Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
‘आत्मधर्म’ प्रथम सां–
२००० ना मागसर सुद २ ना
रोज प्रसिद्ध थयुं हतुं, आजे ते
चोवीश अंक पूरा करी पचीशमां
अंकमां प्रवेश करे छे.
जगतना जीवो अनादिथी
दुःखी छे, केमके ते निज स्वरूपथी
अज्ञात छे. शाश्वतसुख मेळववाने
माटे तेओ अनेक बाह्य उपायो
निरंतर कर्या करे छे पण ते उपायो
खोटा होवाथी सुखने बदले
दुःखनो अनंत प्रवाह चालु रहे छे.
आ प्रमाणेनी स्थिति होवाथी
जीवोने शाश्वतसुखनो मार्ग आ
मासिकमां दर्शाववामां आवे छे.
आ मासिक विश्वना तमाम
पदार्थोनी संपूर्ण स्वतंत्रता जाहेर
करे छे अने वीतरागी–विज्ञान ते
ज धर्म छे एम तेमां बताववामां
आवे छे. वीतरागीविज्ञानने
विश्वधर्म–जैनधर्म के वस्तु
स्वरूपनो धर्म कहेवामां आवे छे.
वस्तु स्वरूप–जैनधर्म ते
वाडो के संप्रदाय होई शके ज नहि.
आ स्वरूप आत्मज्ञानी पुरुषो ज
प्रतिपादन करी शके अने तेथी पू.
सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीना
आत्मअनुभवमांथी नीकळती
अमृतवाणी आ मासिकमां प्रसिद्ध
करवामां आवे छे. ते सिवाय आ
मासिकमां प्रसिद्ध आचार्योनां
शास्त्रो उपरथी तैयार करेला लेखो
आपवामां आवे छे.
आ मासिक लोकप्रिय थयुं
छे, घणा मुमुक्षुओ तेनो लाभ ले
छे; आजे तेना आशरे १५००
ग्राहको छे, परंतु तेनो विशेष
विशेष बहोळो प्रचार थवानी
जरूर छे तेथी आ मासिकनो घणो
बहोळो प्रचार करी ज्ञान
प्रभावना करवा मुमुक्षुओने
विनंति छे.
रामजी माणेकचंद
आजे आत्मधर्म पचीशमां अंकमां प्रवेश करे छे, ए वखते हुं अत्यंत
आनंद अने उल्लास अनुभवुं छुं. अनादि अनंत सनातन सत्य एक ज होय छे
अने ते शाश्वत सत्य आत्मधर्म मासिक द्वारा प्रगट थाय छे, एथी आत्मधर्म
प्रगट करवामां मारुं परम सौभाग्य मानुं छुं.
परंतु आजे तो एथीये विशेष आनंद प्रगट करवा प्रेरायो छुं ते ए के, छेल्ला
२४ मासथी जेमना निकट सहवासमां आव्यो छुं ते आत्मधर्म मासिकना मानद्
संपादक वंदनीय मुरब्बी श्री रामजीभाईना समागमथी हुं मने धन्य मानुं छुं.
जेमने परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री ‘भाई’ जेवा अति प्रेम भर्या शब्दोथी
संबोधे छे ए वंदनीय श्री रामजीभाई खेरखर सर्व मुमुक्षुओनी भीड भांगनार
भाई ज छे. तेओश्रीनी सनातन जैनधर्म (वस्तु स्वरूप)नी अविचल श्रध्धा,
तेओश्रीनुं ए पावनकारी जिनवाणीनुं सूक्ष्मज्ञान अने ते ज श्रध्धा अने ज्ञानमां
रमणता करवानो तेओश्रीनो अखंड पुरुषार्थ आपण सौने प्रेरणा अने वंदनरूप हो.!
विशेष शुं कहुं! तेओश्रीनी द्रढता, बुद्धिमत्ता, सहनशिलता, निर्भयता,
निडरता, निःस्पृहता, निर्ममता, निश्चिंतता, निरभिमानता, उदारता, सरळता,
एकाग्रता, लघुता, अर्पणता, वात्सल्यता, उदासिनता, सत्यप्रियता, जितेंद्रियता,
कार्यकौशल्यता अने कर्तव्यपरायणता आदि अनेक गुणोए मने सदाय आकर्ष्यो
छे.–अंतरात्मा तरफ वाळ्‌यो छे.
