Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 45

background image
र् र् .
वर्ष त्रीजुं : संपादक : कारतक
अंक पहेलो रामजी माणेकचंद दोशी २४७२
वकील
जिनवाणी स्तुति
हे जिनवाणी माता तुमको लाखों प्रणाम
तुमको क्रोडो प्रणाम.
शिवसुखदानी माता तुमको लाखों प्रणाम.टेक
तू वस्तु स्वरूप बतावे, अरू सकल विरोध मिटावे;
स्याद्वाद विख्याता तुमको लाखों प्रणाम.१.
तू करे ज्ञाताका मण्डन, मिथ्यात्व कुमारग खंडन;
हे तीन जगका त्राता तुमको लाखों प्रणाम.२.
तू लोकालोक प्रकाशे, चर अचर पदार्थ विकासे;
िश्वत्त् ज्ञ ों प्र..
तू वस्तुस्वरूप सुझावे, सिद्धांतका र्म समझावे;
तू मेटे सर्व असाता तुमको लाखों प्रणाम.४.
हे मात कृपा अब कीजे, अब परभाव सकल हर लीजे;
‘शिवराम’ सदा गुण गाता तुमको लाखों प्रणाम.५.
भगवान श्री महावीर निर्वाण कल्याणक
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
अढी रूपिया चार आना
आत्मधर्म कार्यालय सुवर्णपुरी – सोनगढ (काठियावाड)