Atmadharma magazine - Ank 024
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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पात्र जीवनुं लक्षण... ... २३ १७६
“पुण्य” नी हद केटली... ... १३ १३
पुरुषार्थनी स्वतंत्रता ११ १३४
पू० सद्गुरुदेवश्रीनो फोटो २० ११३
पर जीवनी दया पाळी शकाय के नहीं
तेनो खुलासो
२३ १७७
पर वस्तुनी असर आत्मामां नथी २४ १९३
पुण्यमां सुख माने तो मिथ्याद्रष्टि ज छे २४ १९प
पुण्य पाप विकार छे विकार टाळवा योग्य छे २४ २०३
भक्तनी सर्वस्व अर्पणता १प ३३
भगवान कुंदकुंद आचार्यना शास्त्रोनो
गुजरात काठियावाडमां प्रचार
१प ३४
भगवान कुंदकुंदने अंजलि १प ३प
भगवान कुंदकुंद आचार्यना बनावेल शास्त्रो १प ४०
भगवान आत्माना शुद्ध स्वरूपनी यथार्थ
प्रतीति वगर रागद्वेषनो खरेखरो त्याग
थई शके ज नहीं.
१७ ७२
भगवान श्री कुंदकुंद–कहान शास्त्रमाला
अने समयसार प्रवचनो
१७ ८०
भगवान महावीर अने वस्तु स्वभाव १९ १०४
भगवाने प्ररूपेली साची अहिंसा १९ १०प
भडना दीकरा १९ ९७
भव्य जीवोने प्रेरणा २३ १६९
भगवान पण बीजानुं करी शकता नथी २३ १७७
भेदना विकल्प आवे खरा पण तेनाथी
सम्यग्दर्शन नथी
२३ १७३
भैया भगवती दासजी कृत उपादान निमित्तनो
संवाद.
२१ १३६
महान शास्त्र “श्री जयधवला” १७ ६६
” ” ” १८ ८२
” ” ” १९ ११०
” ” ” २४ १८६
मतिज्ञानमां “केवळज्ञान” प्रत्यक्ष छे १९ ११०
महान उपकारी परमागम श्री समयसार २० ११७
महोत्सव दिन (सुवर्णपुरीमां उजवाता) २० १२७
“महापाप” २२ १पप
महान परमागम शास्त्र “श्री समयसारजी”
ना रचयितानी “अंतरदशा” तथा
“श्री समयसारजी” स्तुतिना अर्थ
२२ १६०
“मिथ्या द्रष्टि” अने “सम्यग्द्रष्टि” ना
त्याग ग्रहणनो तफावत
१४ ३०
मुनिपदनी दिक्षा लेवानो क्रम १प ३९
मिथ्यात्वना पांच भेदोनी जरूरियात १६ ६४
मेट्रीकना विद्यार्थीओ माटे उत्तम तक २० १२६
मोक्षनी क्रिया (पुस्तिका) १प ४प
मोक्ष पण द्रव्य द्रष्टिने आधीन छे १९ १०७
मफतनुं तोफान २४ १९८
मिथ्यात्वनुं जोर २४ १९६
मिथ्यात्व ए ज पाप २४ १९६
रुचि अने पुरूषार्थ १८ ८६
वस्तु स्वरूपनुं यथार्थ दर्शन करावतां
श्री समयसार प्रवचनो
१९ ११२
व्यवहार आवे तेनी ज्ञानीने होंश होती नथी १६ प४
व्यवहार स्तुतिनुं स्वरूप १९ १०८
वांचकोने विनति १६ प८
वारंवार ज्ञानमां एकाग्रतानो अभ्यास करवो २३ १८३
विनंति– १८
८२
वीरजीनुं शासन झुलेरे (स्तवन) १३
विपरीत मिथ्यात्वनुं लक्षण १६ ६३
वीरशासन जयंति महोत्सव २२ १प३
वैनयिक मिथ्यात्वनुं लक्षण १६ ६४
वंदन योग्य कोण? १६ प९
विकार एक समय पूरतो छे २४ १९२
विकारी भावनो कर्ता जड कर्म नथी २४ १९२
विकार भावनो कर्ता आत्मा छे २४ १९२
वस्तु स्वभावनी मर्यादा २४ १९६
श्रद्धा अने ज्ञान क्यारे सम्यग् थयां कहेवाय? २३ ११प
श्रावके प्रथम शुं करवुं?
१७ ७७
श्रद्धाथी धर्मीपणुं छे त्यागथी धर्मीपणुं नथी २४ १९प
श्री समयसार गाथा ३०८ थी ३११ उपर
श्री सद्गुरुदेवनुं प्रवचन
१३
‘श्री मद् राजचंद्र’ पोताने वंदन करता कहे छे १३
‘श्री आनंदघनजी’ पोताना आत्माने
संबोधता पुरुषार्थ जगाडवा ‘जिनेश्वर प्रत्ये
करार करे छे’ ..
१३ १०
‘श्री समयसार’ गाथा २८८ थी ९० उपर
श्री सद्गुरुदेवनुं प्रवचन
१३ १४
श्री कुंदकुंद भगवाननो विनय–बहुमान १प ३६
श्री सद्गुरुदेवे शीखवेलो ‘जैन दर्शननो कक्को’ १६ प७
श्री सीमंधर भगवाननुं स्तवन
१७ ६३
‘श्री समयसार’ शास्त्र अत्यंत अज्ञानीओनुं
अज्ञान टाळवा माटे रचायेलुं छे. (दर्शन–१) १७ ७४
” ” ” (दर्शन–२)
१८ ९२
” ” ” (दर्शन–३) १९ १०८
” ” ” (दर्शन–४) २४ २०४