Atmadharma magazine - Ank 023
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: २
अंक: ११ श्रावण २००१
• धर्मनुं मूळ दर्शन छे •
: सं पा द क :
रामजी माणेकचंद दोशी
वकील
• भव्य जीवन प्ररण •
– : मालिनी : –
त्यजतु जगदिदानीं मोहमाजन्मलीनं
रसयतु रसिकानां रोचनं ज्ञानमुद्यत्।
इह कथमपि नात्मानात्मना साकमेकः
किल कलयति काले क्वापि तादात्म्यवृत्तिम्।।
(समयसर कलश २)
अर्थ:– जगत अर्थात् जगतना जीवो अनादि संसारथी मांडीने आज
सुधी अनुभव करेला मोहने हवे तो छोडो अने रसिक जनोने रुचिकर, उदय थई
रहेलुं जे ज्ञान तेने आस्वादो; कारण के आ जगतमां आत्मा छे ते खरेखर कोई
प्रकारे अनात्मा (पर द्रव्य) साथे कोई काळे पण तादात्म्यवृत्ति (एक पणुं)
पामतो नथी, केमके आत्मा एक छे ते अन्य द्रव्य साथे एकतारूप थतो नथी.
भावार्थ:– आत्मा पर द्रव्य साथे कोई प्रकारे कोई काळे एकताना भावने
पामतो नथी. ए रीते आचार्ये, अनादिथी पर द्रव्य प्रत्ये लागेलो जे मोह छे तेनुं
भेद विज्ञान कराव्युं छे अने प्रेरणा करी छे के ए एकपणारूप मोहने हवे छोडो
अने ज्ञानने आस्वादो. मोह छे ते वृथा छे, जूठो छे, दुःखनुं कारण छे.

वार्षिक लवाजम
छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय (सुवर्णपुरी) सोनगढ काठियावाड •