ATMADHARAM With the permissdon of the Baroda Govt. Regd No. B. 4787
order No. 30/24 date 31-10-44
सुवर्णपुरीमां महा मांगलिक महोत्सव
परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामी छेल्लां दस वर्ष थया सनातन जैनधर्मनी अद्भुत प्रभावना
करी रह्या छे, तेमना द्वारा अध्यात्मज्ञाननो घणो ज प्रचार थयो छे, ते प्रचारथी हिंदभरमां घणां भव्यजीवोने
लाभ थयो छे अने तेथी घणा मुमुक्षुओ तेमना प्रत्यक्ष दर्शन तथा सत्संगनो लाभ ले छे. सनातन जैनधर्मना
खास अनुयायी इंदोरना धर्मप्रेमी श्रीमंत शेठ सर हुकमीचंदजी ए पण पू. गुरुदेव संबंधे सांभळ्युं हतुं तेम ज
‘आत्मधर्म’ मासिक पत्र द्वारा तेमना व्याख्यानो वगेरे वांच्या हता, तेथी तेमने पू. गुरुदेवनो प्रत्यक्ष परिचय
करवानी घणा वखतथी भावना हती. गत चैत्र मासमां तेओ आववाना हता परंतु संजोगवशात् आववानुं
बन्युं न हतुं. आखरे वैशाक वद–६ [ता. १–६–४प] ना रोज परोढीये लगभग चार वागे तेओ मोटर द्वारा
सोनगढ पधार्या. [वैशाक वद ६ तथा ८ ना दिवसोमां वार्षिक प्रतिष्ठा महोत्सवना प्रसंग होवाथी तथा शेठजी
आववाना समाचार सांभळवाथी बहारगामथी लगभग एक हजार माणसो आव्या हता.] शेठजी साथे
दानशीला शेठाणीजी कंचन बेन, दानशीला शेठाणीजी प्यार कुंवरजी [शेठजीना स्व. बंधु कल्याणमल्लजीना धर्म
पत्नी], शेठ फत्तेचंद्रजी, शेठ नाथालालजी, पं० जीवनधरजी, पं० नाथुलालजी, सेक्रेटरी श्रीयुत गुलाबचंदजी तथा
हजारी मलजी–मुनिम वगेरे हतां; तेओ आव्या ते दिवसे सवारे पहेली ज वार पू. गुरुदेवना दर्शन करतां तेओ
घणा आनंदमां आवी गया हता, अने सवारनुं पू. गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान सांभळतां तेमना उपर जुदी ज
जातनी असर थई हती व्याख्यानमां तेओ बोली उठया हता के–“कुंदकुंद भगवानने तो शास्त्रोमें सब कहा
है, किन्तु उसका रहस्य समजाने के लिये आपकाथ जन्म है.” ज्यारे व्याख्यानमां सम्यग्द्रष्टि संबंधी वात
आवती त्यारे तेओ खूब आनंदमां आवी जतां अने वारंवार उत्साहथी बोली उठतां के “सम्यग्द्रष्टि के बिना
कोई यह बात नहि समज सक्ता, मिथ्याद्रष्टि–अज्ञानी जीव आपकी बात नहि स्वीकार सक्ता, सम्यग्द्रष्टि
जैसा जीवो ही आपकी बात समज सक्ता है, हमने बहोत आनंद होता है” आ वाक्य तो तेओ हमेशां
व्याख्यानमां अनेकवार जुस्साथी बोलता हता.
सोनगढमां आव्याने हजु तेमने छ कलाक थया हता अने पू. गुरुदेवश्रीनो एक कलाकनो ज परिचय
थयो हतो, एटला टुंक वखतमां ता–१ ना रोज व्याख्यान पछी तेमणे पोता तरफथी रूा. प००१ नी सखावत
स्वाध्याय मंदिरने जाहेर करी हती. तथा तेमनी साथेना शेठजी फत्तेचंदजीए रूा. प०१ जाहेर कर्या हता.
हमेशां व्याख्यान पछी पोते कोई ने कोई अध्यात्मनुं पद गातां हतां. ता. १ ना रोज व्याख्यान पछी
देरासरजी, समोसरण मंदिर वगेरे जोयां हतां. समवसरणमां ‘श्री सीमंधर भगवान सन्मुख श्री कुंदकुंद
भगवान हाथ जोडीने वंदन करतां उभा छे’ ते द्रश्य जोईने आनंदित थया हता अने आवुं ज एक
समवसरण इंदोरमां बनाववानुं तेओए नक्की कर्युं छे, ते माटे अहींना समवसरणनुं माप तथा फोटो लई
लीधां छे.
वैशाख वद–६ ना रोज श्री समवसरण मंदिरनी प्रतिष्ठानो वार्षिक महोत्सव होवाथी प्रभुश्रीनी रथयात्रा
नीकळेल हती तेमां तेओ पधार्या हता, त्यां प्रभुश्रीनुं पूजन वगेरे थयां हतां.
ता. –२ [वै–वद–७] सवार सुधीमां पू. गुरुदेवश्रीना त्रण व्याख्यानो सांभळ्यां त्यां तो तेमना अंतरमां
अपूर्व प्रभाव पडी गयो, अने आवा अध्यात्म ज्ञाननी प्रभावना माटे जे थाय ते ओछुं छे एम तेमने लागी
आव्युं अने गई काले जाहेर करेल रूा. प००१ नी रकममां मोटो वधारो करवानो तेओए निर्णय कर्यो, व्याख्यान
पछी तेओए कह्युं के–“अहो सभाजनो! आपका बडा भाग्य हैं कि आप सत्पुरुषके अध्यात्म उपदेशका बडी
रुचिसे नित्य लाभ ले रहा हो. मैं तो तुच्छ आदमी हूं, आप तो बडे भाग्यवान हो। हमतो अल्प लाभ ले
सका हूं तौ भी हमारे आनंदका क्या कहूं? यदि यह अध्यात्म ज्ञान के लीये मेरा सब कुछ अर्पण किया
जाय तौ भी कम है. मैंने जो रकम कल कही है उनके लीये
(वधु माटे जुओ पाछळनुं पानुं)