: २०० : आत्मधर्म : २४
गृहित मिथ्यात्वनुं स्वरूप १६ प०
गृहित मिथ्यात्वनुं स्वरूप १६ ६१
गुणार्थिक नय शा माटे नहीं? १७ ६९
च
चारित्र, वीर्य वगेरे सर्व गुणोनी स्वाधीनता २१ १४९
छ
छुटक वचनामृत १३ १
छेल्ली भलामणो २३ १८४
ज
जडमां पण क्रमबद्ध पर्याय छे १३ ४
जय समयसार २१ १४१
जीव शुं करी शके अने शुं न करी शके
तेनी विशेषता १७ ७४
जीवाजीव अधिकार १७ ७प
जीवे शुं करवुं योग्य छे? १८ ८६
जीवनुं स्वरूप केवळज्ञान छे १९ ११०
जीवने साचुं सुख जोईतुं होय तो प्रथम
सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ज जोईए २१ १प१
जीज्ञासुए धर्म केवी रीते करवो २३ १७६
जे पोतानी प्रभुताने ओळखे ते प्रभु थाय १६ ४९
जे पोताना देवनुं स्वरूप यथार्थ मानतो
नथी ते नास्तिक छे–जैन नथी १७ ६८
जे तरफनी रुचि ते तरफनुं घोलण २३ १७९
जैनशास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति १प ४०
जैनो कर्मवादी नथी पण यथार्थ आत्मज्ञानना
अने विश्व स्वरूपना ज्ञाता छे १प ४६
जैन समाजनी पचास वर्ष पहेलांंनी
परिस्थिति १६ पप
जन शिक्षण माटे उत्तम तक १९ १०४
जैनदर्शन शिक्षणवर्ग १९ १०प
जैनो कर्मवादी नथी २१ १४०
जैनशासनमां कहेलुं प्रभावनानुं साचुं स्वरूप २३ १७७
जो कोई जीव एकवार पण द्रव्यद्रष्टि धारण
करे तो तेनो अवश्य मोक्ष थाय ज १९ १०६
जिनमतनी आज्ञा २४ १८८
जैनधर्मनी महत्ता २४ १९४
जैनदर्शननी सिद्धि २४ १९प
जेणे पुण्यनो स्वीकार कर्यो तेने भवनी
शंका होती नथी २४ १९७
त
तत्त्वज्ञानना रसिकजनो १६ प७
तत्त्व स्वरूप समजावती चौभंगी १९ ९८
त्याग शेनो? साची समजणनो के ऊंधी
मान्यतानो १६ प०
त्याग ते श्रुतज्ञाननुं लक्षण नथी २३ १७६
द
दर्शननो विषय अखंड ध्रुव आत्मा छे १६ प४
दया–दान विगेरेनुं वास्तविक स्वरूप १८ ८७
‘द्रव्यद्रष्टि’ मां भव नथी १९ १०६
“द्रव्यद्रष्टि” भवने बगडवा देती नथी १९ १०६
“द्रव्यद्रष्टि” ने शुं मान्य छे? १९ १०६
“द्रव्यद्रष्टि” ए ज कर्तव्य छे १९ १०६
ध
धर्मनुं मूळ दर्शन छे २० ११३
धर्म अने पुण्य (नुं स्वरूप) २३ १७१
धर्म क्यां छे? अने केम थाय? २३ १७८
धर्म माटे पहेलांं शुं करवुं? २३ १८१
धर्मनी रुचिवाळा जीव केवा होय? २३ १८२
न
“नहीं समजो तो अवतार एळे जाशे १४ १८
“नम: समयसार” ए–समयसारजीना
कलश उपर श्री सद्गुरुदेवनुं व्याख्यान १८ ८३
न धर्मो धार्मिके विना.. (व्याख्यान) २० ११प
नियमसार (नो टुंक ख्याल) १प ४४
निश्चय अने व्यवहार १८ ९१
निश्चय स्तुतिनुं स्वरूप १९ १०८
निवेदन १९ ११२
निश्चय–व्यवहारनुं (विस्तिर्ण) स्वरूप २० १२०
निश्चय अने व्यवहार २३ १८३
नूतनवर्षे–संदेश १३ १
निश्चय अने व्यवहार २४ १९३
प
“परथी मने लाभ थाय अथवा कर्म
मने रखडावे छे” ते मान्यता ज जन्म
मरणनुं कारण छे. १३ २
पंचमकाळना जीवो आ अपूर्व वातने
पाम्या विना केम रही शके!! १३ १४
प्रश्नोत्तर १३ १प
प्रश्नोत्तर १४ ३२
पंचास्तिकाय (शास्त्रनी टूंकी माहीती) १प ४३
पहेलांं नक्की कर–के, तारे करवुं छे शुं?
आत्महित के कजीया २१ १३०
पहेलां शुं करवुं २२ १६७
प्रवचनसार (शास्त्रनी टूंकी माहीती) १प ४२
प्रभुजी पधार्यानुं स्तवन १७ ६८