भूमि ‘जिनमंदिरोनी’ छे.
४. बीजी भूमिका गोळाकारे ‘पाणीनी खाई’ छे.
तेमां जलचर प्राणीओ, कमळ वगेरे छे.
५. त्रीजी भूमिका ‘लतावन’ (फूलवाडी) छे. ईन्द्र
वगेरे देवो त्यां विश्रांति ले छे. ते भूमिमां
पर्वतो पण छे.
६. पेलो ‘कोट सोनानो’ छे. ते मणि रत्नोथी
जडेलो छे. कोटना दरवाजा पासे देवो आयुध
(हथियार) सहित ऊभा छे. दरवाजा ऊपर
आठ ‘मंगळ द्रव्यो’ छे.
७. चोथी भूमिका ‘उपवन’ (बगीचा) छे. तेमां
जिनमंदिरो तथा वावो छे.
८. पांचमी भूमिका ‘धजानी हार’ छे.
९. बीजो ‘कोट चांदीनो’ होय छे, पण अहिं
सोनेरी छे.
१०. छठी भूमिका ‘कल्पवृक्षोनी’ छे. कल्पवृक्षो दश
प्रकारना छे. जे फूलमाळा, दीवा, ज्योति, फळ,
वस्त्र, दागीना, मकान, भोजन, वाजिंत्र,
वासण वगेरे प्रकारनां छे.
११. सातमी भूमिका ‘स्तूप मंदिर’ (जिनमंदिर)
तथा देवना मकानो) छे.
१२. त्रीजो ‘कोट स्फटिकनो’ छे. अहिं तेना कांगरा
सोनेरी छे.
१३. आठमी भूमिका– ‘बार–सभानी’ छे. तेनी
उपर ‘श्री मंडप’ सफेद स्तंभ सहित छे. अने
ते धजा पताकाथी शणगारेलो छे. ते मंडप उपर
देवो विमानमांथी फूलो वरसावे छे. बार सभा
नीचे प्रमाणे छे:–
(१) मुनिराज (२) कल्पवासी देवी (३)
अर्जिका तथा श्राविकाओ (४) ज्योतिषी देवी (प)
व्यंतरदेवी (६) भवनवासी देवी (७) भवनवासी देव
(८) व्यंतर देव (९) ज्योतिषी देव (१०) कल्पवासी
देव (११) मनुष्य (१२) तिर्यंच.
मुनिराजनी सभामां हाथ जोडी वंदन करता
ऊभा छे, ते विक्रम संवत्ना प्रारंभमां भरतक्षेत्रमां
थयेला महामुनि ऋद्धिधारी श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव छे. ते
भरतक्षेत्रमांथी श्री सीमंधर भगवान् पासे
समवसरणमां गया हता. अने त्यां एक अठवाडियुं
रह्या हता. सभामां सौथी आगळ बेठेला मोटा
मुनिराज भगवानना ‘गणधर’ छे.
१४. पेली पीठिका ‘वैडूर्य रत्ननी’ छे. ते उपर चारे
बाजु यक्ष ‘सहस्त्र आरावाळुं धर्मचक्र’ लई
ऊभा छे. तेनी उपर चडवा माटे सोळ
नीसरणीओ छे; तेनी उपर चडी भगवानना
दर्शन करवामां आवे छे. पीठिका उपर चारे
बाजु आठ ‘मंगळ द्रव्यो’ छे.
१५. बीजी ‘पीठिका सोनानी’ छे. तेनी उपर आठ
‘महा धजाओ’ छे.
१६. त्रीजी ‘पीठिका’ जुदा जुदा प्रकारनां रत्नोनी छे.
१७. ते उपर हजार पांखडीनुं ‘लाल कमळ’ छे, ते
उपर श्री सीमंधर भगवान चौमुखे बिराजे छे.
१८. भगवान उपर देवो चोसठजोड चामर ढाळे छे.
भगवान उपर त्रण छत्र छे. माथे अशोक वृक्ष
छे. उपर विमानमांथी देवो फूलनी वृष्टि करे छे.
सूचना: – सविनय जणावानुं जे ‘आत्मधर्म’ मासिकनी
सघळी व्यवस्था सोनगढथी ज करवानुं नक्की करेलुं
होवाथी सघळो पत्रव्यवहार श्री. व्यवस्थापक, आत्मधर्म
कार्यालय, सोनगढ (काठियावाड) ए सरनामे ज करवा
साैने िवनंित छे. जमु रवाणी
मुद्रक – प्रकाशक: – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती
जमनादास माणेकचंद रवाणी शिष्ट साहित्य
मुद्रणालय दासकुंज मोटा आंकडिया. काठियावाड.
ता. १० – ५ – ४५