Atmadharma magazine - Ank 021
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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धर्मनुं मूळ दर्शन छे.
वर्ष : २ : संपादक : जेठ
अंक : ९ रामजी माणेकचंद दोशी २००१
वकील
सम्यग्द्रष्टिनुं अंतर परिणमन
चिन्मूरत दिग्धारीकी मोहि, रीति लगत है अटापटी... चिन्मू.
बाहिर नारकिकृत दुःख भोगे, अंतर सुखरस गटागटी
रमत अनेक सुरनि संगपैतिस, परनतितैं नित हटाहटी... चिन्मू. १
ज्ञान विराग शक्ति तैं विधिफल, भोगतपै विधि घटाघटी
सदन निवासी तदपि उदासी, तातैं आस्रव छटाछटी... चिन्मू. २
जे भवहेतु अबुधके ते तस, करत बन्धकी झटाझटी
नारक पशु तिय षट विकलत्रय, प्रकृतिनकी ह्वै कटाकटी... चिन्मू. ३
संयम धर न सकै पै संयम, –धारनकी उर चटाचटी
तासु सुयश गुनकी दौलत को, लगो रहे नित्त रटारटी... चिन्मू. ४
[ता. ४ तथा प ना रोज श्रीमंत शेठ सर हुकमीचंदजीए गायेलुं स्तवन]
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
आत्मधर्म कार्यालय (सुवर्णपुरी) सोनगढ काठियावाड