बाहिर नारकिकृत दुःख भोगे, अंतर सुखरस गटागटी
रमत अनेक सुरनि संगपैतिस, परनतितैं नित हटाहटी... चिन्मू. १
ज्ञान विराग शक्ति तैं विधिफल, भोगतपै विधि घटाघटी
सदन निवासी तदपि उदासी, तातैं आस्रव छटाछटी... चिन्मू. २
जे भवहेतु अबुधके ते तस, करत बन्धकी झटाझटी
नारक पशु तिय षट विकलत्रय, प्रकृतिनकी ह्वै कटाकटी... चिन्मू. ३
संयम धर न सकै पै संयम, –धारनकी उर चटाचटी
तासु सुयश गुनकी दौलत को, लगो रहे नित्त रटारटी... चिन्मू. ४