Atmadharma magazine - Ank 021a
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: १४६ : आत्मधर्म वधारो - २१-A श्रुत पंचमीः २००१
महान परमागम श्री परम पू. सद्गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
जयधवलामां अदभुत न्यायो श्रुत पंचमी १४-६-४५ गुरु
ज्ञान स्वभावनी स्वाधीनता ने अंशमां पूर्णनी प्रत्यक्षता
आजे श्रुतपूजननो महान दिवस छे. २००० वर्ष पहेलां सातमा-छठ्ठा गुणस्थाने झूलता महान संतमुनिओ
पुष्पदंत अने भूतबलि आचार्योअ (ज्ञान प्रभावनानो विकल्प • ठतां) महान परमागम शास्त्रो (षट्खंडागम) रचीने
अंकलेश्वरमां उत्साह पूर्वक उत्सवथी तेनी श्रुतपूजना करी हती, ते श्रुतपूजननो मांगलिक दिवस आजे [जेठ सुद-५
ना रोज ] छे.
अहो ! श्रुतपंचमीना दिने तो आ जयधवलामां जे केवळज्ञानना रहस्य भर्यां छे, अने तेनी मुख्य बे
विशेषता छे तेनी स्पष्टता जाहेर थाय छे. (१) पोताना ज्ञाननी विशेरुप अवस्था परावलंबन वगर स्वाधीनपणे छे.
(२) ते स्वाधीन अंशमां आखुं केवळज्ञान प्रत्यक्ष आवे छे; आ बे मुख्य विीसेषता छे.
ज्ञान स्वभावी आत्मा छे. ते ज्ञान अत्यारे पण
ईन्द्रियना अवलंबनथी जाणे छे के ईन्द्रिय वगर ? जो
वर्तमान ज्ञान इन्द्रियथी जाणे तो सामान्य
ज्ञानस्वभावना वर्तमान विशेषनो अभाव थाय. जो
ज्ञान इन्द्रियथी जाणतुं होय तो ते वखते सामान्यज्ञान
छे तेनुं विशेष शुं ? आत्मानुं ज्ञान इन्द्रियथी जाणतुं
नथी, पण सामान्य ज्ञाननी विशेष अवस्थाथी जाणे
छे. जो वर्तमानमां विशेषज्ञानथी जीव न जाणतो होय
अने इन्द्रियथी जाणतो होय तो विशेषज्ञाने शुं कार्य
कर्युं ? ईन्द्रियथी आत्मा ज्ञाननुं कार्य करतो ज नथी.
ज्ञान पोताथी ज विशेषरुप जाणवानुं कार्य करे छे.
नीचली दशामां पण जड इन्द्रिय अने ज्ञान भेगा
थईने जाणवानुं कार्य करता नथी, पण सामान्य ज्ञान
जे आत्मानो त्रिकाळ स्वभाव छे तेनुं ज विशेषरुप
ज्ञान वर्तमान जाणवानुं कार्य करे छे.
प्रश्नः- जो ज्ञाननुं विशेष ज जाणवानुं कार्य करे
छे तो ईन्द्रिय वगर केम जाणवानुं कार्य थतुं नथी ?
उत्तरः- ज्ञाननी तेवा प्रकारनी विशेथतानी
लायकात न होय त्यारे ईन्द्रिय न होय. ईन्द्रिय होय
त्यारे पण ज्ञान जाणवानुं कार्य तो पोताथी ज करे छे,
केमके ज्ञान परना अवलंबन वगरनुं छे. ‘निमित्त-
नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान करवुं जोईए’ एम मोक्षमार्ग
प्रकाशक पान-२६४मां कह्युं छे तेनुं आ विवरण चाले
छे. ईन्द्रिय हाजर छे पण ज्ञान स्वतंत्रपणे पोतानी
अवस्थाथी जाणे छे. जो ज्ञान ईन्द्रियथी जाणे छे एम
मानवामां आवे तो ज्ञाननो विशेष स्वभाव काम नथी
करतो एम थाय, अने विशेष वगर सामान्य ज्ञाननो
ज अभाव आवे; माटे ज्ञान ईन्द्रियथी जाणतुं नथी.
अधूरुं ज्ञान पोताथी जाणवानुं कार्य करे छे त्यारे
अनुकूळ ईन्द्रियो हाजररुप छे - पण ते ईन्द्रियना
अवलंबने ज्ञान जाणतुं नथी-आम समजवुं ते ज
निमित्त-नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान छे. पण ज्ञान
ईन्द्रियथी जाणे एम माने तो ते ज्ञान खोटुं छे, केमके
ते मान्यतामां निमित्त-उपादान एक थई जाय छे.
आचार्यदेव - शिष्यने पूछे छे के जो जीवे
ईन्द्रियथी ज्ञान कर्युं तो सामान्य ज्ञाने शुं कार्य कर्युं ?
तेनो ते वखते अभाव थयो ?
शिष्ये उत्तरमां कह्युं के भले ज्ञान-विशेष न होय,
तोपण ज्ञान सामान्य तो त्रिकाळ रहेशे, अने
जाणवानुं काम ईन्द्रियथी थशे, आम थवाथी ज्ञाननो
नाश नहि थाय-अभाव नहि थाय.
आचार्यदेवनो उत्तरः- विशेष विनानुं सामान्य
तो ससलाना शगिं समान [अभावरुप] छे. विशेष
वगर सामान्य न होय शके. माटे विशेष वगरनुं
सामान्यज्ञान मानवाथी सामान्यनो नाश थाय-अभाव
थाय छे- माटे विशेष ज्ञानथी ज जाणवानुं कार्य थाय
छे, एम मानवामां आवे तो ज सामान्य ज्ञाननी
अस्ति रहे छे.
ज्ञान स्वभाव राग अने निमित्तना अवलंबन
रहित छे तथा विशेषज्ञान सामान्य ज्ञानमांथी ज
आवे छे एम जाणीने तेनी श्रद्धा-ज्ञान अने स्थिरता
करवी ते ज धर्म छे.
जो ज्ञान ईन्द्रियथी जाणे तो ज्ञाननुं वर्तमान
कार्य •यां गयुं ? ईन्द्रियनी हाजरी वखते जो ज्ञान
ईन्द्रियना कारणे जाणतुं होय तो ते वखते
सामान्यज्ञान विशेष-पर्याय वगरनुं थयुं; विशेष वगर
तो सामान्य होय ज नहि,