Atmadharma magazine - Ank 021
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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(छेल्लां पानथी चालु)
मैं फेर कहता हूं के यह संस्थाकी उन्नत्तिके लीये
मेरे तरफसे रु
. १२५०१ बारह हजार पांचसो एक
और घरमेंसे [शेठाणीजी तरफसे] रु. १२५०१ आ
संस्थाको अर्पण करता हूं.”
आ उपरांत ते ज वखते शेठाणीजी प्यारकुंवरजी
तरफथी रूा. १००१ नी रकम शेठजीए जाहेर करी, परंतु
ते रकम वधारीने शेठाणीजीए पोता तरफथी रूा.
प००१ जाहेर कर्या.
शेठजी बराबर ध्यान पूर्वक उत्साहथी
व्याख्यान सांभळता हता. मोक्षमार्ग प्रकाशकना
निश्चय–व्यवहारनी संधीनुं व्याख्यान सांभळीने तेओ
व्याख्यान वच्चे जोसथी बोली उठया हता के––
महाराजजी! कोइ लोग तो कहते थे के आप
व्यवहारका लोप करते हो, लेकिन मैं समझता हुं
के आप तो निश्चय–व्यवहारका सच्चाज्ञान
दीखलाते हो
“कर्म तो जड चीज छे, ते आत्माने कांई करी
शके नहि, आत्मानो पुरुषार्थ स्वतंत्र छे, कर्म तेने रोकी
शकता नथी; आ वात तो जेने अनंत भवनो नाश
करीने एक बे भवमां मुक्ति लेवी होय तेने माटे छे”
आम ज्यारे व्याख्यानमां पू. गुरुदेव पुरुषार्थनी वात
जोरपूर्वक कहेता त्यारे शेठजी खूब ऊछळी जता अने
एकवार तो सभा वच्चे खूब जोसथी बोली उठया के
हमने जरुर मोक्ष लेना है–महाराजजी!
पुरुषार्थ से ही मुक्ति होती है, हमारा महान पुण्यसे
ही आपका जन्म हुआ है
.
शेठजीनी खास मागणीथी वद–७, ना रोज रात्रे
भक्ति राखवामां आवी हती अने ‘सीमंधर मुखथी
फूलडां खरे, एनी कुंदकुंद गूंथे माळ रे... ’ ए स्तवन
शेठजीना कहेवाथी गावामां आव्युं हतुं के जे सांभळता
शेठजी घणा खुश थया हता. ते उपरांत बीजां पण त्रण
स्तवनो गवायां हतां.
त्रीजी तारीखना रोज सवारे व्याख्यान पहेलांं
आत्मधर्म मासिकना प्रचार माटे रूा. १००१ भेट
आपतां तेओए कह्युं हतुं के–– ‘
महाराजजी का यह
अद्भुत तत्त्वज्ञान तमाम दुनियामें सब भाषामें
प्रचार होवे ऐसी हमारी भावना है, और हिंदी
भाषा का बहोत प्रचार है इसलिये महाराजजी का
वचन का गुजरातीमें जो पत्र नीकलता है और
उनका जो हिंदीमें कोपी नीकलता है उनका
प्रचार के लीये रु
. १००१ में मदद करता हूं.’
व्याख्यान पछी तेओ हंमेश एक स्तवन
बोलता. वैशाक वद ८ ना रोज श्री समयसारजी
प्रतिष्ठानो वार्षिक महोत्सव होवाथी सवारे श्री
समयसारजीनी रथयात्रा नीकळी हती तेमां शेठजी
साथे फर्या हता; तथा पू. गुरुदेव ज्यारे आहार लेवा
पधार्या हता त्यारे राणपुरना शेठ नारणदास
करसनजीना घेर शेठजीए आहार दाननो लाभ लीधो
हतो. बपोरे व्याख्यान पछी शेठजीए तथा शेठणीजीए
साथे मळीने ज्ञानपूजा भणावी हती, पूजामां तेमनो
घणो उल्लास हतो.
ता. ४ नी सांजे तथा ता. प नी सवारे तेओ,
सम्यग्द्रष्टि जीवनुं परिणमन केवुं थई गयुं होय छे–ते
संबंधी एक स्तवन बोल्या हता–जे आ अंकमां
अन्यत्र आपवामां आव्युं छे.
हमेशां तात्त्विक चर्चा पण थती हती; ते चर्चा
चालतां ता–४ ना रोज शेठजी एकदम उल्लास पूर्वक
बोली उठया हता के “
मेरेमें तो आटला [इतना]
ज्ञान नहि हैं, शास्त्रका ऐसा रहस्य मैं नहि जानता
हूं, लेकिन अंतःकरणसे मैं कह देता हूं की आपकी
बात ही सच्ची हैं
. मैं आपकी बात तो पहेले
आत्मधर्मसे सूनता था, किन्तु जब सभामें आया
तब अबी मुझे निश्चय हो गया है कि आप कहता
है सोही सच्च है–और अपूर्व है
.
सर शेठजी हुकमीचंदजी साहेबनुं सुवर्णपुरीमां पूज्य
सद्गुरुदेव पासे आगमन अने परिचय ते सनातन जैनधर्मनी
महान प्रभावनानुं कारण थयुं छे.
मुद्रक– प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी,
शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. ९–६–४प