आत्मधर्ममां अपाती तमाम वस्तुओ तेओश्री खूब काळजीपूर्वक
झीणवटथी तपासीने, वांचकनी रुचिने ओळखीने–वर्तमान समयने बराबर
लक्षमां राखीने, सनातन जैन धर्मना अपूर्व न्यायो, सादी अने सरळ भाषामां
तथा आवा गहन विषयने पण सहेलाईथी समजी शकाय एवी सुंदर शैलीमां
आपवानो सतत प्रयत्न करे छे. जेने माटे आपणे ज मात्र नहि पण हवे
पछीना काळमां जैनधर्मने यथार्थरूपे समजवा ईच्छता धर्मीजीवो पण तेओश्रीना
अत्यंत, अत्यंत आभारी छीए.
जगतमां धर्मना नामे चालता अनेक मतो, पंथो, संप्रदायो, समाजो अने
संघोना अभिप्राय सामे वास्तविक धर्मने रजु करतां आत्मधर्म जेवा केवळ
अध्यात्म विषयना मासिकना संपादकना जाणपणा माटे सामान्य रीते आजना
आ कहेवाता विज्ञानना जमानामां केटलाक अभ्यासीओने तेमज संशोधकोने
जाणवानुं मन थाय ए स्वाभाविक छे तेथी तेओश्रीनो सत्शास्त्रोनो अभ्यास
तथा बीजा अन्य ग्रंथोनुं वांचन तेओश्रीना ज शब्दोमां अहीं आपुं छुं.
“परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीना सत्समागममां हुं संवत
१९८९ नी सालमां आव्यो छुं अने त्यारथी मने तेओश्रीनी पवित्र वाणीनो
लाभ मळतो रह्यो छे; तेओश्रीनो सत्समागम थयां पहेलांं श्री समयसार, श्री
प्रवचनसार श्री पंचास्तिकाय, श्री पंचाध्यायी वगेरे शास्त्रोनुं मने वांचन हतुं.
पण तेना भाव हुं समजी शक्यो नहोतो. निश्चय अने व्यवहारनयना कथनो
आवतां तेना अर्थ सं. १९९० मां तेओश्रीना उपदेशथी राजकोटमां श्री
समयसारनुं वांचन थयुं त्यारे समजी शकयो हतो, ते पहेलांं निश्चय अने
व्यवहारनयना अर्थो अने तेनी संधि समजाती नहोती. ए रीते तेओश्रीना
उपदेशनो मने लाभ मळतां वस्तु स्वरूप जे रीते समजवामां आव्युं छे ते अहीं
(आत्मधर्ममां) रजु करवामां आवे छे. त्यारपछी उत्तराध्ययन, पनवणा,
भगवति जीवाधिगम, ज्ञाता, समवायांग वगेरे श्वेतांबर संप्रदायने मान्य
शास्त्रोनो पण यथाशक्ति अभ्यास कर्यो छे. आ उपरांत योग, वैशेषिक, सांख्य,
नैयायिक, पंचदेशी, विचारसागर ब्रह्मसूत्र, गीता वगेरे वेदांत शास्त्रो पण
यथाशक्ति वांच्या छे.’
वंदनीय मुरब्बी श्री रामजीभाई विशे आ बधुं तो परम पूज्य
सद्गुरुदेवना दर्शन–श्रवणार्थे सोनगढ आवनार सौ कोई जाणता ज होय ए
स्वाभाविक छे. परंतु तेओना प्रत्येनुं बहुमान अने भक्ति प्रगट करवानो
आजे–आत्मधर्मनी त्रीजा वर्षनी शरूआते–उल्लास आववाथी अत्यंत निर्मळ
अने निःस्पृह भावे लखुं छुं.
कारतक सुद २ २४७२ : मंगळवार जमु रवाणी