Atmadharma magazine - Ank 023
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page  


PDF/HTML Page 17 of 17

background image
ATMADHARMA With the permisson of the Borada Govt. Regd. No. B. 4787
order No. 30-24 date 31-10-44
जन्म मरण टाळवानो उपाय छे. एकलो जाणकस्वभाव छे तेमां बीजुं कांई करवानो स्वभाव नथी. निर्विकल्प
अनुभव थया पहेलांं आवो निश्चय करवो जोईए. आ सिवाय बीजुं माने तो व्यवहारे पण आत्मानो निश्चय
नथी. अनंत उपवास करे तोय आत्मानुं ज्ञान न थाय, बहारमां दोडादोडी करे तेनाथी पण ज्ञान न थाय, पण
ज्ञानस्वभावनी पक्कडथी ज ज्ञान थाय. आत्मा तरफ लक्ष अने श्रद्धा कर्या वगर सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान थाय
क्यांथी? पहेलांं देव–गुरु–शास्त्रना निमित्तोथी अनेक प्रकारे श्रुतज्ञान जाणे अने ते बधामांथी एक आत्माने तारवे
पछी तेनुं लक्ष करी प्रगट अनुभव करवा माटे, मति–श्रुतज्ञाननी बहार वळती पर्यायोने स्वसन्मुख करतां तत्काळ
निर्विकल्प निजस्वभावरस आनंदनो अनुभव थाय छे. परमात्म स्वरूपनुं दर्शन जे वखते करे छे ते ज वखते
आत्मा पोते सम्यग्दर्शनरूप प्रगट थाय छे; आत्मानी प्रतीत जेने आवी गई छे तेने पाछळथी विकल्प आवे त्यारे
पण जे आत्मदर्शन थई गयुं छे तेनुं तो भान छे, एटले के आत्मानुभव पछी विकल्प ऊठे तेथी सम्यग्दर्शन चाल्युं
जतुं नथी. कोई वेशमां के वाडामां सम्यग्दर्शन नथी पण स्वरूप एज सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.
सम्यग्दर्शनथी ज्ञानस्वभावी आत्मानो निश्चय कर्या पछी पण शुभभाव आवे खरा, परंतु आत्महित
तो ज्ञानस्वभावनो निश्चय करवाथी ज थाय छे. जेम जेम ज्ञानस्वभावनी द्रढता वधती जाय तेम तेम शुभभाव
पण टळता जाय छे. बहारना लक्षे जे वेदन थाय ते बधुं दुःखरूप छे, अंदरमां शांतरसनी ज मूर्ति आत्मा छे
तेना लक्षे जे वेदन ते ज सुख छे. सम्यग्दर्शन ते आत्मानो गुण छे, गुण ते गुणीथी जुदो न होय. एक अखंड
प्रतिभासमय आत्मानो अनुभव ते ज सम्यग्दर्शन छे.
छेल्ली भलामणो
आ आत्मकल्याणनो नानामां नानो (बधाथी थई शके तेवो) उपाय छे. बीजा बधा उपाय छोडीने आ
ज करवानुं छे. हितनुं साधन बहारमां लेश मात्र नथी, सत्समागमे एक आत्मानो ज निश्चय करवो. वास्तविक
तत्त्वनी श्रद्धा वगर अंदरना वेदननी रमझट नहि जामे. प्रथम अंतरथी सतनो हकार आप्या वगर सत
स्वरूपनुं ज्ञान थाय नहि अने सत स्वरूपना ज्ञान वगर भवबंधननी बेडी तूटे नहि. भवबंधनना अंत
वगरनां जीवन शा कामना? भवना अंतनी श्रद्धा वगर कदाच पुण्य करे तो तेनुं फळ राजपद के ईन्द्रपद मळे
परंतु तेमां आत्माने शुं? आत्माना भान वगरना तो ए पुण्य अने ए ईन्द्रपद बधांय धूळधाणी ज छे, तेमां
आत्मानी शांतिनो अंश पण नथी. माटे पहेलांं श्रुतज्ञानवडे ज्ञानस्वभावनो द्रढ निश्चय करतां प्रतीतमां भवनी
शंका ज रहेती नथी. अने जेटली ज्ञाननी द्रढता थाय तेटली शांति वधती जाय छे.
भाई प्रभु! तुं केवो छो, तारी प्रभुतानो महिमा केवो छे ए तें जाण्यो नथी. तारी प्रभुताना भानवगर
तुं बहारमां जेनां तेनां गाणां गाया करे तो तेमां कंई तने तारी प्रभुतानो लाभ नथी. परनां गाणां गाया पण
पोताना गाणां गाया नहि; भगवाननी प्रतिमा सामे कहे के ‘हे नाथ, हे भगवान! आप अनंत ज्ञानना धणी
छो’ त्यां सामो पण एवो ज पडघो पडे के ‘हे नाथ, हे भगवान! आप अनंतज्ञानना धणी छो’ ... अंतरमां
ओळखाण होय तो ए समजेने! ओळखाण वगरना अंतरमां साचो पडघो
[निःशंकता] जागे नहि.
शुद्धात्म स्वरूपनुं वेदन कहो, ज्ञान कहो, श्रद्धा कहो, चारित्र कहो, अनुभव कहो के साक्षात्कार कहो–जे कहो
ते आ एक आत्मा ज छे. वधारे शुं कहेवुं? जे कांई छे ते आ एक आत्मा ज छे. तेने ज जुदा जुदा नामथी
कहेवाय छे. केवळीपद, सिद्धपद के साधु पद ए बधा एक आत्मामां ज समाय छे. समाधिमरण आराधना ए
वगेरे नामो पण स्वरूपनी स्थिरता ज छे. आ प्रमाणे आत्मस्वरूपनी समजण ए ज सम्यग्दर्शन छे अने ए
सम्यग्दर्शन ज सर्व धर्मनुं मूळ छे, सम्यग्दर्शन ज आत्मानो धर्म छे...
आत्मधर्मना त्रीजा वर्षना ग्राहकोने अमृतझरणां नामनुं भेट पुस्तक स्व. पारेख लीलाधर
डाह्याभाईना स्मरणार्थे तेमना धर्म पत्नी श्री जयाबेन पारेख तरफथी आपवानुं नक्की
थयुं छे तो नवा वर्षनुं लवाजम सवेळा मोकलावी आपशो के जेथी पर्युषण वखते आपने
भेट पुस्तक मळी जाय.
[आत्मधर्म कार्यालय सुवर्णपुरी–सोनगढ काठियावाड] प्र का श क
मुद्रक – प्रकाशक: – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी.
शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. ८ – ७ – ४प