अंकलेश्वरमां उत्साह पूर्वक उत्सवथी तेनी श्रुतपूजना करी हती, ते श्रुतपूजननो मांगलिक दिवस आजे [जेठ सुद-५
ना रोज ] छे.
(२) ते स्वाधीन अंशमां आखुं केवळज्ञान प्रत्यक्ष आवे छे; आ बे मुख्य विीसेषता छे.
वर्तमान ज्ञान इन्द्रियथी जाणे तो सामान्य
ज्ञानस्वभावना वर्तमान विशेषनो अभाव थाय. जो
ज्ञान इन्द्रियथी जाणतुं होय तो ते वखते सामान्यज्ञान
छे तेनुं विशेष शुं ? आत्मानुं ज्ञान इन्द्रियथी जाणतुं
नथी, पण सामान्य ज्ञाननी विशेष अवस्थाथी जाणे
छे. जो वर्तमानमां विशेषज्ञानथी जीव न जाणतो होय
अने इन्द्रियथी जाणतो होय तो विशेषज्ञाने शुं कार्य
कर्युं ? ईन्द्रियथी आत्मा ज्ञाननुं कार्य करतो ज नथी.
ज्ञान पोताथी ज विशेषरुप जाणवानुं कार्य करे छे.
नीचली दशामां पण जड इन्द्रिय अने ज्ञान भेगा
थईने जाणवानुं कार्य करता नथी, पण सामान्य ज्ञान
जे आत्मानो त्रिकाळ स्वभाव छे तेनुं ज विशेषरुप
ज्ञान वर्तमान जाणवानुं कार्य करे छे.
त्यारे पण ज्ञान जाणवानुं कार्य तो पोताथी ज करे छे,
केमके ज्ञान परना अवलंबन वगरनुं छे. ‘निमित्त-
नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान करवुं जोईए’ एम मोक्षमार्ग
प्रकाशक पान-२६४मां कह्युं छे तेनुं आ विवरण चाले
छे. ईन्द्रिय हाजर छे पण ज्ञान स्वतंत्रपणे पोतानी
अवस्थाथी जाणे छे. जो ज्ञान ईन्द्रियथी जाणे छे एम
मानवामां आवे तो ज्ञाननो विशेष स्वभाव काम नथी
करतो एम थाय, अने विशेष वगर सामान्य ज्ञाननो
ज अभाव आवे; माटे ज्ञान ईन्द्रियथी जाणतुं नथी.
अधूरुं ज्ञान पोताथी जाणवानुं कार्य करे छे त्यारे
अवलंबने ज्ञान जाणतुं नथी-आम समजवुं ते ज
निमित्त-नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान छे. पण ज्ञान
ईन्द्रियथी जाणे एम माने तो ते ज्ञान खोटुं छे, केमके
ते मान्यतामां निमित्त-उपादान एक थई जाय छे.
तेनो ते वखते अभाव थयो ?
जाणवानुं काम ईन्द्रियथी थशे, आम थवाथी ज्ञाननो
नाश नहि थाय-अभाव नहि थाय.
वगर सामान्य न होय शके. माटे विशेष वगरनुं
सामान्यज्ञान मानवाथी सामान्यनो नाश थाय-अभाव
थाय छे- माटे विशेष ज्ञानथी ज जाणवानुं कार्य थाय
छे, एम मानवामां आवे तो ज सामान्य ज्ञाननी
अस्ति रहे छे.
आवे छे एम जाणीने तेनी श्रद्धा-ज्ञान अने स्थिरता
करवी ते ज धर्म छे.
ईन्द्रियना कारणे जाणतुं होय तो ते वखते
सामान्यज्ञान विशेष-पर्याय वगरनुं थयुं; विशेष वगर
तो सामान्य होय ज नहि,