Atmadharma magazine - Ank 021a
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 9

background image
ः १४७ः आत्मधर्म वधारो - २१-A श्रुत पंचमीः २००१
ज्यां सामान्य होय त्यां तेनुं विशेष होय ज. हवे ते
विशेष सामान्यज्ञानथी थाय छे के निमित्तथी थाय छे ?
विशेषज्ञान निमित्तने लईने थयुं नथी पण सामान्य
स्वभावथी थयुं छे. विशेषनुं कारण सामान्य छे,
निमित्त तेनुं कारण नथी. केमके जो ते कार्य निमित्तनुं
अंशे के पूर्णपणे होय तो निमित्त जे पर द्रव्य छे ते
परद्रव्यरुप ज्ञान थई जाय. आत्मानो ज्ञानस्वभाव
कायम छे ते सामान्य अने वर्तमान कार्यरुप जे ज्ञान
ते तेनुं विशेष छे. सामान्य ज्ञाननुं विशेष कहो, के
कायमना ज्ञान स्वभावनुं परिणमन कहो, के ज्ञाननी
वर्तमान दशा [हालत-पर्याय] कहो ते एक ज छे.
आत्मानो स्वभाव ज्ञान छे, ज्ञान एकलुं
जाणवानुं ज कार्य करे छे. शब्दने के रुपने गमे तेने
जाणवामां ज्ञान एक ज छे, ज्ञानमां फेर पडी जतो
नथी. आत्मानो ज्ञान स्वभाव पोताथी छे, कोईना
निमित्तथी ते नथी. आत्मानो त्रिकाळी ज्ञान स्वभाव
छे ते ज्ञान पोताथी ज विशेषरुप कार्य करे छे. आत्मा
ईन्द्रियथी जाणतो ज नथी, पोताना ज्ञाननी विशेष
अवस्थाथी ज जाणे छे. सामान्य ज्ञान पोते परिणमीने
विशेषरुप थाय छे ते विशेषज्ञान जाणवानुं कार्य करे
छे. ज्ञान परना अवलंबनथी जाणे एम मानवुं ते
अधर्म छे. ज्ञान स्वलंबनथी जाणे एवी श्रद्धा-ज्ञान
अने स्थिरता ते धर्म छे.
अहिं, परावलंबन रहित ज्ञाननी स्वाधीनता
बतावी छे, आ जयधवला शास्त्रनी खास विशेषता
छे. बीजी अनेक वातो छे तेमां आ एक विशेष छे.
मारा ज्ञाननुं परिणामरुप वर्तन, ते वर्तनरुप
विशेष-व्यापार (उपयोग) माराथी थाय छे, तेने कोई
परना निमित्तनी के परद्रव्यनी जरुर नथी-एटले के -
ज्ञान स्वाधीनताथी कदी खसीने परावलंबनमां जतुं
नथी तेथी ते ज्ञान पोते समाधान अने सुख स्वरुप
छे. स्वाधीन ज्ञानस्वभावे ज निगोदथी सिद्ध सुधी
बधा जीवोने ज्ञान थाय छे; पण जेम थई रह्युं छे तेम
अज्ञानी नथी मानतो, तेथी ज तेनी मान्यतामां विरोध
आवे छे.
सर्वे जीवोनो सामान्य ज्ञान स्वभाव छे, ते
ज्ञाननुं विशेष कार्य पोताना सामान्य स्वभावना
अवलंबने ज थाय छे एटले राग के पर निमित्तना
अवलंबन वगर ज ज्ञान कार्य करे छे तेथी ज्ञान राग
के संयोग रहित छे.
आजे श्रुतपूजननो महान दिवस छे. २०००
वर्ष पहेलां सातमा-छठ्ठा गुणस्थाने झूलता महान
संतमुनिओ पुष्पदंत अने भूतबलि आचार्योए (ज्ञान
प्रभावनानो विकल्प • ठतां) महान परमागम शास्त्रो
(षट्खंडागम) रचीने अंकलेश्वरमां उत्साह पूर्वक
उत्सवथी तेनी श्रुतपूजना करी हती, ते श्रुतपूजननो
मांगलिक दिवसआजे (जेठ सुद-५ना रोज) छे.
मारो ज्ञान स्वभाव कायम टकी रहो, मारा
ज्ञाननी अत्रुटधारा कायम रहो-अर्थात् केवळज्ञान
थाव-एम खरेखर अंदरमां पूर्णतानी भावना थतां,
बाह्यमां तेमने एवो विकल्प • ठयो के-श्रुतज्ञान
आगम कायम टकी रहो; ते विकल्प • ठतां महान
परमागम शास्त्रो रच्यां अने तेनी श्रुतपूजना करी ते
मंगळ दिवस आजे छे, खरेखर तो परनो माटे
भावना नथी, पण पोतानी ज्ञाननी अत्रुटधारानी
भावना छे, त्यां आ शास्त्रोनी रचना थई छे. आ
शास्त्रमां अनेक वातो छे, आजे मुख्य बे विशेष वात
छे ते कहेवानी छे.
ज्ञान ईन्द्रियथी जाणतुं नथी. जो ज्ञान कार्य
वगरनुं रहे अर्थात् विशेष वगरनुं रहे तो वर्तमान
विशेष वगर सामान्य जाणे कोने ? विशेष न होय तो
सामान्य ज्ञान ज •यां रह्युं ? जो वर्तमान पर्यायरुप
विशेष न मानो तो ‘सामान्य ज्ञान छे’ तेनो विशेष
वगर कोण निर्णय करशे ? निर्णय तो विशेष ज्ञान करे
छे. वर्तमान विशेष ज्ञान [पर्याय] द्वारा परावलंबन
रहित सामान्य ज्ञान-स्वभाव जेम छे तेम जाणवो
तेमां ज धर्म समाई जाय छे.
राग थाय तेने जाणे, परने जाणे, ईन्द्रियने जाणे
पण ते कोईने पोतानुं न माने एवो ज्ञाननो स्वभाव
छे. विकारने के परने पोतानुं न माने तेने दुःख न ज
होय. मारा ज्ञानने कोई परावलंबन नथी-एवा
स्वाधीन स्वभावनी श्रद्धा-ज्ञान अने स्थिरता करे तो
ते स्वभावमां शंका के दुःख न ज होय. केमके
ज्ञानस्वभाव पोते सुखरुप छे.
निगोदथी मांडीने सर्व जीवोमां कोईपण जीव
ईन्द्रियथी जाणता नथी. निगोदनो जीव के जेने सौथी
ओछुं ज्ञान छे - ते पण स्पर्शईन्द्रियथी जाणतो नथी,
परंतु पोताना सामान्य ज्ञानना परिणमनथी थता
विशेष ज्ञानवडे जाणे छे, पण ते एम माने छे के
ईन्द्रियथी मने ज्ञान थयुं. पण ज्यारे जीवने सामान्य
ज्ञान स्वभावना अवलंबने [सामान्य तरफनी
एकाग्रताथी] विशेषज्ञान थाय छे त्यारे ते सम्यक्
मतिरुप थाय छे; ते मतिज्ञानरुप अंशमां, परावलंबन
वगर निरालंबी ज्ञानस्वभावनी पूर्णतानी प्रत्यक्षता
आवी जाय छे.