Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : २१ :
२५/– शेठ धनजी गफलना मातुश्री वढवाणकेम्प
२५/– बेन दीपुबहेन ओघडदास बोटाद
२५/– संघवी चंदुलाल शीवलालना मातुश्री वढवाणशहेर
२५/– बेन झवेरीबहेन
नागनेश
३१५/– रूा.।। पचीस नीचेनी रकमो बहेनोमांथी आवेली ते.
७००२
८४१५४।। कुल
१५०२/– करांचीवाळा शेठ मोहनलाल वाघजी १००१/–
तथा तेमना धर्मपत्नी डाहीबेन ५०१/–
२५१/– शेठ हेमचंदभाई चत्रभुज गारियाधार
८५९०७।। कुल
(रकमो आववी चालु छे)
आ उपरांत धर्म प्रभावनानो जोरदार प्रवाह
मुमुक्षु भाई बहेनो तरफथी पर्युषण पर्वमां
चाल्यो हतो अने ते कारणे नीचेनी विगते
रकमो मळी हती.
१५४८/– श्री ज्ञान खातामां तथा ज्ञान पूजामां आवेल रकम
३९१८/– श्री आरतीमां तथा भंडार आदिमां आवेल रकमो
१२०००/– श्री कुंदकुंद मुमुक्षु निवासमां ओरडाओ वीगेरे
बांधवामां आव्या छे तेना खर्चने पहोंची
वळवामाटे आवेली भेट.
७४३३/– श्री जैन अतिथि सेवा समितिने अंगे चालता
रसोडा खर्चने अंगे आवेली रकमो
२६६१/– श्री पर्युषणपर्वमां स्वामीवत्सल माटे आवेली रकमो
५६३––१–० शेठ कुंवरजी आणंदजी, पालेज एकदीनना
१०७८–७–० शेठ नेमीदास खुशालदास, पोरबंदर ,,
१०१९–८–० पारेख लीलाधर डाह्याभाई हा. जयाकुंवरबेन
२६६१–०–०
१७६४/– श्री जैन अतिथि सेवा समितिना सभ्योना
लवाजमना आ साले जमा आव्या ते.
११५२३१।। कुल रूपिया एकलाख पंदरहजार बसो
साडीएकत्रीश
उपर मुजब आ पर्युषणपर्वमां मुमुक्षु भाई बहेनोए
धर्म वृद्धिनी भावनाथी उदार रकमो भरी छे तेथी तेमनो
सर्वनो आभार मानवानी रजा लउं छुं.
रामजी माणेकचंद दोशी
प्रमुख
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट : श्री जैन अतिथि सेवासमिति
सोनगढ
द्र....व्य....द्र....ष्टि
“दरेके दरेक द्रव्य जुदां छे, एक द्रव्यने
बीजा द्रव्य साथे खरेखर कांई संबंध नथी”
आम जे यथार्थपणे जाणे तेने द्रव्यद्रष्टि थाय
अने द्रव्यद्रष्टि थतां सम्यग्दर्शन थाय, जेने
सम्यग्दर्शन थाय तेनो मोक्ष थया वगर रहे
नहि, तेथी सौथी पहेलांं वस्तुनुं स्वरूप जाणवुं
जरूरी छे.
‘दरेक द्रव्य जुदां छे, एक द्रव्य बीजा
द्रव्यनुं कांई करी शकतुं नथी’ आम मानतां–
आत्मा सर्व परद्रव्यथी भिन्न छे तेमज दरेके
दरेक पुद्गलपरमाणु जुदा छे, बे परमाणु
भेगा–एकरूप थईने कदी कार्य करतां नथी, पण
दरेक परमाणु स्वतंत्र जुदो ज छे–एम वस्तु
स्वभावनुं ज्ञान थाय छे.
जीवने विकारभाव थवामां निमित्तरूप
विकारी परमाणुओ [स्कंध] थई शके, परंतु
द्रव्य अपेक्षाए जोतां दरेक परमाणु छूटो ज छे–
बे परमाणु भेगा थया ज नथी अने एक छूटो
परमाणु कदी विकारनुं निमित्त थई शकतो नथी
एटले के दरेक द्रव्य भिन्न छे एवी
स्वभावद्रष्टिथी कोई द्रव्य अन्य द्रव्यना
विकारनुं निमित्त पण नथी. आ रीते
द्रव्यद्रष्टिथी कोई द्रव्यमां विकार छे ज नहि, जीव
द्रव्यमां पण द्रव्यद्रष्टिथी विकार नथी.
पर्यायद्रष्टिथी जीवने अवस्थामां राग द्वेष थाय
छे अने तेमां कर्म निमित्तरूप थाय छे परंतु
पर्यायने गौण करी ज्यारे द्रव्यद्रष्टिथी जोवामां
आवे त्यारे कर्म कांई वस्तु ज न रही केमके ते
तो स्कंध छे अने तेना दरेक परमाणुओ जुदे
जुदुं कार्य करे छे तेथी जीवने विकारनुं निमित्त
कोई द्रव्य न रह्युं अर्थात् स्व तरफथी लेतां जीव
द्रव्यमां विकार ज न रह्यो. आ रीते दरेक द्रव्य
भिन्न छे एवी द्रष्टि एटले के द्रव्यद्रष्टि थतां
राग–द्वेषनी उत्पत्तिनुं कारण ज रह्युं नहि एटले
द्रव्यद्रष्टिमां वीतरागभावनी ज उत्पत्ति रही.
अवस्थाद्रष्टिथी–पर्यायद्रष्टिथी अथवा तो
बे द्रव्योना संयोगी कार्यनी द्रष्टिमां राग–द्वेषादि
भावो थाय छे; ‘कर्म’ अनंत पुद्गलोनो संयोग
छे ते संयोग उपर के संयोगी भाव उपर लक्ष
कर्युं त्यारे राग–द्वेष थाय छे, पण जो असंयोग
एटले के दरेक परमाणु भिन्न भिन्न छे एवी
द्रष्टि करे [खरेखर पोताना असंयोगी आत्म
स्वभावनी द्रष्टि करे] तो राग–द्वेष थाय नहि,
पण ते द्रष्टिना जोरे मोक्ष ज थाय...माटे
द्रव्यद्रष्टिनो अभ्यास ते परम कर्तव्य छे.