Atmadharma magazine - Ank 025
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 45

background image
कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ५ :
जैन शासननो जळहळतो सूर्य सदा प्रकाशवंत रहो.
भगवान श्री महावीर निर्वाण कल्याणक
मंगलं भगवान वीरो,
मंगलं गौतमो गणी,
मंगलं कुंदकुंदार्यो,
जैन धर्मोडस्तु मंगलं.
[परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनां सां. १९९९ तथा २००० ना आसो वद ०)) ना व्याख्यानो उपरथी]
वर्तमान शासननायक श्री वीर भगवानना निर्वाणक कल्याणकनो आजे दिवस छे. आजथी २४७१ वर्ष
पहेलांं तेओश्री भरतक्षेत्रमां बिराजता हता; महावीर भगवाननो जन्मकल्याणक दिवस चैत्र सुद १३ नो छे.
तेओश्री पण जेवा आ बधा आत्मा छे तेवा आत्मा हता अने पहेलांं तेओ पण संसारमां हता. पोताना
आत्मामां परिपूर्ण ज्ञान अने परमानंद भर्यो छे तेनुं तेओश्रीए भान करीने पछी स्थिरताना प्रयास वडे ते
ज्ञान–आनंद परिपूर्ण प्रगट कर्यां, ते दिवस वैशाक सुद १० नो छे. केवळज्ञान थया पछी ३० वर्ष सुधी
दिव्यध्वनिद्वारा परम सत्य–वस्तुस्वरूप याने धर्मने जगजाहेर कर्यो, अने तेमने ७२ वर्ष थतां तेओश्री पवित्र
मोक्ष लक्ष्मीने पाम्या, ते मांगलिक दिवस आजे [आसो वद ०)) ना परोढिये] छे. भगवानश्री मोक्ष पधार्या
तेनो महा मंगळिक महोत्सव पावापुरीमां ईन्द्रो–देवो अने राजवीओए दीवा वगेरेथी उजव्यो हतो तेथी ते
दिवस दिपोत्सवी अथवा तो दिवाळी तरीके प्रख्यात छे. खरेखर आजनो दिवस आत्माना पूर्णानंद स्वभावने
प्रगट करवानी भावनानो छे. जेवो भगवाननो आत्मा तेवो ज मारो आत्मा छे एम विचारी स्वभावनुं भान
करी विभावपरिणामने स्वरूप–स्थिरता वडे तोडुं–एम पुरुषार्थ उपाडवानो आजनो दिवस छे.
श्री भगवान आजना ज दिवसे मोक्ष पधार्या–एम पूर्वकाळनी वर्तमान साथे सम्यग्ज्ञानद्वारा संधि करवी
ते खरेखर तो वस्तुद्रष्टि छे. वस्तुद्रष्टिमां द्रव्य–पर्याय वच्चेनो काळभेद तोडी नाखीने, भूतकाळमां जे बन्युं तेने
वर्तमानरूप करीने, महोत्सव करवामां आवे छे.
वस्तुद्रष्टिथी जोतां वस्तु तो मुक्त स्वरूप ज छे अने मुक्त दशानुं कारण पण वस्तु ज छे. आवा परिपूर्ण
वस्तु स्वभावनुं भान थयुं छे पण हजी पूर्ण मुक्तदशा प्रगटी नथी, अवस्थामां अपूर्णता छे, एवा साधक जीवो
जेओ पूर्वे पूर्ण थई गया छे तेमने वर्तमान याद करीने पोतानी पूर्णतानी भावना करे छे. जे परम पवित्र दशा
प्रगटीने कायम रहे छे ते पवित्र दशा जे वस्तुस्वभावथी प्रगटे छे ते वस्तुनी द्रष्टि [श्रद्धा, प्रतीत] थया वगर
“प्रभुजी आजे मोक्ष पधार्या” एवो काळभेद तोडीने द्रव्य–पर्यायनी संधि करतो, यथार्थ आरोप के उत्सवनो
भाव आवे ज नहि.
‘आजे प्रभुश्री महावीर मुक्तपणाने पाम्या’ एवो पूर्वनो आरोप वर्तमानमां करे छे ते आरोप साचो
क्यारे कहेवाय? के–(भगवाननी मुक्तदशा तो तेमनी पासे रही) हुं पण एवो ज मुक्तस्वरूप छुं–एम जो ते
आरोप पाछळ पोताना अनारोप स्वरूपनुं भान होय तो ज आरोप यथार्थ रीते करी शके छे अने मुक्तदशाना
महोत्सव करीने पोते पण पोताना मुक्तस्वरूपना जोरे अल्पकाळमां मुक्तदशा प्रगट करे छे.
अरिहंत दशामां परमात्माने समोसरण अने बार सभा वगेरे साथे तो संबंध हतो ज नहीं अर्थात् कोई
प्रत्ये राग–द्वेष हतो नहि–परंतु हजी जोगनो विकार हतो, आजे ते पण छूटीने अकंपस्वभावमां प्रभुश्री स्थिर
थया. जे जीवे प्रभुश्रीने ओळखीने पोताना तेवा ज स्वभावनुं भान कर्युं ते जीवे अज्ञान, राग, द्वेष, कर्म वगेरे
बधा साथेनो संबंध उडाडयो अने पोताना सिद्ध स्वभाव साथे संबंध कर्यो.
भगवान श्री महावीर स्वभावनुं भान करीने राग अने परना संबंधनो नाश करी केवळज्ञान पाम्या
अने त्यारपछी जोगना विकारनो पण संबंध छूटतां तद्न अकंप सिद्ध स्वभावमां स्थिर थया एवा निज–आत्म
स्वभावनी ओळखाण सहित जो जीव भगवाननो निर्वाण कल्याणक महोत्सव करे तो ते परमार्थना भानसहित
व्यवहार महोत्सव छे, अने पोते ज ज्यारे ते पवित्र दशाने प्राप्त करे त्यारे ते परमार्थ महोत्सव छे. आ
सिवाय बीजा कोई यथार्थ महोत्सव उजवी शके नहि.
भूत, वर्तमान अने भावी जगतशिरोमणी तीर्थंकरोने नमस्कार हो.